ग्लोबल वार्मिंग किसे कहते हैं - Global Warming in Hindi

आज मैं इसी के बारे में बातें करने वाला हूँ, ग्लोबल वार्मिंग क्या होता है और इससे कैसे निपटना है? क्या कारण है ग्लोबल वार्मिंग का और इससे कैसे नुकसान पहुंच रहा है। इन सभी तमाम बातों पर आज मैं चर्चा करने वाला हूँ।

आपने अनुभव किया होगा की हर साल गर्मी का महीना अधिक गर्म होता जा रहा है। जिसके कारण धूप में भी निकलना बहुत कठिन हो जाता है। प्रदूषण भी ज्यादा होता जा रहा है। आपने कई बार दिल्ली मुम्बई जैसे शहरों के प्रदूषण के बारे में भी सुना होगा की वहां कितना ज्यादा प्रदूषण का स्तर पहुंच चुका है। लोगों को गर्मी के दिनों में बहुत ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। यह सब ग्लोबल वार्मिंग का परिणाम हैं।

ग्लोबल वार्मिंग क्या है

हर साल पृथ्वी के तापमान का बढ़ना ग्लोबल वार्मिंग कहलाता है। ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण कार्बन डाइऑक्साइड, मेथेन तथा क्लोरो-फ्लोरो कार्बन की मात्रा में अनावश्यक वृद्धि है। जिसके कारण पृथ्वी का तापमान तेजी से बढ़ रहा हैं। जिसके कारण जीव-जंतवो को कई प्रकार की समस्या हो रही है।

पिछले 50 वर्षों में पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि हुई है। विशेष्यज्ञों के अनुसार 134 साल के रिकॉर्ड में 16 सबसे गर्म वर्षों में से 2000 के बाद का है।

कई लोगो का मानना हैं की जलवायु परिवर्तन प्रकृति का चक्र है इससे हमें घबराना नहीं चाहिए, लेकिन कई अध्ययनों ने इस दावे को खारिज कर दिया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जब तक हम ग्लोबल-वार्मिंग उत्सर्जन पर अंकुश नहीं लगाते हैं। तब तक औसत तापमान में 10 डिग्री फ़ारेनहाइट की वृद्धि होती रहेगी।

तो ग्लोबल वार्मिंग हमारे पृथ्वी पर पड़ने वाला ऐसा प्रभाव है जिसके कारण न तो प्रदूषण में कमी आ रही है और न ही तापमान में कमी आ रही है। तो इस प्रकार से ग्लोबल वार्मिंग को परिभाषित किया जा सकता है जैसे की हमारे क्षेत्र का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है उसी प्रकार पूरे विश्व का या कहें लगातार पृथ्वी के तापमान में भी लगातार वृध्दि होती जा रही है।

ग्लोबल वार्मिंग के कारण

ग्लोबल वार्मिंग तब होती है जब कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और अन्य वायु प्रदूषक और ग्रीनहाउस गैसें वायुमंडल में एकत्र होती हैं और सूर्य के प्रकाश और सौर विकिरण को अवशोषित करती हैं जिन्होंने पृथ्वी की सतह को गर्म कर दिया है। 

आम तौर पर, यह विकिरण अंतरिक्ष में बच जाता है - लेकिन ये प्रदूषक, जो वातावरण में सदियों से सदियों तक रह सकते हैं गर्मी को रोकते हैं और ग्रह को गर्म करने का कारण बनते हैं। यही ग्रीनहाउस प्रभाव के रूप में जाना जाता है।

संयुक्त राज्य में, बिजली बनाने के लिए जीवाश्म ईंधन के जलने से गर्मी-रोकने वाले प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत है, जो हर साल लगभग दो बिलियन टन CO2 का उत्पादन करता है। कोयला जलाने वाले बिजली संयंत्र अब तक के सबसे बड़े प्रदूषक हैं। 

देश में कार्बन प्रदूषण का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत परिवहन क्षेत्र है, जो एक वर्ष में लगभग 1.7 बिलियन टन CO2 उत्सर्जन करता है। खतरनाक जलवायु परिवर्तन पर अंकुश लगाने के लिए उत्सर्जन में बहुत गहरी कटौती की आवश्यकता होती है। साथ ही दुनिया भर में जीवाश्म ईंधन के लिए विकल्पों का उपयोग किया जाता है। अच्छी खबर यह है कि हमने एक बदलाव शुरू किया है। 

Global Warming in Hindi - ग्लोबल वार्मिंग

संयुक्त राज्य अमेरिका में CO2 उत्सर्जन वास्तव में 2005 से 2014 तक घट गया। वैज्ञानिकों ने बिजली संयंत्रों को आधुनिक बनाने, क्लीनर बिजली पैदा करने और कम पेट्रोल जलाने के नए तरीके विकसित करना जारी रखा है। चुनौती यह सुनिश्चित करना है कि इन समाधानों का उपयोग किया जाए और व्यापक रूप से अपनाया जाए।

ग्लोबल वार्मिंग से होने वाले नुकसान

वैज्ञानिक इस बात से सहमत हैं कि पृथ्वी के बढ़ते तापमान में अधिक लंबी और तेज़ गर्मी की लहरें, अधिक लगातार सूखा, भारी वर्षा और अधिक शक्तिशाली तूफान हैं। उदाहरण के लिए, 2015 में, वैज्ञानिकों ने कहा कि 1,200 वर्षों में कैलिफ़ोर्निया में जारी सूखा - राज्य की सबसे खराब पानी की कमी, ग्लोबल वार्मिंग द्वारा 15 प्रतिशत से 20 प्रतिशत तक तीव्र हो गई थी।

