समास किसे कहते हैं - samas kise kahte hai

समास शब्द का अर्थ होता है - संक्षेप या लाघव। यह व्याकरण का महत्त्वपूर्ण पारिभाषिक शब्द हैं। 'दो या दो से अधिक शब्दों (पदों) का परस्पर सम्बन्ध बतलाने वाले शब्दों अथवा प्रत्ययों का लोप होने पर उन दो या अधिक शब्दों में जो एक स्वतंत्र शब्द बनता है, उन शब्दों को सामासिक शब्द कहते हैं और उन ( दो या दो से अधिक) शब्दों के संयोग को समास की संज्ञा दी जाती है।

एक विभक्तित्व और एक पदत्व समास की प्रमुख विशेषता है। समास संज्ञा पदों का ही होता है, क्रिया पदों का नहीं। संक्षिप्ततः दो या अधिक पद जब अपनी विभक्ति का लोप कर परस्पर मिल जाते हैं, तो उसे ही समास कहा जाता है।

समास के मूलत: चार और प्रकारान्तर से 6 भेद होते हैं - 

  1. द्वन्द्व समास
  2. अव्ययीभाव समास
  3. तत्पुरुष समास
  4. कर्मधारय समास
  5. द्विगु समास
  6. बहुब्रीहि समास

1. द्वन्द्व समास 

द्वन्द्व समास में जिन दो पदों का मेल होता है वे दोनों ही पद प्रधान होते हैं। इनके बीच योजक चिह्न, 'तथा' 'व', 'और' का लोप हो जाता है।

  • रात और दिन = रात-दिन
  • दाल और भात = दाल-भात
  • सीता और राम = सीता-राम
  • पाप व पुण्य = पाप-पुण्य
  • दाल और रोटी = दाल-रोटी

यहाँ दोनों पद प्रधान हैं। दोनों पदों का समान महत्व है। इनके बीच योजक चिन्ह लगाकर योजक शब्दों ‘या’, ‘और’ का लोप कर दिया गया । द्वन्द्व समास, इतरेत्तर द्वन्द्व, समाहार द्वन्द्व व वैकल्पिक द्वन्द्व के रूप में विभाजित किया जाता है।

समास किसे कहते हैं - samas kise kahte hai

दोनों पदों का अस्तित्व इतरेत्तर द्वन्द्व है। दोनों पदों का अस्तित्व न होकर समुच्चय में समाहित होना समाहार द्वन्द्व है। दोनों पदों के बीच 'या', 'अथवा' का विकल्प वैकल्पिक द्वन्द्व कहलाता है।

2. अव्ययीभाव समास 

यहाँ जिन दो पदों का मेल होता है उनमें पूर्व पद प्रधान होता है। इसका पूर्व पद अव्यय या अविकारी शब्द होता है अर्थात् इसका रूप परिवर्तन नहीं होता। पूर्व पद प्रधान अव्ययी भाव समास कहलाता है। ऐसे समस्त पदों का विग्रह करने में कठिनाई होती है। 

  • प्रतिदिन ( दिन-रात ) 
  • यथाशक्ति ( शक्ति के अनुसार )
  • भरपेट ( पेट भरकर )
  • आजन्म ( जन्म भर )
  • जन्मान्ध ( जन्म से अन्धा ) 
  • आमरण ( मरने तक )
  • आजीवन ( जीवन भर )

इनमें पूर्व पद अविकारी शब्द है। इनके रूप का क्षय नहीं होता है। इसी कारण इसे अव्यय कहते हैं। 

3. तत्पुरुष समास

तत्पुरुष समास में उत्तर पद प्रधान होता है। इसमें विभक्ति या कारक चिन्हों का लोप हो जाता है। इन्हीं कारकों के आधार पर इनका विभाजन और नामकरण किया गया है। 

  • राजा का पुत्र - राजपुत्र
  • बैलों की गाड़ी - बैलगाड़ी 
  • शोक से आकुल - शोकाकुल
  • हाथ के लिए कड़ी - हथकड़ी
  • चितचोर - चित को चुराने वाला

विभक्ति कारक के आधार पर इसके 6 भेद किये जाते हैं। 

  1. कर्म तत्पुरुष
  2. करण तत्पुरुष
  3. सम्प्रदान तत्पुरुष
  4. अपादान तत्पुरुष
  5. सम्बन्ध तत्पुरुष
  6. अधिकरण

1. कर्म तत्पुरुष - जिसमें कर्म कारक की विभक्ति ‘को' का लोप हो जाता है, कर्म तत्पुरुष कहलाता है। जैसे - माखन को चुराने वाला = माखनचोर स्वर्ग को गया हुआ = स्वर्गगत। 

