जब हॉब्स ने अपने राजनीतिक विचार विकसित किए, तब इंग्लैंड गृहयुद्ध का सामना कर रहा था। हर जगह अराजकता और असुरक्षा थी। इसे देखते हुए हॉब्स का मानना था कि केवल एक मजबूत राजतंत्र ही शांति ला सकता है।
टेलर ने लिखा है कि हॉब्स एक गहन विचारक और मानव व्यवहार के पर्यवेक्षक होने के नाते यांत्रिक भौतिकवाद के माध्यम से सब कुछ समझाने की कोशिश करते थे। उनका उद्देश्य पारंपरिक नैतिक और सामाजिक विचारों को खारिज करते हुए समाज का एक प्राकृतिक सिद्धांत बनाना था।
हॉब्स की सोच को प्रभावित करने वाली परिस्थितियाँ - हॉब्स पर दो प्रमुख चीजों का गहरा प्रभाव पड़ा वैज्ञानिक खोजें ऑक्सफोर्ड में अध्ययन करते समय, हॉब्स को पुराने मध्ययुगीन दर्शन पसंद नहीं थे और वे नए वैज्ञानिक विचारों की ओर आकर्षित थे। वे विशेष रूप से गैलीलियो के गति के नियम से प्रभावित थे और इसे अपने राजनीतिक सिद्धांतों के आधार के रूप में इस्तेमाल किया।
इंग्लैंड में राजनीतिक अस्थिरता उस समय, राजतंत्र के समर्थकों और विरोधियों के बीच सत्ता संघर्ष चल रहा था। इससे बहुत डर और असुरक्षा पैदा हुई, क्योंकि किसी का जीवन या संपत्ति सुरक्षित नहीं थी। साथ ही, अर्थव्यवस्था बदल रही थी। एक नया व्यापारी वर्ग उभर रहा था, लेकिन उसके पास कोई राजनीतिक शक्ति नहीं थी। वे पुराने सामंती वर्ग के नियंत्रण को कम करना चाहते थे। इस बीच, ब्रिटिश लोग संसद के लिए अधिक शक्ति की मांग कर रहे थे, लेकिन सामंती प्रभु चीजों को वैसे ही रखना चाहते थे जैसे वे थे। इन संघर्षों के कारण 1639 में गृहयुद्ध हुआ।
इस युद्ध और अशांति के कारण लोगों का जीवन असुरक्षित हो गया। हॉब्स ने अपने लेखन में एक शक्तिशाली राजतंत्र का समर्थन किया, उनका मानना था कि यह भय को समाप्त करने और स्थिरता लाने का एकमात्र तरीका था।
सामाजिक समझौते का सिद्धांत क्या है
यह स्वीकार करने के बाद कि प्रकृति की स्थिति में प्राकृतिक नियम मौजूद हैं, हॉब्स कहते हैं कि यदि मनुष्य स्वभाव से शांतिपूर्ण होते, तो उन्हें साथ रहने के लिए किसी अधिकार या नियम की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन मनुष्य स्वाभाविक रूप से शांतिपूर्ण नहीं होते।
इसलिए, कोई व्यक्ति या लोगों का समूह होना चाहिए जो समाज को नियंत्रित और अनुशासित कर सके।
ऐसा अधिकार बनाने के लिए, लोगों को अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं को त्यागना चाहिए और अपने अधिकारों को किसी एक व्यक्ति या समूह को सौंपने के लिए सहमत होना चाहिए। हॉब्स के अनुसार, यह आपसी समझौते के माध्यम से होता है।
अपनी पुस्तक लेविथान में, हॉब्स लिखते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति इस तरह का वादा करता है: मैं खुद पर शासन करने का अपना अधिकार छोड़ता हूँ और इसे इस व्यक्ति या समूह को देता हूँ, इस शर्त पर कि आप भी ऐसा ही करें और उनकी आज्ञा का पालन करें।
