संस्कृत भाषा की उत्पत्ति कहां से हुई?

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संस्कृत भारत की एक प्राचीन और शास्त्रीय भाषा है, जो अपनी समृद्ध साहित्यिक और दार्शनिक विरासत के लिए जानी जाती है। यह दुनिया की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक है, जिसका इतिहास 3,000 साल से भी पुराना है। संस्कृत को हिंदू धर्म के सबसे पुराने शास्त्रों, वेदों की भाषा माना जाता है, साथ ही भारतीय दर्शन, विज्ञान और साहित्य का भी भाषा हैं।

संस्कृत भाषा की उत्पत्ति कहां से हुई

संस्कृत एक शास्त्रीय भाषा है। इसकी उत्त्पत्ति भारत में हुआ था। संस्कृत में ही कई प्राचीन वेदों और ग्रंथों को लिखा गया है। यह एक प्राचीन भाषा हैं जिससे भारत की कई आधुनिक भाषा का विकास हुआ हैं।

संस्कृत इंडो यूरोपीय भाषा परिवार से संबंधित है और कई भारतीय भाषाओं की जड़ है। प्राचीन काल से ही संस्कृत भाषा की व्याकरण विकसित है। वेद, उपनिषद, महाभारत, रामायण और पुराणों सहित भारत के कई ग्रंथ संस्कृत में लिखे गए हैं। इसका उपयोग हिंदू अनुष्ठानों और मंत्रों में भी किया जाता है।

संस्कृत भाषा की उत्पत्ति कहां से हुई?

संस्कृत ने हिंदी, बंगाली और मराठी जैसी कई आधुनिक भारतीय भाषाओं को प्रभावित किया है। इसने अंग्रेजी जैसी भाषाओं में खासकर वैज्ञानिक और दार्शनिक दृष्टि से कई शब्दावली का योगदान दिया है।

हालाँकि संस्कृत अब आम तौर पर बोली जाने वाली भाषा नहीं है, लेकिन इसका उपयोग अभी भी धार्मिक संदर्भों में किया जाता है और दुनिया भर के विद्वान इसका अध्ययन करते हैं।

संस्कृत भाषा के प्रकार

संस्कृत भारत की एक शास्त्रीय भाषा है, जिसकी जड़ें प्राचीन साहित्य और संस्कृति से जुड़ी हैं। यह इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार की इंडो-आर्यन शाखा से संबंधित भाषा है। संस्कृत भाषा की 5 प्रकार हैं।

1. वैदिक संस्कृत - यह वेदों की भाषा है, जो सबसे पुराने हिंदू धर्मग्रंथ हैं। वैदिक संस्कृत की विशेषता इसकी जटिल व्याकरण और उच्चारण प्रणाली है।

वैदिक संस्कृत जो 1500 ईसा पूर्व और 1200 ईसा पूर्व के बीच बोला और लिखा जाता था। वैदिक संस्कृत ने इस उपमहाद्वीप की पहले से मौजूद कई प्राचीन भाषाओं में पौधों व जानवरों के नाम में योगदान दिया है। इसके अलावा, प्राचीन द्रविड़ भाषाओं जैसे तमिल,तेलुगू, कन्नड़, मलयालम ने संस्कृत की ध्वनिविज्ञान को प्रभावित किया हैं।

2. शास्त्रीय संस्कृत - चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में व्याकरणविद पाणिनि द्वारा संस्कृत भाषा के व्याकरण और उच्चारण को सुव्यवस्थित किया। शास्त्रीय संस्कृत व्याकरणिक रूप में पहली सहस्राब्दी ईसा पूर्व उभरा जो उस समय का व्याकरणों में सबसे व्यापक था। 

महान नाटककार कालिदास ने शास्त्रीय संस्कृत में अपना लेख लिखा हैं। आधुनिक अंकगणित की नींव पहली बार शास्त्रीय संस्कृत में वर्णित की गई थी।

3. महाकाव्य संस्कृत - प्राचीन संस्कृत महाकाव्य रामायण और महाभारत हिंदू साहित्य में आधारभूत ग्रंथ हैं  और इनका सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व है। इन महाकाव्यों की भाषा शास्त्रीय संस्कृत है। यह वैदिक संस्कृत के बाद विकसित हुआ है।

