हाइपरलूप ट्रेन क्या है - Hyperloop train in Hindi

दोस्तों आज में आपके सामने वो जानकारी रखने जा रहा हूँ जो की भविष्य में आपके हाई स्पीड ट्रेन के सपने को साकार कर सकता है। आज मैं आपके सामने एक ऐसे ट्रेन का जिक्र करने जा रहा हूँ जो की भविष्य में हाइस्पीड ट्रेनों का अगला चरण होगा।

हाइपरलूप ट्रेन क्या है 

हाइपरलूप-वन विमानों की गति से चलने वाली एक ट्रेन है, जिसका विकास अमेरिकी कम्पनी हाइपरलूप-वन द्वारा किया जा रहा है। यह हाई स्पीड ट्रेनों ( मैगलेव, हारमोनी बुलेट आदि ) का अगला चरण या विकल्प है। इसकी रफ्तार ध्वनी की चाल यानी लगभग 1236 किमी/घण्टे होगी।

विश्व के विकसित राष्ट्र हाइपरलूप ट्रेन को अपनाने की पहल कर रहें हैं। अमेरिका व सऊदी अरब ने इसमें विशेष रूचि दिखाई है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह भविष्य में परिवहन की रूपरेखा बदलने की ओर अग्रसर है। 

ट्रेन द्वारा तीव्र गति से अधिक दूरी तय करने के लिए विश्व के कई देशों द्वारा समय-समय पर नई-नई तकनीक का प्रयोग हो रहा है। कभी मैग्लेव तो कभी बुलेट ट्रेन। इसी सन्दर्भ में अगला चरण हाइपरलूप ट्रेन है। अनुमान है की हाइपरलूप ट्रेन जमीन पर ही 1200 किमी प्रति घण्टे की रफ़्तार से सकेगी।

हाइपरलूप ट्रेन चर्चा में क्यों है ?

अमेरिका के नार्थ लॉस वेगास में मई, 2017 में हाइपरलूप-वन ट्रेन का सफल परीक्षण सम्पन्न हुआ। इस परीक्षण में हाइपरलूप-वन ट्रेन 300 मील प्रति घण्टे की रफ़्तार से चली थी। इसके लिए परीक्षण स्थल '' नॉर्थ लॉस वेगास '' के नेवाडा में बनाया गया था। चुम्बकीय तकनीक से लैस पॉड़ ( ट्रैक ) पर हाइपरलूप का दो मील के ट्रैक पर परीक्षण कराया गया था। 

इस ट्रेन को बनाने में जुटे शोधकर्ताओं ने दावा किया है। कि आने वाले वर्षों में वैक्यूम ( बिना हवा ) ट्यूब सिस्टम से गुजरने वाली कैप्सूल जैसी हाइपरलूप 750 मील ( 1224 किमी ) प्रति घण्टे की रफ़्तार से दौड़ सकेगी ,जो एक ध्वनी की चाल माना जाता है। इससे जुड़े विशेषज्ञों का वर्ष 2018 तक पहली हाइपरलूप ट्रेन पटरियों पर दौड़ाने की तैयारी है और वर्ष 2020 तक दुनिया में परिवहन की रूपरेखा बदलने का लक्ष्य रखा गया है।

हाइपरलूप वन में प्रयुक्त तकनीक

हाइपरलूप चुम्बकीय शक्ति पर आधारित एक तकनीक है, जिसके तहत खम्भों के ऊपर ( एलीवेटेड ) पारदर्शी ट्यूब बिछाई जाती है। इस ट्यूब के भीतर हाइपरलूप को उच्च दाब और ताप सहने की क्षमता वाले मिश्र धातु इंकानेल से बने बेहद पतले स्की पर स्थिर किया जाता है। 

इस स्की में बेहद सूक्ष्म छिद्रों के जरिये दबाव डालकर हवा भरी जाती है, जिससे की यह एक एयर ( हवा ) कुशन की तरह काम करने लगता है। स्की में लगे चुम्बक और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक झटके से हाइपरलूप के पॉड ( ट्रैक ) को गति दि जाती है। ट्यूब के भीतर बुलेट जैसी शक्ल की लम्बी सिंगल बोगी हवा में तैरते हुए चलती है।

चुकी इसमें घर्षण बिल्कुल नहीं होता, इसलिए इसकी रफ़्तार 1100 से 1200 किमी/घण्टे या इससे भी अधिक हो सकती है। इसमें बिजली का खर्च बहुत कम होगा और प्रदूषण भी बिल्कुल नहीं होता है।

