औद्योगिक नीति 1991 की विशेषताएं

Post a Comment

जनता पार्टी के शासन के पतन के पश्चात् पुनः कांग्रेस पार्टी सत्ता में आयी तथा नवीन औद्योगिक नीति की घोषणा की गयी। यह औद्योगिक नीति पूर्व में घोषित की गयी नीतियों अधिक उदार तथा मुक्त अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर होने वाली है। 

औद्योगिक नीति का उद्देश्य

नब्बे के दशक के दौरान पहले से प्राप्त लाभों को समेकित करने के लिये एवं घरेलू उद्योगों को स्पर्द्धात्मक प्रोत्साहन प्रदान करने के लिये इस नीति में अनेक कदम उठाये गये। वास्तव में यह नीति उदार तथा खुली अर्थव्यवस्था का सूत्रपात करने वाली है। 24 जुलाई 1991 को तत्कालीन उद्योग राज्यमन्त्री श्री पी. जे. कुरियन ने लोकसभा में इस नवीन औद्योगिक नीति की घोषणा की। इस औद्योगिक नीति के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित प्रकार हैं।

  1. देश के भावी औद्योगिक विकास हेतु ढाँचा तैयार करना।
  2. देश के औद्योगिक विकास में आने वाली बाधाओं को दूर करना।
  3. देश की प्रतिस्पर्द्धात्मक क्षमता में वृद्धि करना।
  4. औद्योगिक क्षेत्र में व्यापक भ्रष्टाचार को समाप्त करना।
  5. इस क्षेत्र में अनावश्यक औपचारिकताओं एवं नियन्त्रण को खत्म करना। 
  6.  उत्पादकता एवं लाभकारी रोजगार के विकास हेतु प्रयासों को जारी रखना। 
  7. विदेशी विनियोग एवं प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहित करने के लिए प्रयास करना। 
  8. देश में निजी क्षेत्र के विकास हेतु वातावरण का निर्माण करना । 
  9. पूँजी बाजार का विकास करना। 
  10. देश को औद्योगिक आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर हेतु प्रयत्न करना। 
  11. सामाजिक न्याय के लिए प्रयास करना। 
  12. देश में उपलब्ध संसाधन का कुशलतम उपयोग करना । 
  13. औद्योगिक निष्पादन में सुधार हेतु प्रयत्न करना।

औद्योगिक नीति 1991 की विशेषताएं

औद्योगिक नीति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

इस औद्योगिक नीति में सार्वजनिक क्षेत्र या लोक उपक्रम के क्रम में निम्नलिखित बातों का समावेश किया गया है

1. कुछ विशिष्ट उद्योगों में ही विनियोग 

सरकार ने इस नीति में इस बात पर बल दिया है कि केवल सैनिक साजो-सामान परमाणु ऊर्जा, खनन, रेल परिवहन में ही सामान्यतया विनियोग करेगी तथा अन्य क्षेत्रों को निजी उद्योगपतियों के लिये छोड़ देगी ।

2. आरक्षित क्षेत्र 

इस नीति में सरकारी क्षेत्र के लिये आरक्षित सूची में अब 17 क्षेत्रों के स्थान पर मात्र 8 क्षेत्र ही होंगे जो क्रमशः इस प्रकार हैं।

  1. शस्त्र,गोला बारूद, सम्बन्धित सुरक्षा उपकरण, सेना के लिये विमान एवं जलपोत, 
  2. आणविक ऊर्जा, 
  3. कोयला एवं लिग्नाइट,
  4. खनिज तेल, 
  5. लौह, मैंगनीज, क्रोम, जिप्सम, गन्धक, सोना, हीरा खनन आदि, 
  6. ताँबा,जस्ता, शीशा, टिन, 
  7. आण्विक ऊर्जा में प्रयुक्त होने वाले खनिज, 
  8. रेल परिवहन।

3. जनता की भागीदारी 

सार्वजनिक क्षेत्र में जनता की भागीदारी के लिये कुछ उद्योगों के अंश आम जनता, विशिष्ट संस्थाओं तथा कर्मचारियों आदि को बेचे जायेंगे। इस निर्णय से अब सार्वजनिक क्षेत्र के अंश पूँजी बाजार में क्रय-विक्रय के लिये उपलब्ध हो सकेंगे।

