पर्यावरण का महत्व: जीवन और विकास की असली नींव

Post a Comment

इस धरती पर रहने वाली सभी जीवित और निर्जीव वस्तुएँ पर्यावरण के अंतर्गत आती हैं। चाहे वे जमीन पर रहते हों या पानी में, सभी पर्यावरण का हिस्सा हैं। पर्यावरण में हवा, पानी, सूरज की रोशनी, पौधे, जानवर आदि शामिल हैं। पर्यावरण हमारे चारों ओर व्याप्त वातावरण को कहा जाता है। जो हमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं।

पृथ्वी हमारे सौरमंडल का एकमात्र ग्रह है, जिस पर जीवन पाया जाता है। पर्यावरण जीवन के लिए महत्वपूर्ण होता है। जो सभी जीवों को सुरक्षा प्रदान करता है। इस पोस्ट में पर्यावरण का महत्व के बारे में जानकारी दी जा रही है। 

पर्यावरण का महत्व

हम वास्तव में पर्यावरण के वास्तविक मूल्य को नहीं समझते हैं, लेकिन हम इसके कुछ महत्व का अनुमान लगा सकते हैं। जो हमें इसके महत्व को समझने में मदद कर सकते हैं। पर्यावरण जीवों को स्वस्थ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

यह पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखता है, जो पृथ्वी पर जीवन को सुरक्षित और स्थायी बनाता है। यह हमें भोजन, आवास और शुद्ध वायु प्रदान करता है तथा मानव की छोटी-बड़ी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।

इसके अलावा, मनुष्य का संपूर्ण जीवन पर्यावरण पर पूरी तरह निर्भर है। यह पृथ्वी पर विभिन्न जीवन चक्रों को बनाए रखने में सहायक होता है। सबसे महत्वपूर्ण बात, पर्यावरण न केवल प्राकृतिक सौंदर्य का स्रोत है बल्कि हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत आवश्यक है।

लाखों वर्षों से प्रकृति हमें बेहतर जीवन जीने के लिए भोजन, प्रकाश, हवा, पानी और आवास प्रदान करती आ रही है। पारिस्थितिकी तंत्र कृषि और फसलों की उन्नति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अपशिष्ट उत्पादों को यह अवशोषित कर उन्हें विघटित करता है, जिससे वे कृषि हेतु उपयोगी खाद में परिवर्तित हो जाते हैं।

  1. मनुष्य के स्वस्थ जीवन में पर्यावरण की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
  2. पर्यावरण एकमात्र घर है, जो सभी जीवों को हवा, भोजन और अन्य जरूरतें प्रदान करता है।
  3. मानवता की संपूर्ण जीवन प्रणाली पर्यावरणीय कारकों पर निर्भर करती है।
  4. पर्यावरण जलवायु को विनियमित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  5. पर्यावरण इतना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह प्राकृतिक सुंदरता का स्रोत है।
  6. पर्यावरण पृथ्वी पर जीवन का प्रमुख अस्तित्व है।

1. जीवन का आधार

पृथ्वी सभी ग्रहों में अद्वितीय है क्योंकि यह अपने सभी विविध रूपों में जीवन का पोषण करती है। मनुष्यों और जानवरों से लेकर पौधों और सूक्ष्मजीवों तक, प्रत्येक जीव प्राकृतिक तत्वों पर निर्भर करता है जो पर्यावरण उदारतापूर्वक प्रदान करता है। सबसे आवश्यक संसाधनों में हवा, पानी, मिट्टी और आश्रय शामिल हैं, जो मिलकर इस ग्रह पर जीवन का आधार बनते हैं। इनके बिना, जीवित रहना संभव नहीं होगा।

(अ) साँस लेने के लिए हवा - हवा जीवन की पहली आवश्यकता है। हर पल, मनुष्य और जानवर जीवित रहने के लिए ऑक्सीजन पर निर्भर रहते हैं, जबकि पौधे प्रकाश संश्लेषण के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग भोजन बनाने और ऑक्सीजन को वापस वायुमंडल में छोड़ने के लिए करते हैं। यह उत्तम आदान-प्रदान एक संतुलन बनाए रखता है जिससे पौधे और जानवर दोनों फलते-फूलते हैं। हालाँकि, उद्योगों, वाहनों और वनों की कटाई से बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण, हवा की गुणवत्ता बिगड़ रही है। स्वच्छ हवा न केवल एक प्राकृतिक उपहार है, बल्कि एक ज़िम्मेदारी भी है जिसे हमें स्वस्थ जीवन के लिए संरक्षित करना चाहिए।