यह समझौता एक शक्तिशाली शासक बनाता है, जिसे हॉब्स लेविथान कहते हैं - एक "नश्वर देवता" या महान शक्ति - जो ईश्वर के मार्गदर्शन में सभी की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
इस प्रकार, लोग स्वेच्छा से अपने सभी अधिकार इस प्राधिकरण को दे देते हैं, जो प्राकृतिक अवस्था की अराजकता को समाप्त करता है और सभी की रक्षा करता है।
इस प्राधिकरण के पास समझौते को तोड़ने वाले किसी भी व्यक्ति को दंडित करने की शक्ति है। हॉब्स कहते हैं कि दंड आवश्यक है, क्योंकि तलवार की शक्ति के बिना अनुबंध केवल खोखले शब्द हैं और किसी की रक्षा नहीं कर सकते।
सामाजिक समझौते की मुख्य विशेषताएँ
हॉब्स द्वारा राज्य को उत्पन्न करने वाले इस समझौते का हम विश्लेषण करें, तो हमें कई विशेषताएँ दिखाई देती हैं
(1) समझौता एक साथ सामाजिक और राजनीतिक दोनों था - पहली विशेषता इसकी यह है कि समझौता एक साथ ही सामाजिक एवं राजनीतिक दोनों ही चरित्र वाला है। मनुष्य द्वारा अपने व्यक्तिगत अधिकारों को त्यागकर सामाजिक समझौते के बन्धन को स्वीकार किये जाने के कारण समाज की उत्पत्ति होती है और उस समाज में शान्ति और व्यवस्था को बनाये रखने के लिए राज्य की उत्पत्ति होती है ।
(2) समझौता सभी के साथ मध्य होता है, शासक और शासित के मध्य नहीं दूसरी विशेषता इसकी यह है कि अब तक जितने भी समझौते की बात की गयी है, वह शासक और शासित के मध्य समझौते की बात थी अर्थात् वे सब वास्तविक दृष्टि से सामाजिक समझौते नहीं थे।
वरन् शासनात्मक समझौते थे, किन्तु हॉब्स के द्वारा जिस समझौते का प्रतिपादन किया गया। वह शासक और शासितों के मध्य उत्पन्न नहीं होता है, बल्कि प्राकृतिक अवस्था में रहने वाले सभी व्यक्तियों के मध्य सम्पन्न होता है, जो राज्य के सम्मुख अपने अधिकारों को त्यागने की प्रतिरक्षा करते हैं। अतः वह वास्तविक दृष्टि से एक सामाजिक समझौता है।
(3) शासक समझौते की उत्पत्ति है, भागीदार नहीं - इसकी तीसरी विशेषता दूसरी विशेषता से उत्पन्न होती है। यह समझौता व्यक्तियों के मध्य होने से सम्प्रभु इसमें सम्मिलित नहीं है जैसा कि इवेन्स्टीन ने कहा है, "हॉब्स का सामाजिक समझौता प्रजाजनों के बीच हुआ है। सम्प्रभु समझौते का भागीदार नहीं है, वह तो उसकी उत्पत्ति है।
(4) शासक की सत्ता निरंकुश - इसकी चौथी विशेषता तीसरी विशेषता से उत्पन्न होती है। समझौते में भागीदार न होने से सम्प्रभु की शक्ति असीमित और उसके अधिकार निरंकुश हैं। उसकी सत्ता पर किसी तरह का प्रतिबन्ध नहीं है। अतः वह अपनी सत्ता का प्रयोग अपनी इच्छा से करने में स्वतन्त्र है।
(5) शासितों को शासकीय निरंकुशता विरुद्ध विद्रोह करने का अधिकार नहीं - इसकी पाँचवीं विशेषता इसकी चौथी विशेषता से उत्पन्न होती है। प्राकृतिक दशा को छोड़ने और समझौते में शामिल होने के साथ ही व्यक्तियों ने अपनी स्वतन्त्रता और अपने सब अधिकार भी त्याग दिये हैं।
