सौर मंडल किसे कहते हैं - Solar system in Hindi

रात के समय आसमान में अनगिनत तारे चमकते हैं, जो किसी न किसी सौर मंडल का हिस्सा है। पूरे ब्रह्मांड में ऐसे लाखों सौर मंडल मौजूद हैं। हमारा अपना सौर मंडल मिल्की वे नामक एक आकाशगंगा का हिस्सा है, और यह इस विशाल आकाशगंगा के किनारे पर स्थित है।

हमारे सौर मंडल के सभी ग्रह और खगोलीय पिंड सूर्य के गुरुत्वाकर्षण द्वारा बंधे हुए हैं। सौर मंडल में बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस, नेपच्यून और प्लूटो ग्रह शामिल हैं, साथ ही बौने ग्रह, दर्जनों चंद्रमा और लाखों क्षुद्रग्रह, धूमकेतु और उल्कापिंड भी शामिल हैं।

सौर मंडल किसे कहते हैं

सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने वाले विभिन्न ग्रहों, धूमकेतुओं, उल्काओं और अन्य आकाशीय पिंडों के समूह को सौरमंडल कहते हैं। सूर्य ऊर्जा का मुख्य स्रोत है। सूर्य की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण सभी ग्रह इसका परिक्रमा करते हैं।

हमारे सौर मंडल में आठ ग्रह हैं जिसमे से बृहस्पति सबसे बड़ा है। इसके अलावा कई पिंड और छोटी ग्रह हैं। जो सूर्य की परिक्रमा करते हैं। ग्रहों, उपग्रह, धूमकेतु, क्षुद्रग्रह, और उल्कापिंड सौरमंडल के सदस्य होते है। सूर्य सौरमंडल में विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा का सबसे समृद्ध स्रोत है।

सौर मंडल किसे कहते हैं - Solar system in Hindi

अंतरिक्ष में तारों से ज़्यादा ग्रह हैं। वैज्ञानिकों ने हमारी आकाशगंगा में तारों की परिक्रमा करने वाले कई ग्रहों की खोज की है। दरअसल, हमारी आकाशगंगा में मौजूद सैकड़ों अरबों तारों में से ज़्यादातर के पास अपने ग्रह हैं। और हमारी मिल्की वे आकाशगंगा पूरे ब्रह्मांड में मौजूद 100 अरब से ज़्यादा आकाशगंगाओं में से सिर्फ़ एक है।

आकार और दूरी - सौरमंडल बहुत बड़ा है, यह हमारे परिचित आठ ग्रहों से कहीं आगे तक फैला हुआ है। यह लगभग 200,000 खगोलीय इकाइयों (एयू) में फैला हुआ है, जो कि लगभग 30 ट्रिलियन किलोमीटर के बराबर है। यह विशाल स्थान विभिन्न खगोलीय पिंडों से भरा हुआ है, जिसमें सूर्य, ग्रह, चंद्रमा, क्षुद्रग्रह, धूमकेतु और कुपर बेल्ट शामिल हैं।

हमारा सौरमंडल इतना बड़ा है कि अगर आप किलोमीटर या मील जैसी सामान्य इकाइयों का उपयोग करें तो इसके आकार की कल्पना करना लगभग असंभव है। पृथ्वी से सूर्य की दूरी 14.9 करोड़ किलोमीटर है, लेकिन सबसे दूर के ग्रह नेपच्यून की दूरी लगभग 450 करोड़ किलोमीटर है।

खगोलविद पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी का उपयोग करते हैं, जो 93 मिलियन मील है, इसे खगोलीय इकाई नामक माप की एक नई इकाई के रूप में उपयोग करते हैं। इसे पृथ्वी-सूर्य की कक्षा की दूरी के लिए ठीक 1.00 के रूप में परिभाषित किया गया है, और हम इस दूरी को 1.00 AU कहते हैं।