(ब) पीने के लिए पानी - पानी को सही मायने में "जीवन का अमृत" कहा जाता है। यह पृथ्वी की सतह के लगभग 70% हिस्से को कवर करता है और पीने, कृषि, स्वच्छता और अनगिनत जैविक प्रक्रियाओं के लिए महत्वपूर्ण है। सभी जीव, सबसे छोटे कीड़े से लेकर सबसे बड़ी व्हेल तक, पानी पर निर्भर हैं। यह शरीर के तापमान को नियंत्रित करता है, पोषक तत्वों का परिवहन करता है और जीवित जीवों में अपशिष्ट को बाहर निकालता है। फिर भी, अत्यधिक उपयोग, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के कारण ताज़ा पानी दुर्लभ होता जा रहा है। आने वाली पीढ़ियों के लिए इस बहुमूल्य संसाधन को सुरक्षित रखने के लिए नदियों, झीलों और भूजल का संरक्षण आवश्यक है।

(स) कृषि के लिए मिट्टी - मिट्टी एक जीवित प्रणाली है, जो पौधों को पोषण देती है और बदले में, सभी जीवन रूपों को जीवित रखती है। उपजाऊ मिट्टी फसलें, फल और सब्जियाँ प्रदान करती है। कार्बन का भंडारण करती है और वनों को सहारा देती है, जो पारिस्थितिक संतुलन के लिए महत्वपूर्ण हैं। दुर्भाग्य से, वनों की कटाई, अत्यधिक खेती और रसायनों का उपयोग मिट्टी की उर्वरता को कम कर रहे हैं। खाद्य सुरक्षा की इस नींव को बनाए रखने के लिए सतत कृषि पद्धतियाँ, वनीकरण और मृदा संरक्षण के प्रयास आवश्यक हैं।

(द) जीवों के लिए आश्रय - हर जीव को सुरक्षा और अस्तित्व के लिए आश्रय की आवश्यकता होती है। मनुष्य आराम और सुरक्षा के लिए घर बनाते हैं, जबकि जानवर बिलों, गुफाओं, पेड़ों और घोंसलों में प्राकृतिक आश्रय पाते हैं। जंगल, आर्द्रभूमि और घास के मैदान अनगिनत प्रजातियों के लिए आवास का काम करते हैं, उन्हें भोजन और सुरक्षा प्रदान करते हैं। हालाँकि, तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण और वनों की कटाई इन प्राकृतिक आश्रयों को नष्ट कर रही है, जिससे जैव विविधता खतरे में पड़ रही है। प्राकृतिक आवासों का संरक्षण और स्थायी रहने की जगह बनाना यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है कि सभी प्रजातियों को सुरक्षित वातावरण मिलता रहे।

2. पारिस्थितिक संतुलन

पर्यावरण पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो सभी जीवों के अस्तित्व के लिए आवश्यक है। प्रकृति परस्पर जुड़ी प्रणालियों के माध्यम से कार्य करती है जो जैव विविधता को सहारा देती हैं, जलवायु को नियंत्रित करती हैं और कार्बन, ऑक्सीजन तथा जल चक्र जैसे प्राकृतिक चक्रों को नियंत्रित करती हैं।

जैव विविधता यह सुनिश्चित करती है कि हर प्रजाति, सबसे छोटे कीट से लेकर सबसे बड़े स्तनपायी तक, पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन में योगदान दे। शिकारी शिकार की आबादी को नियंत्रित करते हैं, पौधे ऑक्सीजन प्रदान करते हैं, और अपघटक पोषक तत्वों को पुनः मिट्टी में पुनर्चक्रित करते हैं। यह प्राकृतिक सामंजस्य जीवन को बनाए रखता है और किसी भी प्रजाति को पर्यावरण पर हावी होने से रोकता है।

पृथ्वी की जलवायु भी प्राकृतिक प्रणालियों द्वारा नियंत्रित होती है। वन कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं, महासागर तापमान को नियंत्रित करते हैं, और वायुमंडल हमें हानिकारक विकिरण से बचाता है। ये सभी तंत्र मिलकर एक स्थिर जलवायु बनाए रखते हैं जो ग्रह को रहने योग्य बनाती है।

कार्बन, ऑक्सीजन और जल चक्र जैसे प्राकृतिक चक्र आवश्यक संसाधनों के निरंतर प्रवाह को सुनिश्चित करते हैं। पौधे कार्बन डाइऑक्साइड लेते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं, वर्षा जल स्रोतों की पूर्ति करती है, और वाष्पीकरण वायुमंडल में नमी को संतुलित करता है।

