इंटरनेट क्या है - what is internet in hindi

जैसे की आज कल हमारे जमाने में कम्प्यूटर और इंटरनेट का प्रभाव बहुत होता जा रहा है और एक से बढ़कर एक नए गैजेट हमें देखने को मिल रहें हैं। आज तो मोबाइल के बीना जीना मुश्किल सा हो गया है। मोबाइल तो इंटरनेट के बिना अधूरा है। आज हम internet kya hai इसके बारे में आगे जानेंगे।

what is Internet in Hindi

आज हम जानेंगे इंटरनेट क्या है और इससे जुड़े कुछ ऐसे बातें जो हमारे Knowledge को इंटरनेट के क्षेत्र में विस्तृत करेगा। जैसे की हम सभी जानते हैं और अवगत भी हैं इंटरनेट नाम के इस शब्द से लेकिन क्या आपने इसके बारे में और गहराई से जानने की कोशिस की है यदि नहीं तो आप सहीं जगह पर आये हैं चलिए जानते हैं इंटरनेट आखिर है क्या ?

पुराने समय जब कम्प्यूटर की शुरुआत हुई थी उस समय से जानने का प्रयास चालु करता हूँ पहले क्या होता था सिर्फ एक कम्प्यूटर जो की आपके सामने होता था उसी पर काम किया जा सकता था। फिर उसके बाद एक ही स्थान पर उपलब्ध अन्य कम्प्यूटरों को जोड़कर एक नेटवर्क बनाया गया। यानी की कम्प्यूटर का आपस में जुड़ना नेटवर्क से कनेक्ट होना कहलाता है। इस प्रकार आपस में पास के कम्प्यूटर्स को जोड़कर एक लोकल नेटवर्क बनाया गया।

इंटरनेट क्या है - what is internet in hindi

जिससे क्या होता था एक आदमी जो की किसी दूसरे कम्प्यूटर में उपलब्ध जानकारी को उस दूसरे कम्प्यूटर पर काम करे बिना अपने काम कर रहे पहले कम्प्यूटर में जानकारी को पा सकता था। या उपलब्ध होता था।
अब यहां पर लोकल नेटवर्क के बनने के  बाद वाइड एरिया नेटवर्क भी चर्चा में आ गया वाइड एरिया नेटवर्क और लोकल नेटवर्क आपस में जुड़कर एक तंत्र का निर्माण करता है जिसे हम इंटरनेट कहते हैं। इसे सामान्य भाषा में नेटवर्कों का नेटवर्क भी कहा जाता है।

इंटरनेट को हम या हर वो इंसान जो इसकी उपयोगिता को जानता है वह अपने शब्दो में निम्न प्रकार से भी अलग अलग परिभाषित कर सकते हैं।

  • इंटरनेट फाइबर ऑप्टिक्स, टेलीफोन लाइन या उपग्रह माध्यम से आपस में जुड़े कम्प्यूटरों का समूह कहा जा सकता है।   
  • इंटरनेट का उपयोग कम्प्यूटर के माध्यम से विश्व भर में संदेश व सुचना का आदान-प्रदान का साधन कहते हैं। 
  • आज जब भी किसी प्रकार की समस्या हमें होती है तो हम उसका समाधान इंटरनेट पर ढूंढते हैं तो इसे विश्व भर का सहायता करने वाला साधन भी कहा जा सकता है। 
  • इंटरनेट विश्व भर में किसी भी जानकारी या सुचना को तुरंत या तेजी से फैलाने का माध्य है। 
  • इंटरनेट अभी के समय में हमारे दैनिक जीवन में इतना महत्वपूर्ण हो गया है जिसके बिना भविष्य में किसी भी प्रकार की नई तकनीक को विकसित करने के लिए यह बहुत ही जरूरी होगा। 
  • इंटरनेट को कई लोग समय व्यतीत या टाइम पास करने का साधन भी मानते हैं। 