ग्रह सूर्य से दूरी
(मिलियन किलोमीटर में)
सूर्य से दूरी
(खगोलीय इकाइयों में)
बुध (Mercury) 57 0.38
शुक्र (Venus) 108 0.72
पृथ्वी (Earth) 149 1.00
मंगल (Mars) 228 1.52
बृहस्पति (Jupiter) 780 5.20
शनि (Saturn) 1437 9.58
अरुण (Uranus) 2871 19.14
वरुण (Neptune) 4530 30.20

उत्पत्ति - हमारे सौर मंडल का गठन लगभग 4.5 बिलियन साल पहले गैस और धूल के घने बादल से हुआ था। इसका निर्माण एक विस्फोट के कारण हुआ था। जिसे सुपरनोवा कहा जाता है।

गुरुत्वाकर्षण अधिक होने से सभी धूल अंदर की ओर संघनित होने लगे। आखिरकार कोर में दबाव इतना अधिक था, कि हाइड्रोजन परमाणुओं ने हीलियम का संयोजन और निर्माण करना शुरू कर दिया, जिससे भारी मात्रा में ऊर्जा निकलने लगी। जिसके कारण सूर्य का जन्म हुआ सूर्य उपलब्ध पदार्थ के 99 प्रतिशत भाग से बना हैं।

बचे हुए मलवे से ग्रहों, बौने ग्रह और चंद्रमाओं निर्माण हुआ। अन्य छोटे बचे हुए टुकड़े क्षुद्रग्रह, धूमकेतु, उल्कापिंड और छोटे चंद्रमा में परिवर्तित हो गया।

सूर्य - सौरमंडल के केंद्र में स्थित एक तारा है। यह हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा पिंड है, जिसके चारों ओर पृथ्वी समेत सभी ग्रह घूमते हैं। सूर्य में सौरमंडल का 99.86% द्रव्यमान समाहित है। इसका व्यास लगभग 13 लाख 90 हज़ार किलोमीटर है।

सूर्य पृथ्वी पर जीवन के लिए ऊर्जा का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। यह गर्म प्लाज्मा और गैसों से बना एक विशाल तारा है। लगभग 1.39 मिलियन किलोमीटर के व्यास के साथ, यह पृथ्वी से 109 गुना चौड़ा है।

सूर्य का द्रव्यमान लगभग 73% हाइड्रोजन और 25% हीलियम से बना है, जिसमें ऑक्सीजन, कार्बन, नियॉन, लोहा और अन्य तत्व भी शामिल हैं। हर सेकंड, सूर्य लगभग 600 मिलियन टन हाइड्रोजन को हीलियम में बदल देता है, जिससे ऊर्जा निकलती है। ऐसा करने से, हर सेकंड लगभग 4 मिलियन टन पदार्थ ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है, जिससे सौर मंडल को ऊर्जा मिलती है।

सौर मंडल में कितने ग्रह हैं

सूर्य की परिक्रमा करने वाले आठ मान्यता प्राप्त ग्रह हैं: बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेपच्यून है। ये ग्रह अपनी कक्षाओं का अनुसरण करते हैं और आकार, संरचना और सूर्य से दूरी में भिन्न हैं।

नेपच्यून से परे बौने ग्रहों से भरा एक क्षेत्र है, जिसमें सबसे प्रसिद्ध प्लूटो है। नौवें ग्रह के रूप में वर्गीकृत, प्लूटो को 2006 में अपने आकार और अनियमित कक्षा के कारण बौने ग्रह के रूप में परिभाषित किया गया है।

अब तक खोजे गए ज़्यादातर एक्सोप्लैनेट हमारी आकाशगंगा, मिल्की वे के अपेक्षाकृत छोटे क्षेत्र में हैं। यहाँ तक कि पृथ्वी के सबसे नज़दीकी ज्ञात एक्सोप्लैनेट, प्रॉक्सिमा सेंटॉरी बी लगभग 4 प्रकाश-वर्ष दूर है। हम जानते हैं कि आकाशगंगा में सितारों से ज़्यादा ग्रह हैं।

ग्रहों के नाम औसत तापमान (केल्विन)
1.बुध 440 - 100
2.शुक्र 730
3.पृथ्वी 287
4.मंगल 227
5.बृहस्पति 152
6.शनि 134
7.अरुण 76
8.वरुण 72

