पत्र लेखन क्या है - patra lekhan in hindi

पत्र लिखने की परंपरा सदियों से चली आ रही हैं। प्राचीन समय में पत्र दूर रहने वाले व्यक्ति तक सन्देश भेजने के लिए लिखे जाते थे। जिसे पोस्ट ऑफिस द्वारा भेजा जाता था। पत्र को पहुंचने में कई दिनों का समय लगता था। आज के समय में कुछ ही पल में सन्देश भेजे और प्राप्त किये जा सकते है। पत्र लेखन वर्तमान में पूरी तरह डिजिटल हो गया है।

हमारे दैनिक जीवन में पत्र लेखन का बड़ा महत्त्व है। पत्र दो व्यक्तियों के मध्य गहरा संपर्क सूत्र हैं। पत्र के द्वारा अल्प समय में और कम व्यय में सम्बन्ध स्थापित हो जाता हैं। एवं सम्बन्धों में प्रगाढ़ता एवं आत्मीयता आती है।

मनुष्य के प्राकृत एवं निश्छल भावों एवं विचारों का आदान-प्रदान पत्रों के द्वारा ही सम्भव है, व्यावहारिक जीवन में पत्र व्यवहार ही वह सेतु है, जो मानवीय सम्बन्धों को जोड़कर उन्हें सुदृढ़ आधार प्रदान करता है। इसी आधार पर मानव अपना सामाजिक-सामुदायिक विकास करता है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है अतः उसको दूसरों से सम्पर्क अथवा सम्बन्ध स्थापित करने व बनाये रखने के लिये लेखन की महती आवश्यकता होती है। इस प्रकार जीवन में पत्र लेखन का अपना महत्वपूर्ण स्थान है।

पत्र लेखन क्या है

पत्र एक लिखित संदेश है जिसे कागज या डिजिटल डॉक्यूमेंट पर लिखा जाता है। यह आमतौर पर प्राप्तकर्ता को मेल या पोस्ट के माध्यम से भेजा जाता है। हालांकि यह आवश्यक नहीं होता है की कोई भी संदेश जो डाक या ईमेल के माध्यम से भेजा जाता है। वह एक पत्र हो, वह दो पक्षों के बीच लिखित बातचीत भी हो सकती है।

अब ई-मेल संचार का आदर्श बन गया हैं। हालाँकि आज भी बहुत सारे संचार विशेषकर औपचारिक संचार पत्रों के माध्यम से ही होता है। चाहे वह नौकरी के लिए कवर लेटर हो, या बैंक और कॉलेज की स्वीकृति पत्र हो, पत्र अभी भी संचार का एक महत्वपूर्ण माध्यम हैं। पत्र दो प्रकार के होते हैं - औपचारिक पत्र और अनौपचारिक पत्र जिसके बारे में आगे विस्तार से जानकारी प्राप्त करेंगे।

patra lekhan kya hai, पत्र लेखन किसे कहते हैं

पत्र के प्रकार 

पत्र दो प्रकार के होते है - औपचारिक पत्र और अनौपचारिक पत्र।

1 . औपचारिक पत्र -

औपचारिक पत्र जिन्हें व्यावसायिक भी कहा जाता है, इस पत्र को विशिष्ट प्रारूप में लिखे जाते हैं। औपचारिक पत्र स्वाभाविक रूप से अनौपचारिक पत्रों की तुलना में अधिक औपचारिक शैली के होते हैं। औपचारिक पत्र कई कारणों से लिखे जा सकते हैं। औपचारिक पत्र लेखन प्रारूप के लिए कुछ विशिष्ट नियमों और परंपराओं की आवश्यकता होती है।

सामान्य रूप से निजी कंपनियों में औपचारिक पत्र अंग्रेजी में लिखे जाते हैं। लेकिन, सरकारी कंपनियों में हिंदी भाषा में लिखे औपचारिक पत्र स्वीकार किया जाता हैं। स्कूलों में छात्रों को औपचारिक पत्र प्रारूप भी सिखाए जाते हैं ताकि वे किसी विशेष स्थिति के लिए अपने शिक्षकों और प्रधानाध्यापकों को पत्र लिखने में सक्षम हो सकें।

