छत्तीसगढ़ की राजधानी - chhattisgarh ki rajdhani

छत्तीसगढ़ क्षेत्रफल के हिसाब से यह नौवां सबसे बड़ा राज्य है। यहाँ लगभग 3 करोड़ लोग रहते हैं। छत्तीसगढ़ की सीमा उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, झारखंड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से लगती हैं। छत्तीसगढ़ राज्य का गठन 1 नवंबर सन 2000 को हुआ था। यह राज्य पहले मध्यप्रदेश का हिस्सा था।

छत्तीसगढ़ भारत का तीसरा सबसे बड़ा कोयला भंडार वाला राज्य है साथ ही मध्य प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश के बाद देश का तीसरा सबसे बड़ा वन क्षेत्र भी छत्तीसगढ़ में है।

छत्तीसगढ़ की राजधानी

रायपुर छत्तीसगढ़ की राजधानी है। पुराने स्थलों से पता चलता है कि रायपुर 9वीं शताब्दी से अस्तित्व में है। प्राचीन काल में रायपुर दक्षिणी कोसल का हिस्सा हुआ करता था। जो उस समय मौर्य साम्राज्य का हिस्सा था।

छत्तीसगढ़ का क्षेत्रफल 135,192 वर्ग किलोमीटर हैं। यह क्षेत्रफल के हिसाब से नौवां सबसे बड़ा राज्य है। छत्तीसगढ़ सबसे तेजी से विकसित होने वाले राज्यों में से एक है। इसका सकल राज्य घरेलू उत्पाद ₹3.63 लाख करोड़ है। यह एक संसाधन संपन्न राज्य हैं, जिसके पास कोयला, लौह आयस्क और टिन का भंडार है।

छत्तीसगढ़ की राजधानी - chhattisgarh ki rajdhani

छत्तीसगढ़ की वेशभूषा

छत्तीसगढ़ की एक समृद्ध और विविध संस्कृति है, और इसकी पारंपरिक वेशभूषा यहां के लोगों की विशिष्ट पहचान और रीति-रिवाजों को दर्शाती है। यहाँ छत्तीसगढ़ की कुछ पारंपरिक वेशभूषा हैं।

1. धोती कुर्ता - यह छत्तीसगढ़ में पुरुषों द्वारा पहना जाने वाला सबसे आम पारंपरिक परिधान है। धोती कमर के चारों ओर पहना जाने वाला एक लंबा कपड़ा है, जबकि कुर्ता एक लंबी कमीज होता है। यह पोशाक आमतौर पर सूती या रेशम से बनी होती है।

2. साड़ी - छत्तीसगढ़ में महिलाओं का सबसे लोकप्रिय पारंपरिक पोशाक है। ग्रामीण क्षेत्रों में सभी महिलाएं साड़ी पहनती हैं। जिसे लुगरा भी कहा जाता हैं। साड़ी आमतौर पर सूती से बनी होती हैं। साड़ी के साथ साथ महिलाएं चूड़ी, पायल, झुमका भी पहनती हैं।

3. पगड़ी - पगड़ी जिसे पागा भी कहा जाता हैं। यह छोटा कपडा होता हैं। जिसे पुरुष अपने सिर पर लपेटे रहते हैं। यह सामान्य पगड़ी से अलग होता हैं। यह सूती या रेशम से बना होता है। पगड़ी आमतौर पर विशेष अवसरों और त्योहारों पर पहनी जाती है और यह गर्व और सम्मान का प्रतीक है।

छत्तीसगढ़ की राजनीति

मुख्यमंत्री - अजीत जोगी छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री थे। जिन्होंने 9 नवंबर 2000 से 6 दिसंबर 2003 तक मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया हैं। इसके पूर्व अजीत जोगी जी कलेक्टर भी रह चुके हैं, इन्होने इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी की थी। वर्तमान में विष्णुदेव साय छत्तीसगढ़ के मुख़्यमंत्री हैं। जिन्होंने 13 दिसम्बर 2023 से कायभार संभाला हैं।

राज्यपाल - छत्तीसगढ़ के पहले राज्यपाल दिनेश नंदन सहाय थे। जिन्होंने 1 नवंबर 2000 से 1 जून 2003 तक राज्यपाल के रूप में काम किया है। वर्तमान में विश्व भूषण हरिचंदन जी छत्तीसगढ़ के राजयपाल है। जिन्होंने 12 फ़रवरी 2023 से कार्यभार संभाला हैं। इससे पहले ये आंध्र प्रदेश के राज्यपाल रह चुके हैं।

लोकसभा - छत्तीसगढ़ राज्य में लोकसभा की 11 सीटें हैं। जिसका चुनाव आम जनता द्वारा किया जाता हैं। छत्तीसगढ़ के लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र इस प्रकार हैं - रायपुर, महासमुंद, राजनांदगांव, दुर्ग, कांकेर, बस्‍तर, कोरबा, रायगढ़, जांजगीर-चाम्‍पा, बिलासपुर, सरगुजा। जबकि राज्यसभा में छत्तीसगढ़ के 5 सीटें हैं। छत्तीसगढ़ में केवल विधानसभा हैं। जिसके कुल सीटों की संख्या 90 हैं।