2. करण तत्पुरुष - जिसमें कारण कारक की विभक्ति 'से' का लोप हो जाता है, करण तत्पुरुष कहलाता है। जैसे - नीति से युक्त = नीतियुक्त। शोक से आकुल = शोकाकुल। कलम से बद्ध = कलमबद्ध। 

3. सम्प्रदान तत्पुरुष – जिसमें सम्प्रदान कारक की विभक्ति ‘के लिए' का लोप हो जाता है, सम्प्रदान तत्पुरुष कहलाता है। जैसे- देश के लिए भक्ति - देश भक्ति। राह के लिए खर्च - राहखर्च। हाथ के लिए कड़ी - हथकड़ी।

4. अपादान तत्पुरुष - जिसमें अपादान कारक की विभक्ति ‘से' का लोप हो जाता है, अपादान तत्पुरुष कहलाता है। यहाँ ‘से’ का प्रयोग सम्बन्ध विच्छेद के लिए होता है। जैसे ऋण से मुक्त - ऋणमुक्त। चिन्ता से मुक्त - चिन्तामुक्त। रण से भागने वाला - रणछोड़। पथ से भ्रष्ट - पथभ्रष्ट। 

5. सम्बन्ध तत्पुरुष - जिसमें सम्बन्ध कारक की विभक्ति (का, की, के) का लोप हो जाता है, सम्बन्ध तत्पुरुष कहलाता है। जैसे - राष्ट्र का पिता - राष्ट्रपिता। राजा का पुत्र = राजपुत्र। स्वर की साधना - स्वरसाधना। देशभक्ति = देश के प्रति भक्ति। सेना का पति - सेनापति। 

6. अधिकरण तत्पुरुष - जहाँ अधिकरण कारक की विभक्ति ‘में’ और ‘पर' का लोप हो जाता है, अधिकरण तत्पुरुष कहलाता है। जैसे- ध्यान में मग्न = ध्यानमग्न। अमेरिकावासी- अमेरिका में निवास करने वाला। आप पर बीती = आपबीती। भारत में रहने वाला = भारतवासी।

उपर्युक्त 6 तत्पुरुषों का समाहार तत्पुरुष में है, कर्ता कारक की विभक्ति को एक स्वतन्त्र रूप दिया गया है। वही कर्मधारय कहलाता है।

4. कर्मधारय समास

यह तत्पुरुष का ही एक रूप है। इसमें भी उत्तर पद ही प्रधान होता है। इस समास में एक ही कारक कर्ता की ही विभक्ति आती है। इसमें पूर्व पद गुणवाचक विशेषण होता है तथा उत्तर पद विशेषण। पूर्व पद, उत्तर पद की विशेषता बताता है। जैसे -

  • नील गगन = नीला आकाश
  • रक्त कमल = लाल कमल
  • भव सागर = भवरूपी सागर
  • विद्युल्लता = विद्युत् जैसी लता

5. द्विगु समास - द्विगु समास कर्मधारय समास का ही एक रूप है। इसमें पूर्व पद संख्यावाचक विशेषण होता है। इसमें भी उत्तर पद प्रधान होता है। जैसे - 

  • पंचभुज = पाँच भुजा 
  • त्रिलोक = तीनों लोक
  • पंचमुखी = पाँच मुख वाला
  • नव रस = नौ रसों का समूह
  • चौराहा = चार राहों का समूह 
  • नवग्रह = नौ ग्रहों का समूह
  • पंचशील = पाँच शीलों वाला

6. बहुब्रीहि समास - इस समास में दोनों पद, अप्रधान या गौण होते हैं। यहाँ दोनों पद मिलकर एक तीसरे ही अर्थ की प्रतीति कराते हैं। इसका अर्थ रूढ़ि या परम्परा से ज्ञात किया जाता है अर्थात् जिसमें दोनों पद प्रधान न हों और किसी अन्य अर्थ की प्रधानता हो, बहुब्रीहि समास कहलाता है। जैसे 

  • लम्बोदर = लम्बा है उदर जिसका = गणेश
  • दशानन = दस है आनन जिसका = रावण
  • पीताम्बर = पीला है वस्त्र जिसका = विष्णु
  • वीणापणि = वीणा है हाथों में जिसके = सरस्वती
  • घनश्याम = घन की तरह श्याम है जो = कृष्ण
  • चक्रपाणि = चक्र है पाणि (हाथ) में जिसके = विष्णु 

इन्हें कर्मधारय या द्विगु में भी समाहित किया जा सकता है। जब ये सामान्य अर्थ में प्रयुक्त होंगे तो कर्मधारय या द्विगु होंगे, लेकिन जब अन्य अर्थ में प्रयुक्त होंगे तो बहुब्रीहि कहलायेंगे।

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