औपचारिक पत्र उदहारण इस प्रकार हैं - बीमारी की छुट्टी का आवेदन, विवाह के लिए अवकाश पत्र, इस्तीफा पत्र, नियुक्ति पत्र और शिकायत पत्र आदि।

2 . अनौपचारिक पत्र - 

अनौपचारिक पत्र एक गैर-आधिकारिक पत्र है जिसे हम आमतौर पर अपने दोस्तों, परिवार या रिश्तेदारों को लिखने के लिए उपयोग करते हैं। इसे व्यक्तिगत पत्र भी कहा जाता हैं जिनका उपयोग आधिकारिक उद्देश्यों के लिए नहीं किया जाता है।

अनौपचारिक पत्र में अभिवादन आमतौर पर 'प्रिय' द्वारा दर्शाया जाता है, जैसे प्रिय दोस्त का नाम/रिश्तेदार का नाम। औपचारिक पत्रों के विपरीत इसमें आपको उल्लेख करने की आवश्यकता नहीं है। इसे गोपनीय तरीके से एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुचाया जाता है।

पत्र लेखन का इतिहास

भारत, मिस्र, चीन, सुमेर, रोम और ग्रीस में आज भी पत्र संचार मौजूद हैं। इन देशो में ऐतिहासिक रूप से पत्र का उपयोग सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी में आत्म शिक्षा के लिए किया जाता था। पत्र एक प्रकार से विचारधारा को फैलाने का माध्यम होता था।

यह आलोचना पढ़ने, आत्म-अभिव्यंजक लेखन और समान विचारधार के लोगों तक विचार का आदान-प्रदान करने का माध्यम था। कुछ लोग इसे सन्देश भेजने तथा प्रतिक्रिया प्राप्त करने का माध्यम बताते हैं।

पत्र के माध्यम से ही बाइबल के कई किताबों को बनाया गया है। पत्र कई इतिहासकारों के लिए प्राथमिक स्रोत के रूप में कार्य करते हैं। यह पत्र व्यतिगत, राजनीतिक और व्यवसायिक कारण से इतिहास के स्रोत बने हुए हैं। एक निश्चित समय तक लेखन के लिये अकक्षरों को कला के रूप में देखा जाता था। एक शैली के रूप में पत्र लेखन को देखा जाता था। उदाहरण के तौर पर आज भी बीजान्टिन एपिस्टोलोग्राफी को लिया जाता है।

अगर प्राचीन इतिहास की बात करें तो पत्र के लिए विभिन्न ताम्र पत्रों और शिलालेखों का उपयोग किया जाता था। तथा इसके अलाव धातु, और मोम, कांच, लकड़ी, मिट्टी के बर्तन, जानवरों के खाल का भी उपयोग पत्र लिखने के किया जाता था।

आधुनिक पत्र लेखन

आज बहुत सारी संचार प्रणाली  हैं। जिसके कारण पत्र लेखन बहुत कम हो गया है। उदाहरण के रूप में देखें तो आजकल के संचार माध्यम टेलीफोन, मोबाइल जैसे सन्देश भेजने और प्राप्त करने की समय को बहुत कम कर दिया है।

कुछ साल पहले फैक्स मशीन का दौर था। जिसमें टेलीफोन नेटवर्क का उपयोग करके भेजने वाले और प्राप्त करने वाले के मध्य एक माध्यम का काम किया जिसमें प्राप्तकर्ता के द्वारा उसी प्रकार से हूबहू प्रिंटआउट प्राप्त हो जाता था जिसे फैक्स मशीन कहा जाता था। जो की फोटो के समान होता है।

आज विज्ञान ने इतना तरक्की कर लिया है की एक ही समय में कई लोगो को सन्देश भेजा जा सकता है। आज के इस आधुनिक युग ने पत्र को भले ही भुला दिया हो लेकिन उसका स्थान अपने आप में सुरक्षित है। आज के समय में इंटरनेट के माध्यम से लिखित सन्देश आसानी से भेजे जा सकते हैं।

जो की मुख्य भूमिका निभा रहे हैं किसी भी प्रकार के सन्देश भेजने के लिए इसका उपयोग किया जा सकता है। यह केवल अक्षरों या शब्दों के रूप में ही सन्देश नहीं भेजता है बल्कि यह आज वीडियो और ऑडियो तथा चित्रों के रूप में भी सन्देश को एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजता है। लेकिन आज पत्र शब्द केवल कागज पर लिखे जाने वाले सन्देश के लिए सुरक्षित है।