जब प्रदूषण, वनों की कटाई या अतिदोहन से ये चक्र बाधित होते हैं, तो पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ जाता है, जिससे जलवायु परिवर्तन, प्रजातियाँ विलुप्ति और संसाधनों की कमी होती है। इसलिए, आने वाली पीढ़ियों के लिए इस नाजुक संतुलन को बनाए रखने के लिए प्रकृति की रक्षा करना आवश्यक है।

3. संसाधन प्रदान

प्रकृति उन सभी संसाधनों का प्राथमिक स्रोत है जो मानव जीवन और आर्थिक विकास को बनाए रखते हैं। यह हमें भोजन, ईंधन, दवा और कच्चे माल जैसी आवश्यक वस्तुएँ प्रदान करती है जो उद्योगों और दैनिक जीवन की रीढ़ हैं।

फल, सब्ज़ियाँ, अनाज और पशु उत्पाद जैसे खाद्य संसाधन सीधे पर्यावरण से प्राप्त होते हैं। ये जीवित रहने के लिए आवश्यक ऊर्जा और पोषण प्रदान करते हैं। कोयला, तेल, प्राकृतिक गैस जैसे ईंधन स्रोत और सौर एवं पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय विकल्प हमें खाना पकाने, यात्रा करने और उद्योगों को ऊर्जा प्रदान करने में सक्षम बनाते हैं।

औषधीय पौधों और जड़ी-बूटियों का उपयोग सदियों से बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता रहा है और ये आधुनिक औषधियों का आधार बने हुए हैं। नीम और तुलसी से लेकर जंगलों और समुद्रों से प्राप्त उन्नत यौगिकों तक, प्रकृति एक विशाल औषधालय का काम करती है।

लकड़ी, कपास, धातु और खनिज जैसे कच्चे माल उद्योगों के लिए अपरिहार्य हैं। ये बुनियादी ढाँचे के निर्माण, वस्तुओं के निर्माण और प्रौद्योगिकी के विकास में मदद करते हैं। इनके बिना, औद्योगिक विकास और आधुनिक जीवन संभव नहीं होगा।

हालाँकि, संसाधनों का अत्यधिक दोहन उनकी उपलब्धता को खतरे में डालता है। नवीकरणीय विकल्पों में सतत उपयोग, संरक्षण और नवाचार आवश्यक है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ये प्राकृतिक उपहार मानवता को सहयोग देते रहें तथा साथ ही भावी पीढ़ियों के लिए पर्यावरण को संरक्षित रखें।

4. स्वास्थ्य की रक्षा

एक स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण मानव कल्याण से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है। हम जिस हवा में साँस लेते हैं, जो पानी हम पीते हैं, और जिस मिट्टी से हमारा भोजन उगता है, ये सभी हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। जब ये तत्व शुद्ध और हानिकारक प्रदूषकों से मुक्त होते हैं, तो ये बीमारियों के जोखिम को कम करते हैं और एक स्वस्थ जीवन के लिए परिस्थितियाँ बनाते हैं।

स्वच्छ हवा अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और फेफड़ों के संक्रमण जैसी श्वसन संबंधी समस्याओं की संभावना को कम करती है। इसी प्रकार, सुरक्षित पेयजल हैजा, टाइफाइड और दस्त जैसी घातक जलजनित बीमारियों से बचाता है। उपजाऊ और अदूषित मिट्टी पौष्टिक खाद्य उत्पादन सुनिश्चित करती है, जिससे कुपोषण और संबंधित बीमारियों में कमी आती है।

शारीरिक स्वास्थ्य के अलावा, एक स्वच्छ पर्यावरण मानसिक स्वास्थ्य को भी बढ़ावा देता है। हरे-भरे स्थान, पार्क और प्राकृतिक परिवेश तनाव, चिंता और अवसाद को कम करते हैं, साथ ही विश्राम और सकारात्मक मनोदशा को बढ़ावा देते हैं। अध्ययनों से पता चलता है कि स्वच्छ और हरे-भरे वातावरण में रहने वाले लोगों का जीवन स्तर बेहतर होता है और उनकी जीवन प्रत्याशा लंबी होती है।

दूसरी ओर, प्रदूषण, अपशिष्ट प्रबंधन का कुप्रबंधन और वनों की कटाई खराब स्वास्थ्य, बीमारियों के प्रसार और जलवायु संबंधी चुनौतियों को और बदतर बनाने में योगदान करते हैं। इसलिए पर्यावरण की रक्षा करना न केवल एक पारिस्थितिक कर्तव्य है, बल्कि एक स्वास्थ्य आवश्यकता भी है। अपने परिवेश को स्वच्छ और टिकाऊ रखकर, हम सभी के लिए एक स्वस्थ वर्तमान और भविष्य सुनिश्चित करते हैं।