इंटरनेट से जुड़े ये सभी तथ्य सहीं है लेकिन इसमें से कोई भी पूर्ण नहीं है आज इंटरनेट का जो दृश्य या नजरिया है वह पूरी तरह परिवर्तित हो गया है और आज सबसे ज्यादा प्रयोग इंटरनेट का मोबाइल फ़ोन में होता है, इंटरनेट को विज्ञान के लिए वरदान माना जा सकता है और यह विज्ञान की प्रगति में विशेष रूप से सहायक है।

इंटरनेट की परिभाषा 

"इंटरनेट एक World Wide प्रसारण क्षमता युक्त Computer पर संग्रहित सुचना वितरित करने तथा विभिन्न कम्प्यूटर (Computer) उपयोगकर्ताओं (Users) के मध्य सहयोग व सम्पर्क का माध्यम (Medium) है जिसमें की बिना किसी धर्म, देश के भेदभाव के सुचना (Massage) का आदान-प्रदान (Send & Receive) करना सम्भव है।"
किसी भी चीज की शुरुआत करने से पहले हमें उसके इतिहास के बारे में जानना उतना ही जरूरी होता है जितना की हम उसे भविष्य में और बढ़ाना चाहते हैं। तो यहां इंटरनेट का इतिहास इस प्रकार से है।

इंटरनेट की परिकल्पना किस प्रकार हुई और यह वर्तमान में किस प्रकार से हमारे लिए उपयोगी है ये तो सभी जानते हैं लेकिन इसका इतिहास भी उतना ही रोचक है जितना की इसका वर्तमान है यह एक स्वभाविक सा प्रश्न है की इंटरनेट का इतिहास कैसा रहा होगा?

यह प्रत्येक इंटरनेट उपयोगकर्ता के मन में उभरता हुआ सवाल है। इंटरनेट की शुरुआत का मुख्य कारण सैन्य गतिविधि है यह उस समय की घटना है जब रूस व अमेरिका के मध्य शीत युद्ध जारी था। और दोनों सेनाओं के पास परमाणु हथियार विकसित हो गया था उस समय अमेरिका के रैंड कॉरपोरेशन, जो कि अमेरिकी सेना का प्रमुख सलाहकार संगठन था ने एक ऐसे कंप्यूटर नेटवर्क की परिकल्पना की थी जो परमाणु हमले के बाद भी कार्य कर सकें तथा एक कंप्यूटर संचार मार्ग भंग होने पर अन्य कंप्यूटर संचार मार्ग का प्रयोग करते हुए संचार व्यवस्था स्वतह ही जारी रख सके।

इससे पहले कंप्यूटर को श्रेणी क्रम में जोड़ा जाता था अर्थात यदि एक कंप्यूटर खराब हो जाता था तो आगे का संचार का जो क्रम है वह टूट जाता था।

इसे पॉइंट टू पॉइंट प्रकार का नेटवर्क कहा जाता था लेकिन इंटरनेट की परिकल्पना में कंप्यूटरों को मछली पकड़ने वाले जाल की तरह जोड़ा जाना था तथा डाटा को पैकेट में विभक्त कर प्रेषित किया जाना था प्रत्येक डाटा पैकेट के साथ गंतव्य स्थान के कंप्यूटर का पता भी संलग्न होता था इसे की पैकेट जो भी मार्ग उपलब्ध हो उसका उपयोग करते हुए गंतव्य स्थान पर पहुंच जाए।

आज यही हो रहा है चाहे जैसे भी हो हमें सूचना मिल ही जाती है इंटरनेट से जैसे कि हम एक उदाहरण ले अगर हमें किसी चीज के बारे में जानना है तो हम सबसे पहले गूगल पर सर्च करते हैं और अगर वह चीज हमें एक फॉर्मेट में नहीं मिलती तो वहां अन्य किसी दूसरे फॉर्मेट में मिल जाती है जैसे कि हम किसी इमेज को सर्च कर रहे हैं तो वह इमेज हमें किसी एक ही साइड में नहीं बल्कि विभिन्न साइटों में अलग-अलग जगह पर अलग-अलग माध्यम अलग-अलग रूप में मिल जाता है तू किसी भी प्रकार से कोई भी जगह से हमें जो सूचना प्राप्त हो जाती है वही इंटरनेट का एक महत्वपूर्ण फायदा है।