(1) बुध (MERCURY) - यह सूर्य से सबसे निकट का ग्रह हैं। आठ ग्रहों में से सबसे छोटा ग्रह है, किंतु यह पृथ्वी के चन्द्रमा से थोड़ा बड़ा है। इसका व्यास 488 किलोमीटर है। यह सर्य से मात्र 576 लाख किलोमीटर की दूरी पर हैं। बुध ग्रह को सूर्य की परिक्रमा पुरी करने में 88 दिन का समय लगता है। अर्थात इस ग्रह का एक दिन और रात पृथ्वी के 88 दिन के बराबर होता हैं।

बुध का कोई उपग्रह नहीं है। इस ग्रह का आधिकतम तापमान 350 सेण्टीग्रेट रहता है। अत: यहाँ पर किसी भी प्रकार के जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। बुध अपनी दीर्घवृत्तीय कक्षा में 1.76,000 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से घूमता है। यह गति इसे सूर्य की गुरुत्वाकर्षण शक्ति की पकड़ से सुरक्षित रखती है। बुध पर वायुमंडल नहीं है। अतः यहाँ दिन बहुत अधिक गर्म और रातें बर्फीली होती हैं। इसका द्रव्यमान पृथ्वी का 5.5% है।

(2) शुक्र (VENUS) - यह ग्रह बुध और मंगल से बड़ा एवं अन्य ग्रहों से छोटा है। इसका व्यास 12,104 किलोमीटर है। इसकी सूर्य से दूरी 10 करोड 2 लाख किलोमीटर है। यहाँ का एक दिन पृथ्वी का लगभग 3/4 होता है एवं इसे सूर्य की परिक्रमा पूरी करने में पच्ची के 225 दिन लगते हैं। यह ग्रह तेज चमकने वाला है। लगभग पृथ्वी के आकार और भार वाला शुक्र ग्रह गर्म और तपता हुआ ग्रह है। इसका सूर्य के सम्मुख अधिकतम तापमान 100 सेण्टीग्रेट है। अतः यहाँ भी जीवन के विकास की सम्भावना नहीं पाई जाता।

सूर्य के विपरीत भाग में तापमान -23 डिग्री सेण्टीग्रेट रहता है। इस ग्रह के चारों ओर सल्फ्यूरिक एसिड के जमे हुए बादल हैं। अनुसंधान और राडार मैपिंग द्वारा इसके बादलों को भेदने से पता चला है कि शुक्र की सतह चट्टानों और ज्वालामुखियों से भरी है। प्रातः पूर्व एवं सायं पश्चिम में दिखाई पड़ने के कारण इसे भोर का तारा (Morning Star) एवं संध्या तारा कहा जाता है। यह आकार एवं द्रव्यमान में पृथ्वी से थोड़ा छोटा है अतः कुछ खगोलशास्त्री इसे पृथ्वी की बहन भी कहते हैं।

(3) पृथ्वी (EARTH) - यह सौरमण्डल का सबसे अधिक ज्ञात एवं मानव व जैव जगत के लिए सबसे महत्वपूर्ण ग्रह है। यह बुध, शुक्र और मंगल से बड़ा और शेष ग्रहों से छोटा है। इसका व्यास 12.756 किलोमीटर है। इसकी सूर्य से दूरी 14 करोड़ 96 लाख किलोमीटर है। पृथ्वी अपनी स्थिति की दृष्टि से सूर्य से तीसरे स्थान पर है।

इसे अपनी धुरी पर एक चक्कर पूरा करने में लगभग चौबीस घण्टे लगते हैं एवं सूर्य की परिक्रमा पूरा करने में 365 दिन 6 घण्टे का समय (एक वर्ष) लगता है। यह यह अपनी कीली पर 30.1/2 झुका हुआ है। इससे पृथ्वी पर सौर ताप प्राप्ति, वर्षा एवं अन्य अनेक क्रियाओं तथा ऋतुओं पर विशेष प्रभाव पड़ता है।