उन्होंने यह भी कहा कि भविष्य में होने वाले इसी तरह के सूखे की संभावनाएं पिछली सदी में लगभग दोगुनी हो गई थीं। और 2016 में, विज्ञान, इंजीनियरिंग और मेडिसिन की राष्ट्रीय अकादमियों ने घोषणा की कि अब कुछ मौसम की घटनाओं पर विश्वास करना संभव है, जैसे कुछ गर्मी की लहरें, सीधे जलवायु परिवर्तन पर।

पृथ्वी के महासागरीय तापमान भी गर्म हो रहे हैं। जिसका अर्थ है कि उष्णकटिबंधीय तूफान अधिक ऊर्जा उठा सकते हैं। इसलिए ग्लोबल वार्मिंग एक खतरनाक श्रेणी 4 तूफान में श्रेणी 3 तूफान को बदल सकती है। वास्तव में वैज्ञानिकों ने पाया है कि उत्तरी अटलांटिक तूफान की आवृत्ति 1980 के दशक के बाद से बढ़ी है। साथ ही विश्व में खतरनाक तूफान की संख्या में भी वृद्धि हुयी हैं। जो प्रति वर्ष 4 से 5 तक पहुंच गई है।

ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों को दुनिया भर में महसूस किया जा रहा है। अत्यधिक गर्मी की लहरों ने हाल के वर्षों में दुनिया भर में हजारों मौतें की हैं। अंटार्कटिका 2002 के बाद से प्रति वर्ष लगभग 134 बिलियन मीट्रिक टन बर्फ खो रहा है। अगर हम अपनी वर्तमान गति से जीवाश्म ईंधन जलाते रहें तो यह दर बढ़ सकती है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है। जिस रफ़्तार में समुद्र का स्तर बढ़ जाता है। आने वाले 50 से 150 वर्षों में कई तटीय शहर पानी में डूब जायेंगे।

कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ने के कारण

दोस्तो जैसे की आप जानते है की अब बढ़ती जनसंख्या तथा अन्य कारणों के कारण पेड़-पौधों की संख्या लगातार कम होती जा रही जिसके कारण कार्बन-डाइऑक्साइड का उपयोग पौधों की संख्या कम होने से उचित मात्रा में नहीं हो पाता है और सन्तुलन बिगड़ता जा रहा है। इसके साथ ही और भी बहुत से कारण है जैसे हमारे द्वारा गन्दगी को बढ़ावा देना और साफ सफाई न रखना।

मीथेन गैस की मात्रा बढ़ने के कारण

हमारे द्वारा समुद्रों से निकाले जाने वाले विभिन्न प्रकार के ईंधनों के द्वारा इसका उत्पादन किया जाता है और यह वायुमण्डल में तेजी से फैल रहा है जिसके कारण यहां के वातावरण में बहुत ही ज्यादा वृद्धि हो रही है आप जब खाना बनाते है किसी सिलेंडर में भरे गैस से तब आपने उसकी गर्मी जरूर महसूस की होगी की वह कितना गर्म होता है थी उसी प्रकार यही गैस पृथ्वी के तापमान को भी गर्म कर रहा है।

इसका उत्पादन जानवरों द्वारा जैसे गाय और बैल के अपशिष्ट के द्वारा भी निकलता है और भी बहुत सारे कारण है जैसे की कारखाने के जल के द्वारा तथा उसके धुंए के कारण भी मेथेन गैस का निष्काशन किया जाता है।

इस प्रकार के गैस का उत्पादन हमारे ओजोन परत के कम होने के कारण और अधिक बढ़ता जा रहा है। और ओजोन परत को हानि कार्बन डाईऑक्साइड तथा मेथेन से सबसे ज्यादा हो रहा है।

ग्लोबल वॉर्मिंग से बचने के उपाय

  1. इससे बचने के लिए गन्दगी कम करना होगा।
  2. औद्योगिक उत्पादन को ज्यादा बढ़ावा न देते हुए मानव निर्मित वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए।
  3. कार्बन-डाईऑक्साइड की मात्रा को कम करने के लिए पौधे लगाए जाने चाहिए।
  4. मेथेन गैस का उत्पादन सबसे ज्यादा द्रव्य ईंधन द्वारा होता इस कारण इसको कम करने के लिए उचित व्यवस्था करना चाहिए।

Conclusion

यह सिर्फ हमारे देश की ही समस्या नहीं है बल्कि यह पूरे विश्व की समस्या है। इसको लेकर पूरे विश्व के द्वारा संगठन भी बनाये गए है और कई सारे ऐसे भी देश है। जो की इसे अपने लिए बहुत ही ज्वलन्त समस्या बता रहे हैं।

आपको बता दूँ की चीन में वायु प्रदूषण इस हद तक पहुच गया है की अब वहां शुद्ध हवा के लिए कैन का इस्तेमाल होने लगा है। अगर ऐसे ही स्थिति बनी रही तो वो दिन दूर नहीं है। जब भारत जैसे देश में भी इसी प्रकार के शुद्ध हवा के कैन बिकने लगेंगे।

भारत में ऐसे तो अन्य देशों के हिसाब से बहुत ज्यादा मात्रा में खेती की जाती है जिसके कारण यहाँ अभी यह परेशानी सबसे ज्यादा गर्मियों के मौसम में देखने को मिलता है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण आज बड़े-बड़े बर्फ से बने ग्लेशियर पिघलने लगे हैं। जिसके कारण जल का स्तर में वृद्धि हुयी हैं।

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