इंटरनेट कैसे काम करता है 

यह प्रश्न यदि किसी सामान्य भारतीय नागरिक से पूछा जाए तो हो सकता है वह इसका उत्तर कुछ इस प्रकार से दे - "इंटरनेट इस पूरी दुनिया या विश्व के ऐसे जगहों से जहाँ से एक कम्प्यूटर के माध्यम से दूसरे कम्प्यूटर से जुड़ा होता है, जिसे नेटवर्क कहा जाता है, जिसको एक केंद्रीय संस्था के माध्यम से संचालित किया जाता है। और यहीं केंद्रीय संस्था किसी भी उपयोगकर्ता से फीस ले सकता है यदि हमें कोई जानकारी शेयर करनी हो तो हमें इसी केंद्रीय संस्था से सहयोग प्राप्त करना होता है बिना इसके सहयोग के जानकारी शेयर नहीं कर सकते हैं।" लेकिन यह उत्तर पूरी तरह गलत है।

लेकिन इस उत्तर के लिए हमारी व्यवस्था जिम्मेदार है क्योकि हम एक केंद्रीयकृत व्यवस्था में रहने के आदि हो चुके हैं। हमारे यहां हर चीज केंद्रीकृत है। इसलिए जब भी हम किसी विश्वव्यापी या अत्यंत बड़ी प्रणाली की कल्पना करते हैं तो यह स्वतः ही मान लेते हैं की इसके लिए तो एक उच्चाधिकार प्राप्त केंद्रीय समिति होगी, जो कि इसका संचालन व नियंत्रण करेगी।

परन्तु इंटरनेट के साथ ऐसा कुछ भी नहीं है, यहां कोई भी नियंत्रणकारी केंद्रीय समिति नहीं है और न ही कोई केंद्रीय कम्प्यूटर है। इंटरनेट पर उपलब्ध समस्त सामग्री मूलतः सर्वर कहे जाने वाले कम्प्यूटरों, जो की किसी भी संस्थान या कंपनियों के होते हैं, पर संग्रहित रहती है। ये सभी सर्वर आपस में तार, टेलीफोन या उपग्रह द्वारा आपस में डाटा आदान-प्रदान करने हेतु जुड़े रहते हैं।

इंटरनेट कैसे कार्य करता है यह समझने के लिए हम टेलीफोन लाईन का उदाहरण लेते हैं। जिस प्रकार इंटरकॉम का प्रयोग संस्थान के भीतर आसानी से दो या तीन अंकों का नंबर डायल कर किया जा सकता है व इसमें किसी भी टेलीफोन एक्सचेंज  की आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन यदि इंटरकॉम, टेलीफोन एक्सचेंज से जुड़ा हो तो कहीं भी स्थित दूसरे टेलीफोन पर बात की जा सकती है।

ऐसा इसलिए सम्भव होता है क्योकि जैसे ही टेलीफोन से नंबर डायल किया जाता है वह नजदीकी टेलीफोन एक्सचेंज पहुँचता है तथा वहां से डायल किये गए नंबर के आधार पर अन्य वांछित टेलीफोन एक्सचेंज पहुंचता है तथा वहां से डायल किये गए नंबर के आधार पर अन्य वांछित टेलीफोन एक्सचेंज पर पहुंचता है और फीर वहां से डायल किये गए टेलीफोन पर पहुंच जाता है।

इंटरनेट पर भी वांछित कम्प्यूटर, जिससे कि सुचना प्राप्त करनी है या जिस पर सुचना प्रेषित करनी होती है कुछ इसी तरह ही पहुंच जाता है। जैसे ही हम कोई संदेश इंटरनेट पर प्रेषित करना या प्राप्त करना चाहते हैं वह सूचना सबसे पहले कम्प्यूटर के सबसे नजदीकी सर्वर तक पहुंचती है, इस सर्वर के साथ उपलब्ध राउटर (ROUTER), इसे इंटरनेट पते के आधार पर, उस पते के नजदीकी सर्वर को प्रेषित करता है। यहां पर उपलब्ध राउटर पुनः उसे और नजदीकी सर्वर को प्रेषित कर देता है।

यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक कि सुचना वांछित कम्प्यूटर तक नहीं पहुंच जाती है। यहां एक बात और ध्यान देने की है कि यहां सूचना का आदान-प्रदान पैकेटों (कुछ बाइटों  का समूह) के रूप में होता है अर्थात सूचना पैकेटों में विभक्त हो जाती है फिर सर्वर-सर्वर होती हुई सही स्थान पर पहुंच जाती है। यहां यह कतई आवश्यक नहीं है की सभी पैकेट एक ही मार्ग से होते हुए वांछित स्थान पर पहुंचे। वे जो भी खाली मार्ग उपलब्ध होता है उसी का उपयोग करते हुए वांछित स्थान पर  पहुंच जाते हैं।

मान लीजिये कि हमें एक संदेश भोपाल से ORACLE कॉर्पोरेशन को USA में भेजना है। जैसे ही हम संदेश को इंटरनेट पर VSNL (विदेश संचार निगम लिमिटेड) सर्वर को प्रेषित करेंगे, वह यहां पैकेटों में विभक्त हो जाएगा। ये पैकेट VSNL बंबई स्थित सर्वर पर लगे राउटर द्वारा अमेरिका में MCI  में स्थित सर्वर पर पहुंच जाते हैं। यहां यह भी हो सकता है की इस संदेश के कुछ पैकेट VSNL के मद्रास स्थित सर्वर के राउटर से होते हुए MCI पहुंचें।

MCI पर स्थित सर्वर संदेश के पैकेटों को ORACLE स्थित सर्वर पर प्रेषित कर देगा, इस तरह भेजा गया संदेश वांछित कम्प्यूटर पर पहुंच जाएगा। यहां आपके मन में एक प्रश्न उठ सकता है कि संदेश VSNL से MCI क्यों जाता है, दरअसल VSNL भारत में इंटरनेट सुविधा प्रदान करने के लिए अधिकृत है और MCI, इंटरनेट तक सूचना पहुंचाने वाला VSNL का सर्वाधिक नजदीकी सर्वर है जो कि VSNL से जुड़ा हुआ है।

इंटरनेट से अलग-अलग प्रकार के कम्प्यूटर जुड़े हुए हैं लेकिन ये सभी आपस में सूचना का आदान-प्रदान सफलता पूर्वक कर सके, इसलिए ये सभी एक नियम, जिसे कि TCP/IP कहते हैं, का पालन करते हुये संदेश भेजते हैं।

इंटरनेट का मालिक

इंटरनेट किसी भी एक व्यक्ति या संस्था की सम्पत्ति नहीं है। इस पर किसी का मालिकाना हक नहीं है। इसके लिए किसी एक व्यक्ति, संस्था, विश्वविद्यालय या सरकार द्वारा किसी प्रकार की वित्तीय सहायता नही दी जाती है। प्रत्येक वह संस्था या व्यक्ति जो की अपने कम्प्यूटर के माध्य से इंटरनेट से जुड़ा हुआ है वह इंटरनेट के उस भाग विशेष का मालिक है। इंटरनेट सुविधा प्रदान करने के लिए प्रायः प्रत्येक देश में कुछ कंपनियों को लाइसेंस दिए गए हैं। ये कम्पनियाँ व्यक्तियों व संस्थानों को इंटरनेट से जोड़ती है, पर वे इंटरनेट की मालिक नहीं है। ये कम्पनिया केवल सर्वर व राउटर (अगले सर्वर तक सूचना प्रेषित करने वाला उपकरण) की ही मालिक होती हैं।

इन कंपनियों को इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर (ISP) कहा जाता है। चूँकि इंटरनेट समान्यतः टेलीफोन लाइनों का उपयोग सूचना के आदान-प्रदान हेतु करता है अतः टेलीफोन कंपनियां इंटरनेट के उस माध्यम की मालिक होती है जो की पैकेटों को प्रेषित करता है तथा हर संस्थान या व्यक्ति जिसका कम्प्यूटर इंटरनेट से जुड़ा है वह अन्य लोगों के लिए उपयोगी व उन दूसरों तक जानकारी पहुंचाने के लिए सामग्री रखता है इंटरनेट पर उपलब्ध सूचना का मालिक है। इस प्रकार हम कह सकते हैं की इंटरनेट पर किसी एक का मालिकाना हक नहीं है।