पत्र का साहित्यिक स्रोत

ऐसे कई साहित्य हैं जिन्हें पत्र से प्रेरित होकर लिखा गया है। इतिहास की जानकारी पत्रों से प्राप्त होती है। इस प्रकार पत्र का जो शिलशिला है वह कई हजारों वर्ष से चला आ रहा है।

पत्र सन्देश भेजने का एक माध्यम ही नहीं है बल्कि इससे कई इतिहासिक घटनाओं की जानकारी भी मिलती है। कई सारे इतिहास का पता हमें शिलालेख पत्थरों के माध्यम से मिली हैं।

इलेक्ट्रॉनिक मेल के साथ तुलना की जाए तो वह पत्र लेखन से कई प्रकार से भिन्न है। इसमें वह सभी सुविधाएं नहीं हैं। जो की आज के इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से भेजे गए सन्देश में भेजे जाते हैं।

आज के इस युग में सन्देश भेजने का सबसे आसान तरीका इंटरनेट और फ़ोन है। ऐसे कई अप्लीकेशन हैं जिसके माध्यम से जानकारी भेजी जाती हैं। कुछ साल पहले पत्र में केवल शब्द शामिल होते थे। लेकिन आज शब्द के साथ चित्र और वीडियो भी भेजे जा सकते हैं।

राजा महाराजा के समय एक अलग से पत्र पहुचाने वाला होता था। जो की सन्देश को एक एक राज्य से दूसरे राज्य तक पहुंचाता था। जिसे राज दूत कहकर संबोधित किया जाता था।

औपचारिक तथा अनौपचारिक पत्र में अन्तर

हमें अपने दैनिक जीवन में अनेक प्रकार के पत्र लिखने पड़ते हैं, कभी अपने ही स्वजनों को, तो कभी किसी कार्यालय से पत्र व्यवहार करना पड़ता है। कभी किसी वस्तु को मँगाने के लिए भी पत्र लिखा जाता है। इस प्रकार हम पत्रों को निम्नलिखित दो भागों में बाँट सकते हैं - (अ) औपचारिक पत्र, एवं (ब) अनौपचारिक पत्र।

(अ) औपचारिक पत्र 

औपचारिक पत्रों में मुख्य रूप से निम्न पत्र आते हैं - 1. सरकारी पत्र,2. अर्द्ध सरकारी पत्र, 3. व्यावसायिक पत्र।

ये पत्र अत्यन्त संयमित, विधिसंगत तथा स्पष्ट भाषा-शैली में लिखे जाते हैं। ऐसे पत्र लेखन में निर्धारित औपचारिकताओं का निर्वाह आवश्यक होता है। इस प्रकार के पत्रों में तकनीकी शब्दावली और अभिव्यक्ति की शैली आदि की कुछ अपनी विशिष्टताएँ होती हैं। औपचारिक पत्रों के अन्तर्गत अधिकारियों के पत्र, व्यापारिक पत्र, व्यावसायिक संगठनों के पत्र, समाचार पत्रों को लिखे के जाने वाले पत्र और अशासकीय एवं शासकीय अधिकारियों को लिखे जाने वाले प्रार्थना पत्र आते हैं।

(ब) अनौपचारिक पत्र - अनौपचारिक पत्रों को दो भागों में बाँट सकते हैं - 1. सामाजिक पत्र, 2. निजी पत्र।

1. सामाजिक पत्र में निम्नलिखित पत्र आते हैं 

  1. विविध पत्र
  2. बधाई पत्र
  3. परिचय पत्र,
  4. आमन्त्रण पत्र
  5. शोक पत्र

2. निजी पत्र पूर्णतः व्यक्तिगत सम्बन्धों पर आधारित होते हैं । ये पत्र प्राय: परिवार के अपने सम्बन्धियों को लिखे जाते हैं।