हाइपरलूप ट्रेन क्या है - Hyperloop train in Hindi

हाइपरलूप की संकल्पना

हाइपरलूप का सम्बन्ध अंतरिक्ष तकनीक से भी जोड़ा जा सकता है। वास्तव में लोगों को अंतरिक्ष की सैर कराने की तैयारी कर रही प्रसिद्ध ' स्पेस एक्स ' कम्पनी के जनक और टेस्ला मोटर्स के सह-संस्थापक और सीईओ ' एलन मस्क ' ने सर्वप्रथम हाइपरलूप तकनीक ' से ट्रेन चलाने के बारे में सोंचा था। 

मास्क ने वर्ष 2013 में हाइपरलूप का प्रस्ताव दुनिया के सामने रखते हुए एलान किया था कि दिनिया में कोई भी संगठन चाहे तो संशाधन जुटाकर हाइपरलूप प्रोजेक्ट पर काम कर सकता है। इसी कारण एलन मस्क के साथ ही संकल्पना की दो अन्य कम्पनियां ' हाइपरलूप-वन और हाइपरलूप ट्रांसपोर्टेशन टेक्नोलॉजीज ' साकार करने में जुटी हुई है।

कैसे साकार होगी परियोजना

लाइव साइंस के मुताबिक, स्पेस एक्स कम्पनी ने सेंट्रल कैलिफोर्निया इलाके में 8 किमी लम्बे परीक्षण ट्रैक का निर्माण करने के लिए जमीन अधिग्रहित कर ली है। यह संकल्पना अभी शुरुआती दौर में है और स्पेस एक्स इसके लिए इंजीनियरों की टीम गठित कर रही है। 

इसकी ओर से कहा गया है कि अगले कुछ महीनों में इसके डिजाइन के बारे में टेक्सास ए एंड एम यूनिवर्सिटी में विस्तार से चर्चा की जाएगी, साथ ही दुनिया भर की सम्बंधित विशेषज्ञता वाली टीमों की ओर से इसके लिए डिजाइन मंगाए जा रहे हैं। विश्व के विकसित देश इस प्रणाली को अपनाने के लिए आगे आ रहे है। 

अमेरिका, कनाडा और सऊदी अरब जैसे देशों ने विशेष रूप से रूचि दिखाई है। इन देशों में ' हाइपरलूप-वन ' नामक इस परिकल्पना को वास्तविक बनाने का कार्य चल रहा है।

हाइपरलूप के कार्य सिद्धांत

हाइपरलूप परिवहन मुख्यतः चुम्बकीय शक्ति पर आधारित एक तकनीक है। इस तकनीक में एक तरह के कैप्सूल या पॉन्ड्स का प्रयोग किया जाएगा, जो विशेष प्रकार से डिजाइन किए गए होंगे। इन कैप्सूल और पॉन्ड्स को एक पारदर्शी ट्यूब पाइप के भीतर उच्च वेग से संचालित किया जाएगा। 

इस तकनीक में पॉड़स या ट्रैक को जमीन से ऊपर बड़े-बड़े पाइपों में इलेक्ट्रिकल चुम्बक पर चलाया जाएगा। इस चुम्बकीय प्रभाव से ये पॉड़स ट्रैक से कुछ ऊपर उठ जाएंगे,जिससे घर्षण कम होगा और गति भी तेज हो जाएगी।

हाइपरलूप ट्रेन के परिचालन सम्बन्धी चुनोतियाँ

हाइपरलूप ट्रेन हाईस्पीड परिवहन के क्षेत्र में एक संकल्पना है, जिसे मूर्त रूप देने के लिए कई देश कार्य कर रहे हैं। चूंकि हाइपरलूप-वन विश्व में अब तक की सबसे हाईस्पीड ट्रेन होगी, 

इसलिए इसके परिचालन में तकनीक, लागत ,सुरक्षा,मानव श्रम, भूमि-अधिग्रहण आदि कई अहम चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है,जिसका विवरण निम्नवत है- हाइपरलूप के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती या मामला सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। सुपरकण्डक्टिंग मैगलेव ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम से जुड़े विशेषज्ञ और अमेरिकी भौतिक विज्ञानी जेम्स पॉवेल ने इसकी सुरक्षा के सम्बन्ध में हाल हि में चिंता जताई है। 