4. प्रबन्ध व्यवस्था में सुधार 

सार्वजनिक क्षेत्र की प्रबन्ध व्यवस्था में सुधार हेतु अनेक कदम उठाये गये। जैसे - पेशेवर प्रबन्धकों की नियुक्ति, प्रबन्धकों को अधिक अधिकार आदि। इसका आधार प्रबन्ध में सुधार है। 

5. रुग्ण उपक्रमों के सम्बन्ध में नीति

जो उपक्रम निरन्तर रुग्ण चल रहे हैं उनके सुधार के लिये उन्हें औद्योगिक एवं वित्तीय पुनर्निर्माण मण्डल या इसी प्रकार की अन्य संस्थाओं को सौंपा जायेगा। इस क्रम में इस बात का पूरा ध्यान रखा जायेगा कि श्रमिकों के हितों पर कुठाराघात न हो अर्थात् श्रमिकों के हितों को ध्यान में रखा जायेगा।

6. कामकाज में सुधार हेतु प्रयास 

सार्वजनिक उपक्रमों में कामकाज के सुधार हेतु आपसी सहमति, समझौते पर अधिक बल दिया जायेगा। प्रबन्धकों को इस क्रम में अधिक स्वतन्त्रता प्रदान की जायेगी, साथ ही अधिक जवाबदेयता भी। इन समझौतों को संसद में भी चर्चा हेतु रखा जायेगा।

7. श्रमिकों की सुरक्षा 

इस नीति में श्रम सुरक्षा एवं श्रम कल्याण को प्राथमिकता दी गयी है। सार्वजनिक क्षेत्र में कार्यरत श्रा कों की सुरक्षा हेतु सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था प्रारम्भ की जायेगी जिसमें श्रमिकों की छँटनी आदि की दशा में उनक पुनर्वास को क्रम में व्यवस्था की जायेगी। 

निजी क्षेत्र के क्रम में नीति

वास्तव में यह नीति सार्वजनिक क्षेत्र की अपेक्षा निजी क्षेत्र को अधिक बढ़ावा देने वाली तथा इस क्षेत्र के विकास एवं विस्तार को अधिक गति प्रदान करने के उद्देश्य से बनायी गयी है । निजी क्षेत्र के सम्बन्ध में इस नीति में निम्नलिखित बातें हैं।

(अ) निजी क्षेत्र की भूमिका का विकास

सार्वजनिक क्षेत्र के लिये आरक्षित उद्योगों की सूची में से उद्योगों को निजी क्षेत्र द्वारा भी स्थापित करने की छूट देकर निजी क्षेत्र के कार्यक्षेत्र का विस्तार किया गया है। इस नीति में निजी क्षेत्र को अब अधिक विकास के अवसर प्रदान किये गये है।

(ब) लाइसेन्स प्रणाली में संशोधन 

लाइसेंसिंग प्रणाली में संशोधन करके इस नीति में मात्र 18 उद्योगों को छोड़कर शेष सभी उद्योगों की स्थापना के लिये निजी क्षेत्र को लाइसेन्स लेने की व्यवस्था से मुक्त कर दिया गया है। ये उद्योग निम्नलिखित हैं

  1. कोयला एवं लिग्नाइट, 
  2. पेट्रोल शोधक, 
  3. शराब, 
  4. चीनी, 
  5. पशु-चर्बी एवं तेल, 
  6. सिगरेट, सिगार आदि, 
  7. एस्बेस्टस, 
  8. प्लाईवुड एवं प्लाईवुड से सम्बन्धित उत्पाद, 
  9. कच्ची खालें तथा चमड़ा, 
  10. फर की खाल, 
  11. कार, 
  12. कागज तथा अखबारी कागज, 
  13. इलेक्ट्रोनिक्स, वायुयान तथा रक्षा उपकरण, 
  14. औद्योगिक विस्फोटक सामग्री तथा माचिस, 
  15. खतरनाक रसायन, 
  16. औषधि तथा दवाइयाँ, 
  17. मनोरंजन इलेक्ट्रोनिक उपकरण टी. वी. वी., सी. आर. आदि, 
  18. घरेलू उत्पाद तथा रेफ्रिजरेटर, वाशिंग मशीन, ए. सी. आदि।

लघु उद्योगों के क्रम में नीति

लघु उद्योगों को विशेष महत्व देते हुये औद्योगिक नीति में इस क्रम में निम्नलिखित बातों को स्वीकार किया गया है।