अनौपचारिक पत्रों से हमारा अभिप्राय निजी एवं पारिवारिक पत्रों से है। इस प्रकार के पत्रों की भाषा और शैली खुली होती है और यह व्यक्ति पर निर्भर करती है। इनमें भावों की अभिव्यक्ति खुलकर की जाती है। पत्र लिखने वाला अपनी इच्छानुसार सन्देश, आग्रह और अपने दिल की सभी बातें खुलकर प्रकट करता है। ये पत्र अपने निकटतम रिश्तेदारों, सगे-सम्बन्धियों, गुरुजनों, माता-पिता, भाई-बहिन आदि को लिखे जाते हैं।

औपचारिक तथा अनौपचारिक पत्रों की लेखन प्रक्रिया में अन्तर

औपचारिक एवं अनौपचारिक पत्रों की लेखन प्रक्रिया में अन्तर है। अनौपचारिक पत्रों के लेखन में प्रायः वार्तालाप और आत्मीय शैली ही महत्वपूर्ण होती है और पत्र लेखन घनिष्ठता, विश्वसनीयता, निकटता, प्रगाढ़ता आदि के भावों से ओत-प्रोत होता है। इसमें व्यक्तिगत बातें प्रधान होती हैं। औपचारिक पत्र लेखन ऐसा नहीं होता । ऐसे पत्रों को लिखने के कुछ निश्चित प्रतिमान होते हैं, जिनके अभाव में ये पत्र अस्वीकार्य भी हो सकते हैं। यही कारण है कि औपचारिक पत्रों का लेखन पर्याप्त समझ-बूझ के साथ उपयुक्त तरीकों और भाषा-शैली में किया जाता है।

सरकारी व अर्द्ध सरकारी पत्र में अन्तर

1. सरकारी पत्र प्रायः विदेशी सरकारों, राज्य सरकारों, सम्बद्ध तथा मातहत कार्यालयों, सार्वजनिक निकायों आदि को लिखे जाते हैं, जबकि अर्द्ध सरकारी पत्र प्रायः केन्द्र सरकार द्वारा अपने विभाग के अधिकारियों द्वारा किसी अन्य विभाग के व्यक्ति को व्यक्तिगत ध्यान किसी विशिष्ट मामले की ओर आकृष्ट करने के लिए लिखे जाते हैं।

2. शासकीय (सरकारी) पत्रों में औपचारिकता अधिक होती है, जबकि अर्द्ध सरकारी पत्रों औपचारिकता एवं अनौपचारिकता दोनों होती हैं।

3. शासकीय पत्रों में भावना का स्थान जरा भी नहीं होता, जबकि अर्द्ध सरकारी पत्रों में भावना का सूक्ष्म स्थान होता है और इन पत्रों में घनिष्ठता का समावेश होता है।

4. शासकीय पत्रों के सम्बोधन में केवल 'महोदय' लिखा जाता है, जबकि अर्द्ध सरकारी पो में प्रिय, प्रियवर के साथ नाम अथवा उपनाम आदि का प्रयोग होता है। 

5. शासकीय पत्र के कलेवर में 'मुझे आदेश हुआ है' या 'मुझे निर्देश हुआ है' पदावली प्रयोग किया जाता है।

6. पत्र की समाप्ति पर स्वनिर्देश के लिए सरकारी पत्र में 'भवदीय' या 'आपका विश्वास भाजन’ लिखा जाता है, जबकि अर्द्ध सरकारी पत्र में आपका सद्भावी' या ‘आपका ही प्रयोग किया जाता है।

7. सरकारी पत्र में प्रेषक अपने हस्ताक्षर व पद का उल्लेख करता है, जबकि अर्द्ध सरकारी फ में प्रेषक अधिकांशतः केवल अपने हस्ताक्षर ही करता है।

पत्र लेखन की आवश्यकता एवं महत्व

पत्र लेखन साहित्य की एक महत्त्वपूर्ण विधा है, उसका एक महत्त्वपूर्ण अंग है, जिसके अन्तर्गत हमारे दैनिक जीवन के दुःख-सुख के अनेक क्रियाकलाप, विचारों का आदान-प्रदान अत्यन स्वाभाविक ढंग से साहित्य का एक अंग बन जाते हैं । विद्यार्थी जीवन से ही इसका सहज विकास होता है, जहाँ वह अपने आत्मीय, इष्ट मित्रों एवं गुरुजनों से पत्रों एवं प्रार्थना पत्रों के माध्यम से अपने हृदयगत भावों को व्यक्त करना सीखता है।