पृथ्वी पर औसत तापमान, नमी एवं विशेष वायुमण्डल की दशाएं आदि सभी मिलकर यहाँ के जीवन के विकास में विशेष सहायक रहे हैं। ऐसा या इससे मिलता वायुमंडल केवल मंगल ग्रह पर ही है जहाँ संभवतः कभी भिन्न प्रकार का जीवन-स्वरूप रहा होगा। यहां का अधिकतम तापमान 58.4 सेण्टीग्रेट है।इसका एक उपग्रह चंद्रमा है । यह उपग्रह पृथ्वी से मात्र चार लाख किलोमीटर दूर है। मध्य तापमान, ऑक्सीजन और अधिक मात्रा में जल की उपस्थिति के कारण पृथ्वी सौर मण्डल का एकमात्र ऐसा ग्रह है जहां पर जीवन हैं। लेकिन जिस तरह से मनुष्य स्वयं इसकी सतह और वातावरण को नष्ट कर रहा है.सम्भवतः भविष्य में ऐसा ग्रह बन जायेगा, जिसे यहीं के निवासियों ने नष्ट किया हो।

(4) मंगल (MARS) - यह यह बुध से बड़ा है एवं सूर्य से चौथे स्थान पर स्थित है। इसका व्यास 6787 किलोमीटर है। सूर्य से इसकी दरी 22 करोड़ 79 लाख किलोमीटर है। इसे सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करने में पृथ्वी के 687 दिन का समय लगता है। इसके फोबोस तथा डिमोस नामक दो उपग्रह हैं। यहाँ का तापमान 30 सेण्टीग्रेट है। अतः यहाँ पर जीवन होने की सम्भावना की जाती रही है।

जब सन 1909 में यह ग्रह पृथ्वी के समीप था, तब अमेरिकी विद्वान लोवेल ने इसे एरिजोना में दूरबीन की सहायता से देखा तथा महत्वपूर्ण तथ्य सामने रखे जिनके सम्बन्ध मे सभी विद्वान एकमत नहीं थे। NASA द्वारा प्रस्तुत सन 1992 की खोज एवं रिपोट के अनुसार आज से लगभग 100 करोड वर्ष पूर्व यहाँ पर विशाल सागर या जल भंडार या तब संभवतः यहाँ विशेष प्रकार का जैव-विकसित रहा होगा। मंगल की बंजर भूमि का रंग गुलाबी है। अतः इसे लाल ग्रह भी कहा जाता है। यहाँ पर चट्टानें और शिलाखंड हैं। इसकी सतह पर गहरे गड्ढे, ज्वालामुखी और घाटियाँ हैं।

(5) बृहस्पति (JUPITER) यह सौर मण्डल का सबसे बड़ा ग्रह है। यह सूर्य से पांचवें स्थान पर है। इसकी सूर्य से दूरी 77 करोड़ 83 लाख किलोमीटर है। इसका व्यास 1,42,800 किलोमीटर है। इसे सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करने में पृथ्वी के 11 वर्ष 9 माह का समय लग जाता है। इसका तापमान -132 सेण्टीग्रेट है। अतः यहाँ किसी भी प्रकार का जीवन संभव नहीं है।

इसके 16 उपग्रह हैं, इनमें से गैनिमीड उपग्रह तो बुध, मंगल व बृहस्पति से भी बड़ा है। अन्य उपग्रहों में यूरोपा, कैलिस्टो एवं आलमथिया आदि हैं। इसके चौदहवें उपग्रह की खोज सन् 1917 में हुई थी। बृहस्पति ग्रह का द्रव्यमान सौरमण्डल के सभी ग्रहों का 71% हैं। दूर के उपग्रहों में से दो विपरीत दिशा में परिभ्रमण करते हैं। यहाँ विचित्र विशेषता वाले उपग्रह भी है।

(6) शनि (SATURN) - यह बृहस्पति के पश्चात् सबसे बड़ा ग्रह है। इसका व्यास 1,20,000 किलोमीटर है। यह सूर्य से 142.7 करोड़ किलोमीटर दूर है। इसे सूर्य की परिक्रमा पूरी करने में पृथ्वी के 29.5 वर्ष लग जाते हैं। यहाँ पर भीषण शीत पड़ती है और अधिकतम तापमान भी -151° सेण्टीग्रेट रहता हैं। 