1. पूँजी सीमा का पुनः निर्धारण लघु उद्योगों का निर्धारण उनकी विनियोजित पूँजी से लिया जाता है अब आज लघु उद्योग उसे माना जायेगा जिस में 5 लाख रुपये (संयन्त्र एवं मशीन पर विनियोजन) तथा पूँजी विनियोग की गयी हो । लघु उद्योगों की दशा में यह विनियोजन सीमा 60 लाख रुपये तक तथा सहायक उद्योगों की दशा में 75 लाख रुपये होगी ।

2. आरक्षण लघु उद्योगों के लिये 836 वस्तुओं के उत्पादन का आरक्षण होगा अर्थात् उपर्युक्त सूची में वर्णित 836 वस्तुओं का अन्य क्षेत्रों द्वारा नहीं किया जा सकेगा।

3. लाइसेन्स व्यवस्था से छूट लघु उद्योगों को लाइसेन्स व्यवस्था से पूर्णतः मुक्त रखा गया से है । 

4. इस नीति के तहत अब लघु उद्योग अपनी अंशधारिता का 24 प्रतिशत तक हिस्सा वृहत् उद्योगों को दे सकता है।

5. एक खिड़की ऋण-योजना के तहत परियोजना हेतु ऋण की रकम 20 लाख रुपये कर दी गयी है। 

उद्योगों को कानूनी तथा प्रशासनिक नियन्त्रणों से मुक्ति - इस नीति में अनेक प्रशासनिक एवं कानूनी व्यवस्थाओं से मुक्ति देकर उद्योगों के विकास एवं विस्तार प्रक्रिया को सरल बना दिया गया है। इस हेतु एकाधिकार एवं प्रतिबन्धात्मक व्यापार व्यवहार अधिनियम में भी संशोधन किया गया ।

विदेशी पूँजी विनियोजन एवं प्रौद्योगिकी के क्रम में नीति

इस क्रम में निम्नलिखित बातों का समावेश किया गया है

1. उच्च प्राथमिकता वाले 34 उद्योगों में विदेशी पूँजी का भाग 51 प्रतिशत तक का हो सकता है। 

2. उपयुक्त प्रकार के पूँजी विनियोजन वाली औद्योगिक इकाइयों पर कलपुर्जे, कच्चे माल तथा तकनीकी जानकारी के आयात के क्रम में सामान्य नियम लागू होंगे।

3. विदेशी उद्यमियों को पूँजी निवेश हेतु प्रेरित किया जायेगा ।

4. गैर-प्राथमिकता प्राप्त उद्योगों में विदेशी पूँजी निवेश की प्रक्रिया को अधिक सरल बनाया गया है। 5. विदेशी तकनीकी विशेषज्ञों की नियुक्ति एवं देश में ही विकसित तकनीकी के विदेशों में परीक्षण हेतु किसी प्रकार से पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी।

जनसंख्या, पर्यावरण एवं उद्योग

ऐसे नगर जिनकी जनसंख्या 10 लाख से अधिक है, उन नगरों में इलेक्ट्रोनिक्स एवं गैर-प्रदूषणकारी उद्योगों को ही स्थापित करने की अनुमति दी जायेगी । अन्य उद्योगों की स्थापना नगर की सीमा से 25 किमी. दूर की जायेगी। पर्यावरण की सुरक्षा तथा जनसंख्या के घनत्व को कम करने के उद्देश्य से यह नीति अपनायी गयी है ।

श्रमिकों के सम्बन्ध में नीति

श्रमिकों के सम्बन्ध में यह औद्योगिक नीति उनके हितों को संरक्षण प्रदान करने वाली है। इस नीति में श्रमिकों के हितों की सुरक्षा, श्रम कल्याणकारी योजनाओं में अभिवृद्धि, तकनीकी परिवर्तन के अनुरूप श्रमिकों को तैयार करने हेतु प्रशिक्षण एवं कौशल विकास कार्यक्रम प्रारम्भ करने, संस्था की प्रगति, विकास तथा प्रबन्ध में भागीदारी तथा रुग्ण उपक्रमों को श्रमिक सहकारी समितियों के द्वारा संचालित करने वाली बात कही गयी है।

Related Posts

Post a Comment