पॉवेल ने लाइव साइंस को दिए एक साक्षात्कार में कहा की जिस स्पीड से हाइपरलूप पॉड़स को चलाने की बात हो रही है,ऐसे में उसे मोड़ा या ढलान पर नियंत्रित करना आसान नहीं होगा। इतना ही नहीं, किसी प्रकार के झटके या उछाल की स्थिति से बचाव के लिए इसके ट्रैक को सीधा और समतल बनाना होगा।

  1. गुरुत्वाकर्षण बल से भी इसकी स्पीड को समायोजित करना होगा एलीवेशन्स में त्वरित बदलाव की स्थिति में यात्री खुद को पूरी तरह से समायोजित हो पाएंगे या नहीं, ये भी अनिश्चित होता है।
  2. इस ट्रेन में प्रयुक्त ट्यूब में कम दबाव ( लो प्रेशर ) वैक्यूम को निश्चित तौर पर बरकरार रखना कठिन होगा, अन्यथा पॉड सभी यात्री आपस में टकरा सकते हैं।
  3. यह प्रोजेक्ट इतना संवेदनशील है की किसी भी जगह किसी भी परिस्थिति में हल्की सि भी क्षति होती है या आतंकियों की ओर से कहीं हल्का सा भी नुकसान पहुंचाया जाता है तो इसका परिणाम बेहद भयानक हो सकता है।
  4. हाइपरलूप पूरी तरह से तकनीक पर आधारित प्रोजेक्ट है, जिस पर वृहद पैमाने पर धनराशि व्यय  होगी।
  5. इस परियोजना को साकार रूप देने में भूमि-अधिग्रहण भी एक प्रमुख चुनौती है। चुकी इस ट्रेन की रफ्तार हवाई जहाज के बराबर है, फिर भी इसका परिचालन जमीन पर ही किया जाएगा। अतः इसके लिए बड़े पैमाने पर भूमि का अधिग्रहण करने की आवश्यकता होगी। इस अधिग्रहण में सरकार और भूमि से सम्बंधित व्यक्ति की मंजूरी भी आवश्यक होगी।
  6. हाइपरलूप-वन में दुर्घटना के दौरान पूरी तरह बन्द ट्यूब के भीतर ऑक्सीजन की कमी हो सकती है। इसलिए कम्पनियों को विमान की तरह ही पॉड के भीतर ऑक्सीजन मास्क की भरपूर व्यवस्था करनी होगी।
  7. इस ट्रेन में सफर करने वाला प्रशिक्षित व्यक्ति ही गति ओर हवा का इतना दबाव झेल सकता है।

हाइपरलूप ट्रेन के फायदे या अनुप्रयोग 

हाइपरलूप ट्रेन की संकल्पना मुख्यतः परिवहन के क्षेत्र में क्रांति लाने वाला विचार है। इसे हाइपरलूप नाम इसलिए दिया गया, क्योकि इसमें परिवहन एक लूप के माध्यम से होगा , जिससे इसकी गति अत्यधिक सम्भव हो सकेगी।

इस ट्रेन की गति लगभग 1200 किमी/घण्टे होगी, जिससे बड़ी-बड़ी दूरियों को काफी कम समय में तय किया जा सकेगा यह ट्रेन अन्तर्देशीय परिवहन के साथ-साथ अंतरमहाद्वीपीय, परिवहन में सहायक हो सकेगा। इस तकनीक में कम दबाव के स्टील ट्यूब के जरिए पॉडस में सामान और यात्रियों को एक जगह-से दूसरी जगह ले जाना सम्भव हो सकेगा।

वर्तमान समय में प्रचलित हाईस्पीड ट्रेन

वर्तमान समय में विश्व पटल पर कई ऐसी हाईस्पीड ट्रेन प्रचलन में हैं जिसके कारण बड़ी-बड़ी दूरियां   काफी कम समय में तय करने में सहायता मिली है। इन ट्रेनों में प्रमुख हाईस्पीड ट्रेन मैग्लेव, हारमोनी, रेंफी, हायाबूसा,युरोस्टार, बुलेट, सिनकांसेन आदि है।

भारत में हाइपरलूप ट्रेन सम्बन्धी प्रयास और भविष्य

वर्तमान समय में भारत में भले ही भूतल परिवहन की रफ़्तार 100 किमी/घण्टा से ज्यादा नहीं बढ़ पाई है, फिर भी विगत कुछ वर्षों में भारत सरकार ने अपनी रेल के नवीनीकरण और गति में दिलचस्पी दिखाई है और इसी उद्देश्य से सरकार ने कई देशों से इस दिशा में समझौते किए। 