मानवीय गतिविधियों का पर्यावरण पर प्रभाव

मानव ने अपने फायदे के लिए पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुँचाया है। जिसके परिणामस्वरूप आज कई समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। जिसमें ग्लोबल वार्मिंग, प्रदूषण जैसी समस्याएं शामिल हैं। इसके अलावा, कई गंभीर बीमारियाँ पर्यावरण असंतुलन के कारण होती हैं। लेकिन प्रकृति ने हमें कई उपहार दिए है, जिसके कारण मानव आज इस धरती पर जीवित रह पाया है।

जब समाज आर्थिक संकटों, युद्धों और अंतहीन सामाजिक समस्याओं का सामना कर रहा हो तब भी पर्यावरण एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। यह मायने रखता है क्योंकि पृथ्वी ही एकमात्र घर है जो मनुष्यों के पास है, और यह हवा, भोजन और अन्य ज़रूरतें प्रदान करता है।

विभिन्न प्रकार की मानवीय गतिविधियाँ हैं, जो सीधे पर्यावरणीय आपदाओं के लिए जिम्मेदार होते हैं, जिसके कारण अम्ल वर्षा, महासागरों का अम्लीकरण, जलवायु में परिवर्तन, ओजोन परत का ह्रास, ग्लोबल वार्मिंग, प्रदूषण आदि समस्याएं होती है।

(अ) जनसंख्या वृद्धि

आज उच्च जनसंख्या और इतने सारे लोगों का दबाव प्रकृति पर भारी पड़ रहा है और बहुत अधिक तनाव पैदा कर रहा है। दुनिया भर में जीवित प्राणियों की पूरी व्यवस्था ध्वस्त हो रही है। हमारे ग्रह का जैव तंत्र, जिसमें रासायनिक और भौतिक वातावरण दोनों शामिल हैं, लगातार बदल रहा है। 

जिससे हमारी दुनिया धीरे-धीरे प्रदूषित हो रही है। पहले मनुष्य पर्यावरण को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा सकते थे और अगर करते भी थे तो वह जमीन के एक छोटे से क्षेत्र पर होते थे। हालाँकि, आज मानव आबादी विभिन्न तकनीकी प्रगति, ऑटोमोबाइल का विस्तार है। इस प्रकार, वे हमारे पारिस्थितिकी तंत्र को पूरी तरह से बाधित और असंतुलित कर रहे हैं।

(ब) उद्योगों का विकास

उद्योगों के विकास के साथ, मानव ने कई नई तकनीकों का उपयोग करना शुरू किया, लेकिन दीर्घकालिक परिणामों को समझे बिना। वर्षों तक लोग बीमारियों, महामारी, अकाल और विभिन्न रोगों से ग्रसित है। प्रौद्योगिकी और औद्योगिक प्रगति ने हानिकारक गैसों, रसायनों और औद्योगिक कचरे के कारण पर्यावरण पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

व्यापार और वाणिज्य, उद्योग और अन्य कारखानों ने मनुष्यों के लिए कृषि क्षेत्र को छोड़कर तकनीकी दुनिया में कदम रखने का मार्ग प्रशस्त किया। वायु, जल और मृदा प्रदूषण पर्यावरण को प्रभावित कर रहा है। हानिकारक ग्रीन हाउस गैसो की अधिकता से पर्यावरण गर्म हो रहा हैं। 

सुरक्षात्मक ओजोन परत नष्ट हो रही है, जिससे सूर्य की सीधी अल्ट्रा-वायलेट किरणें पृथ्वी में प्रवेश करती हैं और बर्फ पिघलने लगती हैं और जानवरों और मनुष्यों में गंभीर त्वचा रोग पैदा करती हैं।

पेड़ों की कमी, बढ़ते प्रदूषण, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के उपयोग के कारण विभिन्न जानवर विलुप्त होने के कगार पर हैं। कभी ग्रामीण जिलों से शहरी क्षेत्रों में प्रवास करने वाले पक्षी अब उद्योगों के हानिकारक उत्सर्जन और इलेक्ट्रॉनिक तरंगों के कारण दिखाई नहीं देते है। प्रकृति का यह असंतुलन पृथ्वी पर लंबे समय तक चलने वाले जीवन के लिए गंभीर समस्याएं और खतरा पैदा कर रहा है।

Newest Older

Related Posts

Post a Comment