सबसे प्रसिद्ध कवियों और नाटककारों में से एक कालिदास ने रघुवंश और कुमारसंभव की रचना की, दोनों को शास्त्रीय महाकाव्य है। अन्य शास्त्रीय महाकाव्य में माघ द्वारा रचित शिशुपाल वध, भारवि द्वारा रचित किरातार्जुनीय, श्रीहर्ष द्वारा रचित नैषधचरित और भट्टी द्वारा रचित भट्टिकाव्य शामिल हैं।

4. बौद्ध संकर संस्कृत - यह प्रारंभिक प्राकृत से विकसित हुआ हैं जिसका उपयोग बौद्ध साहित्य में किया गया था। इसका उपयोग महायान बौद्ध ग्रंथों और शास्त्रों में दार्शनिक अवधारणाओं को व्यक्त करने के लिए किया गया था। बौद्ध संकर संस्कृत लेखन ने प्रारंभिक बौद्ध धर्म के प्राकृत साहित्य और बाद में शास्त्रीय संस्कृत में रचित कार्यों के बीच एक सेतु का काम किया। बौद्ध संकर संस्कृत में लिखे गए महत्वपूर्ण बौद्ध ग्रंथों में महावस्तु और ललिताविस्तार के खंड शामिल हैं। इन ग्रंथों में अक्सर संस्कृत व्याकरण के नियमों को शामिल करते हुए पुराने भाषाई रूपों को संरक्षित किया गया है।

5. आधुनिक संस्कृत - आधुनिक संस्कृत का तात्पर्य संस्कृत भाषा के समकालीन उपयोग से है।  जिसका उपयोग शैक्षिक, सांस्कृतिक और धार्मिक क्षेत्रों में होता है। जबकि संस्कृत को प्राचीन शास्त्रीय भाषा माना जाता है, आधुनिक काल में इसकी प्रासंगिकता बनाए रखने के प्रयास किए गए हैं।

संस्कृत भारत और कुछ अन्य देशों के स्कूलों और विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती है। राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान और विभिन्न संस्कृत विश्वविद्यालय जैसे संस्थान इसके शिक्षण और अनुसंधान को बढ़ावा देते हैं।

संस्कृत हिंदू अनुष्ठानों, समारोहों और पवित्र ग्रंथों के पाठ का अभिन्न अंग है। इसका उपयोग हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म में किया जाता है, और इसका अध्ययन आध्यात्मिक शिक्षा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

कुछ भारतीय समुदायों ने संस्कृत को दैनिक भाषा के रूप में बोलने की पहल की है। कर्नाटक के मत्तूर गाँव में संस्कृत सामान्य भाषा की तरह बोली जाती है।

धार्मिक और शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए उपयोग की जाने वाली संस्कृत को पढ़ाया और पढ़ाना जारी है, और कुछ भारतीय समुदायों में इसे बोली जाने वाली भाषा के रूप में पुनर्जीवित करने के प्रयास भी किए जा रहे हैं।

संस्कृत भाषा की लिपि

संस्कृत को पहली शताब्दी के आसपास ब्राह्मी लिपि में लिखी जाती थी। लेकिन आधुनिक युग में देवनागरी में लिखी जाती है। संस्कृत को आठवीं अनुसूची की भाषाओं में शामिल किया गया है। पुनरुद्धार के प्रयासों के बावजूद संस्कृत को प्रथम भाषा का रूप प्राप्त नहीं हुआ है। 

भारत में कुछ हजार लोग ही संस्कृत को अपनी मातृभाषा मानते है। प्राचीन काल से ही पारंपरिक गुरुकुलों में संस्कृत पढ़ाई जाती थी। लेकिन आज माध्यमिक विद्यालय स्तर तक ही सिमित रह गया है। सबसे पुराना संस्कृत कॉलेज बनारस संस्कृत विद्यालय है जिसकी स्थापना 1791 में की गयी थी। संस्कृत भाषा का उययोग भजनों और मंत्रों में अधिक किया जाता है। ऐतिहासिक रूप से संस्कृत धार्मिक और चिकित्सा की भाषा थी।

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