एक पत्र लेखन की विशेषताएँ 

आधुनिक युग में पत्र लेखन एक कला है । सतत् अभ्यास से ही कला परिपक्व हो सकती अच्छे पत्र में निम्न विशेषताओं का होना आवश्यक है -

1. सरल भाषा-शैली - पत्र की भाषा साधारणतः सरल और बोलचाल की होनी चाहिए। शब्दों के प्रयोग भाव और विषयानुकूल होने चाहिए। पत्रों की शैली रोचक, मधुर, आत्मीय और सहज हो। बातें सीधे-सरल ढंग से कही जानी चाहिए।

2. विचारों की स्पष्टता - पत्र में विचार सुस्पष्ट और सुलझे हुए होने चाहिए। उनका दिखावा न हो। भाषा शिष्ट व प्रिय हो। अप्रिय और अशिष्ट भाषा के प्रयोग से बचना चाहिए।

3. सम्पूर्णता - पत्र में जो लिखा जाना जरूरी है, वह अवश्य लिखा जाए। लेकिन अनावश्यक, अनर्गल, उबाऊ और निरर्थक विवरण या वर्णन टालें। पत्र में सम्पूर्णता हो। बार-बार एक ही बात में को न दोहराएँ।

4. संक्षिप्तता–पत्र संक्षिप्त होना चाहिए अर्थात् पत्र अधिक लम्बा नहीं होना चाहिए। पत्र में उन्हीं बातों का विवरण दें, जो आवश्यक हों।

5. प्रभविष्णुता – पत्र का आरम्भ और अन्त प्राय: नम्रता, आदर, आत्मीयता, भाव प्रवणता, प्रेमाभिव्यक्ति आदि से यथोचितपूर्ण होना चाहिए।

6. सुन्दर अक्षर एवं आकर्षक - पत्र में किसी भी प्रकार की काटा-पीटी नहीं होनी चाहिए। सुन्दर अक्षर और सधे हुए वाक्य, मन को प्रसन्न कर देते हैं। कागज अच्छा व साफ सुथरा हो । शीर्षक, तिथि, सम्बोधन, अभिवादन, अनुच्छेद, यथानुसार व क्रमानुसार होने चाहिए।

पत्र लेखन के अंगों की विवेचना

1. प्रेषक और लिपि - पत्र के शीर्ष स्थान पर दाहिनी ओर प्रेषक का पता एवं पत्र लेखन की तिथि का उल्लेख होना चाहिए।

2. मूल सम्बोधन - सम्बोधन की दृष्टि से पत्र के दो वर्ग हैं- पहले वर्ग में रिश्ते-नाते के सभी लोग और व्यक्तिगत एवं पारिवारिक रूप से जाने-पहचाने व्यक्ति आते हैं। जैसे - श्रद्धेय गुरुजी, आदरणीय, माताजी, चिरंजीवी अमित, प्रिय भाई सुरेश आदि।

दूसरे वर्ग में - घनिष्ठता, श्रद्धा या स्नेह सूचक शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाता, बल्कि सेवा में, प्रति, इसके नीचे पदनाम, संस्था नाम, पता आदि लिखे जाते हैं।

3. अभिवादन या शिष्टाचार - संबोधन की पंक्ति के अन्तिम वर्ण के नीचे नई पंक्ति प्रारम्भ करके अभिवादन या शिष्टाचार सूचक शब्द लिखे जाते हैं, जैसे- प्रणाम, नमस्ते, नमस्कार, जय हिन्द, शुभाशीष, प्रसन्न रहो आदि।

4. गौण सम्बोधन - इसका प्रयोग केवल संवृद्धि के दूसरे वर्ग के साथ ही होता है जिनमें शिष्टाचार एवं अभिवादन सूचक शब्द प्रयुक्त नहीं किए जाते हैं।

5. विषय वस्तु – पत्र के विषय को प्रारम्भ, मध्य एवं अन्त के रूप में तीन अनुच्छेदों में अथवा आवश्यकतानुसार दो या एक अनुच्छेद में व्यवस्थित करके लिखा जाता है।

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