इंटरनेट पर उपलब्ध सुविधायें

इंटरनेट एक महत्वपूर्ण संचार माध्यम के रूप में विश्व में अपना स्थान बना चूका है। इस पर उपलब्ध सुविधाएं इस प्रकार हैं जिनका कि उपयोग लगभग वह प्रत्येक व्यक्ति कर सकता है जिसके कि पास इंटरनेट कनेक्शन उपलब्ध है।

  1. ई-मेल : दुनिया के किसी भी एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर को संदेश प्रेषण की सुविधा। 
  2. रिमोट लॉगिन : दुनिया के किसी भी हिस्से में स्थित कम्प्यूटर पर कार्य करने की (TELNET) सुविधा। 
  3. FTP : अन्य कम्प्यूटरों पर फ़ाइल प्रेषण या प्राप्त करने की सुविधा। 
  4. NEWS GROUP : किसी विषय विशेष से संबंधित तथ्यों पर अन्य इंटरनेट उपयोगकर्ता (समाचार समूह) के साथ विचार विमर्श करने की सुविधा। 
  5. इंटर रिले चैट : दुनिया के किसी भी हिस्से में उलब्ध कम्प्यूटर उपयोगकर्ता से की बोर्ड का उपयोग करते हुए बातचीत करने की सुविधा। 
  6. इंटरनेट फोन : यदि मल्टी मिडिया कम्प्यूटर या मोबाइल उपलब्ध है, तब अन्य उपयोगकर्ताओं से इंटरनेट का प्रयोग करते हुए फोन की तरह बात करने की सुविधा। 
  7. इंटरनेट फैक्स : कम्प्यूटर या मोबाइल से इंटरनेट उपयोग करते हुए कहीं भी फैक्स करने की सुविधा। 
  8. सूचना प्राप्ति (WWW) : वांछित जानकारी को इंटरनेट से जुड़े कम्प्यूटरों पर ढूंढा जा सकता है तथा उसे अपने कम्प्यूटर पर  संग्रहित करने की सुविधा। 

उपरोक्त सुविधाओं के अतिरिक्त और भी सुविधाएँ इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के लिए उपलब्ध है तथा अन्य अभी विकासावस्था में है। इन सुविधाओं के बारे में विस्तृत जानकारी हम आगामी पोस्ट में दिया जाएगा।

इंटरनेट का  आकार

इंटरनेट का कोई भौतिक आकार नहीं है यह पुरे विश्व में फैला हुआ है। मात्र चार कम्प्यूटरों से आरम्भ हुआ यह नेटवर्क आज लगभग 10 मिलियन कम्प्यूटरों तक पहुंच चुका है।

यह 10 मिलियन कम्प्यूटरों का आंकड़ा भी  एक अनुमान मात्र है। यह शुरू में क्योकि सीमित क्षेत्र में फैला नेटवर्क था अतः कम्प्यूटरों की सही संख्या पता थी लेकिन अब इससे जुड़े कम्प्यूटरों की संख्या काफी अधिक हो गई और वे पुरे संसार में फैले हुए है तथा लगातार इंटरनेट से जुड़ने वाले कम्प्यूटरों की संख्या बढ़ती जा रही है अतः सही संख्या का अनुमान ही लगाया जा सकता है। यहां दो और बातें ध्यान में रखने योग्य हैं।

  1. किसी भी समय विशेष में इंटरनेट से जुड़े समस्त कम्प्यूटरों का लगभग 1%  ही वास्तव में इंटरनेट का उपयोग कर रहा होता है। 
  2. एक अन्य अनुमान के अनुसार इंटरनेट से जुड़े प्रत्येक कम्प्यूटर से औसत 10 उपयोगकर्ता, इंटरनेट सुविधा का उपयोग करते हैं। इस तरह से इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या (10*10 मिलियन) अर्थात लगभग 100 मिलियन है। 