भारत की सबसे नवीनतम और सेमी हाईस्पीड ट्रेन ' गतिमान एक्सप्रेस है ' जो दिल्ली से आगरा के बीच 160 किमी/घण्टे की स्पीड से चलती है। इस दिशा में और पहल करते हुए भारत के प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2017 में जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे से समझौता किया।

हाइपरलूप तकनीक से पहले भारत हाईस्पीड ट्रेन के क्षेत्र में बुलेट ट्रेन एक महत्वपूर्ण परियोजना है, जिसके जल्द परिचालन के लिए भारत सरकार प्रयासरत है। फ़रवरी,2017 में हाइपरलूप-वन कम्पनी ने सम्मेलन का आयोजन किया, जिसमे लगभग 90 देशों ने भाग लिया।

इन देशों में भारत भी सामिल था। भारत में पांच कम्पनियों ने भारत में हाइपरलूप पर कार्य करने के लिए दिलचस्पी दिखाई। कम्पनियों ने सम्मेलन में दिल्ली-मुम्बई रुट समेत कुल पांच रूटों पर इस ट्रेन को चलाने का प्रस्ताव दिया था। इन रूटों में बेंगलूरु से चेन्नई,बेंगलुरु से तिरुवनन्तपुरम और मुम्बई से चेन्नई शामिल है।

हाइपरलूप कम्पनी को भारत में एक बड़ा बाजार दिख रहा है और खास बात यह है कि यहां की सरकार आधुनिक तकनीक पर ज्यादा जोर दे रही है। 'भारतीय रेलवे ने पिछले वर्ष देश में मैग्लेव ट्रेन जैसी तकनीक लाने के' लिए ग्लोबल टेंडर निकाला था, जिसमें अनेक कम्पनियों ने भाग लिया था , लेकिन इस ग्लोबल टेण्डर में ' मेक इन इंडिया' के लिए हाइपरलूप के अलावा कोई दूसरी बड़ी कम्पनी तैयार नहीं थी।

भारतीय परिप्रेक्ष्य में हाइपरलूप से सम्बंधित कुछ चुनौतियां

* भारत में हाइपरलूप प्रोजेक्ट के लिए वित्त की व्यवस्था करना एक बड़ी चुनौती है, क्योकि इसकी लागत अरबों डॉलर में होगी तथा भारतीय परिवहन व्यवस्था में इसे बिना सब्सिडी दिए चला पाना भी सम्भव नही होगा।

* अभी तक इस तकनीक की टेस्टिंग पूरी तरह से सम्पन्न नहीं हो पाई है। अतः इसमें सुरक्षित परिवहन पर अब भी सन्देह है।

* भारत मे यात्रियों की संख्या सर्वाधिक है और हाइपरलूप कुछ ही लोगों को परिवहन की सुविधा दे पाएगा।

* इस प्रोजेक्ट को पूर्ण करने में भूमि अधिग्रहण भी एक प्रमुख समस्या है।


नीति आयोग द्वारा छह अत्याधुनिक परिवहन प्रणालियों को मंजूरी 


नीति आयोग ने भारत में परिवहन व्यवस्था को गति प्रदान करने के लिए छह अत्याधुनिक परिवहन प्रणालियों को मंजूरी प्रदान की। आयोग से मंजूरी मिलने के बाद परिवहन विभाग ने इस हाइपरलूप, मैट्रीनो और पॉड़ टैक्सी तकनीक से जुड़े सुरक्षा के मानकों के अध्ययन के लिए रेलवे एक पूर्व शीर्ष अधिकारी के नेतृत्व में छह सदस्यीय कमेटी का गठन किया है।

दोस्तों इतना पढ़ने के बाद हमें तो यह पता चल ही गया होगा की इस ट्रेन की क्या खास बात है। लेकिन मैं फिर भी आपके सामने इसकी कुछ विशेषताओ को रखने जा रहा हूँ जो की इस प्रकार है

हाइपरलूप ट्रेन की विशेषता

यह ट्रेन ध्वनि की चाल के बराबर चलेगी।
हाईस्पीड ट्रेन होने के बावजूद यह जमीन पर चलने में सक्षम होगी।
यह ट्रेन पर्यावरण के अनुकूल और सौर ऊर्जा से भी संचालित हो सकती है।
अधिक दुरी को कम समय में तय करने में सक्षम है।
यह अब तक की सबसे हाईस्पीड ट्रेन होगी।
मेट्रो ट्रेन की तर्ज पर इस ट्रेन में बड़े-बड़े पिलर ( खम्भे ) पर एक विशेष प्रकार के ट्यूब लगे होते हैं