अतः सम्प्रभु की स्वेच्छाचारिता की दुहाई लेकर उसके विरुद्ध विद्रोह करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि उसकी स्वेच्छाचारिता से समझौते की किसी भी शर्त का उल्लंघन नहीं होता है। इसी तरह समझौते से किसी को अलग होने का अधिकार प्राप्त नहीं है।
(6) सुरक्षा प्रदान न कर सकने वाला शासक का विरोध उचित - इसकी अन्तिम छठी विशेषता यह है कि समझौते के उद्देश्य को बरकरार रखने के लिए इस शर्त का पालन अनिवार्य है।
अतः हॉब्स यद्यपि प्रजा से इस बात की अपेक्षा करता है कि वह सम्प्रभु की आज्ञा का पालन करती हुई अपरिमित कर्त्तव्य-पालन का परिचय देगी, किन्तु वह इस विशेषता के आधार पर कुछ अपरिवादों का भी उल्लेख करता है, जबकि सम्प्रभु की आज्ञा की अवहेलना अधिकार के रूप में कर सकती है।
यह अधिकार सम्प्रभु को अपने आपको मारने, अंग-भंग करने या आक्रमणकारी का विरोध न करने, वायु औषधि या जीवनदाता या अन्य किसी वस्तु का प्रयोग न करने की आज्ञा देता हो। ऐसी स्थिति में व्यक्ति राजाज्ञा की अवहेलना कर सकता है,
क्योंकि हॉब्स कहता है कि, प्रजाजन सुरक्षा के लिए ही शासन के अधीन होते हैं। यदि शासक सुरक्षा प्रदान नहीं कर सकता तो उसका प्रतिरोध आवश्यक हो जाता है। इस प्रकार हॉब्स के अनुसार मनुष्य अपने जीवन की रक्षा का प्राकृतिक अधिकार समझौते के बाद भी सुरक्षित रखते हैं।
सामाजिक समझौते के सिद्धान्त को प्रतिपादित कर हॉब्स यह सिद्ध करता है कि वह न तो राज्य को ईश्वर द्वारा उत्पन्न मानता है और न किसी प्राकृतिक विकास का परिणाम, वरन् वह अपने राज्य को मानव निर्मित एक ऐसा कृत्रिम साधन मानता है जिसे व्यक्तिद्वारा अपनी कुछ निश्चित आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए निर्मित किया गया है। अतः उसके लिए राज्य साध्य की ओर जाने वाला एक साधन मात्र है, स्वयं साध्य नहीं।
सामाजिक समझौता सिद्धान्त की आलोचना
इस सामाजिक समझौता सिद्धान्त की विद्वानों ने निम्नलिखित प्रकार से आलोचना की है
- हॉब्स की प्राकृतिक अवस्था पूर्णतया काल्पनिक है।
- हॉब्स ने मानवीय गुणों - प्रेम, सहयोग तथा सहानुभूति का वर्णन न करके सिर्फ उसे स्वार्थी, हिंसक, असत्य एवं बर्बर माना है।
- यह सिद्धान्त कानूनी दृष्टि से उचित नहीं है।
- यह समझौता सिद्धान्त पूर्णतया अनैतिहासिक है, क्योंकि उसने राज्य को क्रमिक विकास का प्रतिफल न मानकर समझौते का परिणाम माना है।
- हॉब्स ने प्रभुसत्ता ग्रहण करने वाले को पूर्णतया निरंकुश बताया है। ऐसा करते समय वह यह भूल गया कि शासन-सत्ता करने वाला भी व्यक्ति है और उसका स्वार्थी होना भी आवश्यक है।
ऐसे में उससे जनहित की कल्पना नहीं की जा सकती है। फिर भी यह सिद्धान्त राजनैतिक चिन्तन में बहुत महत्त्व रखता है।