इंटरनेट से जुड़ने वाले कम्प्यूटरों की दिनाँक वार अनुमानित संख्या इस प्रकार है -

जिस प्रकार इंटरनेट के अंतर्गत समस्त विश्व के कम्प्यूटर आपस में बिना किसी भेदभाव के आपस में जुड़े रहते हैं। उसी प्रकार यदि किसी संस्थान विशेष के कम्प्यूटर आपस में एक दूसरे से जुड़े हो तथा वे इंटरनेट के समान तकनीक व प्रोटोकॉल का उपयोग कर रहे हों, तब इस प्रकार के नेटवर्क को इंटरनेट कहा जाता है। 

इंटरनेट की कोई भौगोलिक सीमा नहीं होती है। किसी भी संस्थान के विभिन्न विभाग चाहे वे एक शहर में हो, विभिन्न शहरों, यहां तक की विभिन्न देशों में हो, यदि उन्हें आपस में इंटरनेट के समान प्रोटोकॉल का उपयोग करते हुए जोड़ा गया है, तब भी यह इंट्रानेट ही कहलायेगा, क्योकि यह केवल एक ही संस्थान मात्र का नेटवर्क होगा।

इंटरनेट का विकास 

1962 से 1969 : यह वह समय था जिसमें इंटरनेट की परिकल्पना की गई और इंटरनेट एक कागजी परिकल्पना से निकलकर छोटे से नेटवर्क के रूप में इस विश्व के सामने आया।

1962 : इसी साल पॉल बैरन, रैंड कॉरपोरेशन ने पैकेट स्विच तकनीक पर आधारित कंप्यूटर नेटवर्क परिकल्पना की।

1967 : इसी वर्ष सन 1967 में अरपा नेट जिसे एडवांस रिसर्च प्रोजेक्ट एजेंसी के नाम से भी जाना जाता है जो कि एक सैन्य संगठन बनाने के संबंध में विचार-विमर्श हुए प्रारंभ हुए।

1969 : अरपानेट का निर्माण किया गया जिसके अंतर्गत अमेरिका के 4 संस्थानों स्टैनफोर्ड रिसर्च संस्थान, यूसीएल, UC, SANTA BARBARA तथा उटा (UTAH) विश्वविद्यालयों में स्थित एक एक कंप्यूटर को जोड़कर 4 कंप्यूटरों का नेटवर्क बनाया गया।

1970 से 1973 : वैसे तो आरपा नेट को इस परियोजना से आरंभ में ही सफलता मिलती गई थी।इसका मुख्य उद्देश्य वैज्ञानिकों के मध्य डेटा का आदान प्रदान करना और रिमोट कंप्यूटिंग था लेकिन ईमेल सर्वाधिक प्रयुक्त होने वाला माध्यम बन गया था।

1971 ARPANET से अब तक तेज कंप्यूटर आपस में जुड़ चुके थे और यह कंप्यूटर अमेरिका के विश्वविद्यालय व रिसर्च संस्थानों में स्थापित थे।

1972 INTERNET WORKING GROUP I N W G बढ़ते नेटवर्क के लिए मानक STANDARD बनाने के लिए बनाया गया था। और इनका अध्यक्ष विटन सर्फ को बनाया गया जिन्हें इंटरनेट का पितामह कहा गया।

1973 अमेरिका के बाहर लंदन यूनिवर्सिटी के कॉलेज तथा नॉर स्थित रॉयल रडार संस्थान के कंप्यूटर भीम अर पानेट से जुड़ गए।

1974 से 1981 ए आर पी ए एन टी ARPANETसेंड ए रिसर्च से बाहर आया और सामान्य लोगों को इसी अवधि में यह पता लगा कि कंप्यूटर नेटवर्क का आम जीवन में किस प्रकार उपयोग संभव है।

1974 TELNET का विकास हुआ तथा ARPANET का वाणिज्यिक उपयोग संभव हुआ।

1975 - स्टोर एवं फारवर्ड (Store & Forword) प्रकार के नेटवर्क बनाए गए व ब्रिटेन की महारानी एलीजाबेथ ने पहली बार E-MAIL भेजा।

1976 - UUCP (Unix to Unix Copy), AT & T तथा बेल लेबोरेटरी द्वारा विकसित किया गया जिसे की बाद में यूनिक्स ऑपरेटिंग सिस्टम के साथ बेचा गया।