इसके 21 उपग्रह हैं। सबसे बड़ा उपग्रह टाइटन है। यह आकार में बुध ग्रह के बराबर है। अन्य उपग्रहों में मीमास, एनसीलाहु, टेथिस, डीऑन, रीया, हाइपेरियन, झ्यापेट्स तथा फोबे हैं। फोबे उपग्रह शनि की कक्षा में, विपरीत दिशा में परिक्रमा करता है। शनि ग्रह के चारों ओर एक सुन्दर वलय बनी हुई है। इस वलय की उत्पत्ति भीतरी उपग्रहों के विखण्डित होकर धूल के कणों में बदलने से हुई है। यह वलय शनि की सतह से मात्र 13 हजार किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

इन दोनों की उपस्थिति से जीवन के लक्षण का पता चलता है, लेकिन यहाँ पर जीवन का अस्तित्व नहीं मिला है। शनि ग्रह पर हाइड्रोजन एवं हीलियम गैस पायी जाती हैं तथा कुछ मात्रा में मीथेन एवं अमोनिया भी मिलती हैं। शनि ग्रह की प्रमख विशेषता उसके चारों ओर गैस हिमकण एवं छोटे-छोटे ठोस चट्टानों के मलवे का पाया जाना है। इस ग्रह पर सूर्य का केवल 1/100 वाँ भाग ही पड़ता है।

(7) अरुण (NAPTUNE) - यह ग्रह बृहस्पति व शनि से छोटा है। इसका व्यास 51.800 किलोमीटर है। यह सौर मण्डल की बाहरी सीमा के निकट सूर्य से 286.96 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। आकार में यह वरुण से कुछ बड़ा है। इसमें 15 उपग्रह हैं। इनमें एरियल, अम्बिरयल,टिटेनिया, ओबेरान तथा मिराण्डा आदि प्रमुख है। इसे सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करने में पृथ्वी के 84 वर्ष का समय लगता है। यहाँ के तापमान -200° सेण्टीग्रेड से भी नीचे रहते हैं। वोयजर-2 ने नेपच्यून की 5 वलयों का पता लगाया है।

इसके नाम क्रमशः अल्फा, बीटा,गामा, डेल्टा और इपसिलॉन आदि हैं। अरुण ग्रह की खोज सन् 1781 में सर विलियम हरशल नामक विद्वान ने की थी। प्रथम उपग्रह टाइटन है जो पृथ्वी के चन्द्रमा से बड़ा है तथा वरुण की सतह के समीप है। दूसरा उपग्रह मेरीड है। इसमें से तीन वलय इतनी हल्की थीं कि उनका पता एक सप्ताह बाद लगा। खगोलविदों का अनुमान है कि इसकी बाहरी वलय बर्फ चन्द्रिकाओं से भरी है. और आंतरिक वलय पतली और कठोर है। यह विपरीत दिशा में घूमता है।

(8) वरुण (URANUS) - इस ग्रह की खोज सन 1846 में जर्मन खगोलज जोहान गाले ने की। यह ग्रह बृहस्पति, शनि, एवं अरुण से छोटा तथा अन्य ग्रहो से बड़ा है। इसका व्यास 49,500 किलोमीटर ह. इसकी सूर्य से दूरी 449.66 करोड़ किलोमीटर है। इसे सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करने में पृथ्वी के 164 वर्ष का समय लगता है। इसके 8 उपग्रह है। यहाँ का तापमान -185 सेण्टीग्रेड रहता है। युरेनस एकमात्र ऐसा है जो एक ध्रुव से दूसरे ध्रुव तक अपनी प्रदक्षिणा कक्ष में सूर्य के सम्मख रहता है। वोयजर-2 ने 9 गहरी कसी हई व्लय और कार्क स्क्रू के आकार का 40 लाख वर्ग किलोमीटर से बड़े चम्बकीय क्षेत्र का पता लगाया।