1977 - UUCP का उपयोग करते हुए THEORYNET बनाया गया जिसके द्वारा 100 से अधिक रिसर्च कार्य में लगे वैज्ञानिको को E-Mail की सुविधा उपलब्ध करायी गई।

1979 ड्यूक विश्वविद्यालय के टॉम ट्रसकोट व जिम एलिस तथा नार्थ केलिफोर्निया विश्वविद्यालय के स्टीव वैलोविन ने प्रथम USENET न्यूज ग्रुप बनाया। इस न्यूज ग्रुप में कोई भी भाग लेकर धर्म, राजनीति, विज्ञान तथा अन्य किसी भी विषय के संबंध में आपस में चर्चा कर सकते थे।

1981 - ARPANET के 213 HOST कम्प्यूटर हो गए थे तथा औसतन लगभग 20 दिनों के बाद एक HOST कम्प्यूटर जुड़ने लगा।

  • BITNET (BECAUSE ITS TIME NETWORK) का विकास हुआ। 
  • CSNET (COMPUTER SCIENCE NETWORK) बनाया गया। 
  • फ्रेंच टेलीकॉम द्वारा पुरे फ्रांस के लिए MINITEL नाम से नेटवर्क स्थापित किया गया। 

1982 - 1987 इसी समय इंटरनेट शब्द का प्रयोग ARPANET के स्थान पर हुआ तथा बॉबकॉन तथा विटन सर्फ ने इंटरनेट से जुड़े समस्त कम्प्यूटरों के लिए एक समान प्रोटोकॉल का विकास किया, जिससे कम्प्यूटर सरलता से सुचना का आदानप्रदान कर सकें। लगभग इसी समय पर्सनल कम्प्यूटर व अन्य सस्ते कम्प्यूटरों का विकास हुआ, जिसके कारण इंटरनेट का तेजी से विकास हुआ।

  • टॉम जेंनिग्स द्वारा FIDONET का विकास किया गया। 
  • जेयूनेट (JAPAN UNIX NETWORK), UUCP (Unix-to-Unix Copy) का Use करते हुए बनाया गया। 
  • इंटरनेट के HOST कम्प्यूटरों की संख्या 1000 से ऊपर हो गई। 
  • पहली बार साइबर स्पेस (CYBER SPACE) का नाम इंटरनेट को दिया गया। 
1987 - इंटरनेट HOST कम्प्यूटरों की संख्या 10,000 से अधिक हो गई, UUNET निर्मित किया गया जिससे कि UUCP व USENET का वाणिज्य उपयोग आरम्भ हुआ।

 1988 से 1990 इस अवधि में या इस समय में एक संचार माध्यम के रूप में इंटरनेट को माना जाने लगा। साथ ही सुचना के सुरक्षित आदान-प्रदान व कम्प्यूटर सुरक्षा पर भी उपयोगकर्ताओं ने ध्यान देना आरम्भ किया। क्योकि इसी अवधि में कम्प्यूटर प्रोग्राम 'INTERNET WORM' ने इंटरनेट से जुड़े लगभग 6000 कम्प्यूटरों को अस्थाई रूप से अनुपयोगी बना दिया था।

1988 - INTERNET WORM नामक कम्प्यूटर प्रोग्राम ने इंटरनेट से जुड़े 60,000 कम्प्यूटरों में से 6000 को अस्थाई  रूप से अक्रिय बना दिया।

  • कम्प्यूटर इमरजेंसी रिस्पॉस टीम, कम्प्यूटर नेटवर्क सुरक्षा को दृष्टिगत रखते हुए बनाई गई। 

1989 - इंटरनेट से जुड़े कम्प्यूटरों की संख्या 1,00000 से ऊपर हो गई, BITNET तथा CSNET को मिलाकर कॉर्पोरेशन फॉर रिसर्च एन्ड एजुकेशन नेटवर्किंग (Corporation for Research & Education Networking) बनाया गया।

1990 - ARPANET को समाप्त या यूं कहें बंद कर दिया गया तथा nework of  networks के रूप में इंटरनेट शेष रहा, जिसके कि HOST कम्प्यूटरों की संख्या 3,00,000 हो गई। पीटर ड्यूश, एलन एक्टेज व विल हीलन ने ARCHIE को जारी किया, जिससे कि इंटरनेट से कम्प्यूटरों पर उपलब्ध सामग्री को आसानी से प्राप्त किया जाने लगा।

1991 से 1993 यही वह अवधि थी जिसमें की इंटरनेट ने सर्वाधिक ऊंचाइयों को छुआ। इंटरनेट का वाणिज्यिक उपयोग काफी बढ़ गया।

1991 - GOPHER को पॉल लिडर व मार्क मैकहिल ने विकसित कर जारी किया।

  • वाइड एरिया इन्फॉर्मेशन सर्वर (WAIS) का विकास हुआ। 
  • इंटरनेट पर प्रतिमाह डाटा आदान-प्रदान की मात्रा ट्रिलियन बाइट से भी अधिक हो गई। 
1992 - इंटरनेट पर ऑडियो व वीडियो को भी भेजा जाना सम्भव हुआ।
  • इंटरनेट सोसाइटी (ISOC) की स्थापना हुई। 
  • वर्ल्ड वाइड वेब (WWW) को टिम बर्नर ली ने विकसित किया। 
  • 10,00,000 से अधिक HOST कम्प्यूटर इंटरनेट से जुड़ गए। 
1993 - MOSAC नामक पहला ग्राफिक आधारित वेब ब्राउजर विकसित किया गया।
  •  INTERNIC का गठन, Internet संबंधित Service को Similarity (एक रूप ता) प्रदान करने व उनका ठीक से प्रबंध करने के उद्देश्य से किया गया। 
  • इंटरनेट पर डाटा ट्राफिक 341,634% की दर से बढ़ा। 
1994 - 1998 लगभग 40 Million यूजर्स, Intrnet से जुड़ गए तथा इंटरनेट एरा का सूत्रपात इसी समय में हुआ।
1994 - इंटरनेट शॉपिंग का आरम्भ हुआ।
  • विज्ञापन दाताओं ने इंटरनेट पर विज्ञापन देने आरम्भ कर दिए। 
1995 - NSFNET पुनः रिसर्च कार्यों तकसीमित  हो गया। सन माइक्रोसिस्टम ने इंटरनेट प्रोग्रामिंग भाषा JAVA का विकास किया।

1996 - इंटरनेट से जुड़े कम्प्यूटरों को संख्या 10 मिलियन से अधिक हो गई। 150 से अधिक देशों के कम्प्यूटर इंटरनेट से जुड़ गए।

1997 - इंटरनेट ने आम आदमियों के बीच अपनी पहचान बना ली तथा इसके बिना जिंदगी अधूरी सी प्रतीत होने लगी।

1998 - भारत में प्रत्येक स्थान पर इंटरनेट को पहुंचाने के प्रयास आरम्भ हुए। नेशनल इन्फार्मेटिक्स पॉलिसी बनाई गई।

इस प्रकार इस पोस्ट में आपने इंटरनेट से इंट्रानेट तक की विकास यात्रा व इंटरनेट के संबंध में मूल जानकारी प्राप्त कर ली है। आगामी पोस्ट में इंटरनेट से कैसे जुड़े के संबंध में जानकारी दी गई है। इसलिए ब्लॉग को सब्स्क्राइब जरूर करें ताकि नई टेक की जानकारी आपको मिल सके सबसे पहले।

1982 - समस्त इंटरनेट उपयोगकर्ता के लिए एक समान (Common) प्रोटोकॉल TCP/IP (TRANSMISSION CONTROL PROTOCOL / INTERNET PROTOCOL) का विकास हुआ। 'इंटरनेट' नाम पहली बार प्रयुक्त किया गया।

1983 - ARPANET दो भागों में MILNET (MILATORY NETWORK) तथा ARPANET में विभक्त किया गया।

1984 - डोमेन नेम सर्वर (DOMAIN NAME SERVER) प्रणाली का विकास किया गया।

1986 - NSFNET व FREENET का विकास।

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