बौने ग्रह कितने हैं

प्लूटो का एक अलग इतिहास है। 2006 से अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ के ग्रहीय मानदंडों के अनुसार, प्लूटो को ग्रह नहीं, एक बौना ग्रह माना जाता है। 14 जुलाई, 2015 को, नासा के न्यू होराइजन्स अंतरिक्ष यान ने अपनी ऐतिहासिक उड़ान भरी - प्लूटो और उसके चंद्रमाओं की पहली नज़दीकी तस्वीर प्रदान की और अन्य डेटा एकत्र किया जिसने सौर मंडल की बाहरी सीमाओं पर इन रहस्यमय दुनियाओं के बारे में हमारी समझ को बदल दिया है।

सेरेस मंगल और बृहस्पति के बीच स्थित क्षुद्रग्रह बेल्ट में सबसे बड़ा पिंड है, और अनोखी बात यह है कि यह आंतरिक सौर मंडल का एकमात्र बौना ग्रह है। यह क्षुद्रग्रह बेल्ट में खोजा गया पहला पिंड था, जिसे 1801 में ग्यूसेप पियाज़ी ने देखा था।

कई सालों तक, सेरेस को सिर्फ़ एक क्षुद्रग्रह माना जाता था। हालाँकि, अपने बड़े आकार और अनूठी विशेषताओं के कारण - जो अपने चट्टानी पड़ोसियों से बहुत अलग है - इसे 2006 में अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ द्वारा बौने ग्रह के रूप में पुनर्वर्गीकृत किया गया था। उल्लेखनीय रूप से, सेरेस क्षुद्रग्रह बेल्ट के कुल द्रव्यमान का लगभग 25% बनाता है, जो मंगल और बृहस्पति के बीच परिक्रमा करने वाले अनगिनत अन्य पिंडों के बीच इसके महत्व को उजागर करता है।

माकेमेक कई बौने ग्रहों में से एक है जो कुइपर बेल्ट में स्थित है, जो नेपच्यून की कक्षा से परे बर्फीले पिंडों का एक सुदूर क्षेत्र है। प्लूटो, एरिस और हौमिया के साथ, माकेमेक इस बाहरी क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण खगोलीय पिंड है। प्लूटो से थोड़ा छोटा, यह पृथ्वी से दिखाई देने वाला दूसरा सबसे चमकीला कुइपर बेल्ट पिंड है।

माकेमेक को सूर्य के चारों ओर एक चक्कर पूरा करने में लगभग 305 पृथ्वी वर्ष लगते हैं। एरिस के साथ-साथ इसकी खोज ने ग्रह विज्ञान को नया रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन खोजों ने 2006 में अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ (IAU) को ग्रह की परिभाषा को फिर से परिभाषित करने के लिए प्रेरित किया, जिसके परिणामस्वरूप बौने ग्रहों का औपचारिक वर्गीकरण हुआ।

हौमिया एक बौना ग्रह है जो कुइपर बेल्ट में स्थित है। यह अपने अंडाकार, फुटबॉल जैसे आकार के कारण अलग दिखता है, लगभग 385 मील की त्रिज्या के साथ, हौमिया पृथ्वी से लगभग 10 गुना छोटा है, लेकिन आकार में प्लूटो के बराबर है। हौमिया पर एक दिन सिर्फ़ चार पृथ्वी घंटे तक रहता है, जो इसे सौर मंडल में सबसे तेज़ घूमने वाली बड़ी वस्तुओं में से एक बनाता है।

एरिस हमारे सौर मंडल के सबसे बड़े ज्ञात बौनों में से एक है। यह प्लूटो के समान आकार का है, लेकिन सूर्य से तीन गुना दूर है। एरिस पहली बार प्लूटो से बड़ा दिखाई दिया। इसने वैज्ञानिक समुदाय में एक बहस छेड़ दी जिसने 2006 में एक ग्रह की परिभाषा को स्पष्ट करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ के निर्णय का नेतृत्व किया। प्लूटो, एरिस और इसी तरह की अन्य वस्तुओं को अब बौने ग्रहों के रूप में वर्गीकृत किया गया है। मूल रूप से 2003 UB313 के रूप में नामित, एरिस का नाम प्राचीन यूनानी देवी की कलह के नाम के नाम पर रखा गया है।

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