छत्तीसगढ़ के राजकीय चिन्ह

छत्तीसगढ़ भारत के मध्य में स्थित एक महत्वपूर्ण राज्य है। छत्तीसगढ़ 36 अलग-अलग छोटे सम्राज्य के मिलने से बना हैं। जिसके कारण इस राज्य का नाम छत्तीसगढ़ रख दिया गया था।

छत्तीसगढ़ अस्तित्व में तब आया, जब 1 नवंबर सन 2000 को मध्य प्रदेश से एक नया राज्य का  निर्माण किया गया। पोस्ट में हम छत्तीसगढ़ के राजकीय चिन्ह के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे तो चलिए शुरू करते हैं।

छत्तीसगढ़ का प्रतीक चिन्ह

छत्तीसगढ़ का प्रतीक चिन्ह - छत्तीसगढ़ की सरकार की आधिकारिक मुहर है। इसे 4 सितंबर 2001 को अपनाया गया था। इसका डिज़ाइन धान की बालियों से घिरे तीन मुख वाला सिंह को दर्शाने वाली एक गोलाकार मुहर है। मुहर के ऊपर छत्तीसगढ़ शासन लिखा हैं।

नीचे भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के तीनो रंगों में तीन लहराती रेखाएँ हैं, जो राज्य की नदियों का प्रतिनिधित्व करती हैं। उसके दए और बाये में जो दो बिजली के चिन्ह हैं जो ऊर्जा उत्पादन राज्य का प्रतिनिधित्व करती हैं। पूरा प्रतीक चिन्ह 36 किलेबंदी से घिरा हुआ है जो 36 किले का प्रतिनिधित्व करता है।

छत्तीसगढ़ के राजकीय पशु

छत्तीसगढ़ का राज्य पशु जंगली जल भैंस है, जिसे एशियाई भैंस के नाम से भी जाना जाता है। छत्तीसगढ़ में यह भैंस प्रजाति इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान और उदंती वन्यजीव अभयारण्य में पाई जाती है। यह अपने विशाल आकार और गहरे भूरे रंग के लिए जाने जाते हैं। छत्तीसगढ़ ने वन्य भैंस और उसके आवास की रक्षा के लिए कई कदम उठाए हैं, जिसमें संरक्षण कार्यक्रम स्थापित करना शामिल है।

छत्तीसगढ़ के राजकीय पुष्प

छत्तीसगढ़ का राजकीय फूल गोंदा है। यह एक मौसमी पुष्प है जो आमतौर पर राज्य के जंगलों में पाया जाता है। गोंदा तेजी से बढ़ने वाला पौधा होता है। यह अपने खूबसूरत गुलाबी और बैंगनी फूलों के लिए जाना जाता है जो वसंत के मौसम में खिलते हैं। इसका उपयोग अक्सर धार्मिक अनुष्ठानों में उपयोग किया जाता हैं। इसके अलावा शादी या समरोह में स्टेज को सजाने के लिए भी गेंदे का इस्तेमाल किया जाता हैं।

इसके चमकीले पीले और नारंगी रंग को सूर्य की ऊर्जा और जीवन शक्ति का प्रतीक माना जाता है और इस प्रकार यह नकारात्मकता को भी दूर करता है।

छत्तीसगढ़ के राजकीय पेड़

छत्तीसगढ़ का राजकीय वृक्ष साल वृक्ष है। यह एक सदाबहार पेड़ है जो आमतौर पर छत्तीसगढ़ के जंगलों में पाया जाता है। साल का पेड़ आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण है और इसकी लकड़ी का उपयोग फर्नीचर, नाव और कागज बनाने के लिए किया जाता है। 

पेड़ में कई औषधीय गुण भी होते हैं और इसकी छाल, पत्ते और राल का उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं में किया जाता है। छत्तीसगढ़ शासन ने इस महत्वपूर्ण वृक्ष के बारे में जागरूकता और संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए साल वृक्ष को अपना राज्य वृक्ष दर्जा दिया है।

छत्तीसगढ़ के राजकीय पक्षी

छत्तीसगढ़ का राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना है। यह आवाज की नकल करने के लिए जाना जाता है। पहाड़ी मैना छत्तीसगढ़ के जंगलों और पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाता हैं। मानव और अन्य ध्वनियों की नकल करने की उनकी क्षमता के कारण उन्हें अक्सर पालतू बनाकर रखा जाता है। पक्षी के चोंच और पैर चमकीले पीले रंग के होते है। उसकी आँखों का रंग नारंगी होता है और पुरे शरीर में काले रंग के पंख होते हैं।

छत्तीसगढ़ के राजकीय फल

कटहल छत्तीसगढ़ का राजकीय फल हैं। कटहल एक मौसमी फल है जो छत्तीसगढ़ के साथ-साथ भारत के अन्य भागों और दक्षिण पूर्व एशिया में पाया जाता है। फल अपने बड़े आकार और अद्वितीय स्वाद के लिए जाना जाता है। कटहल पोषक तत्वों से भरपूर होता है और आहार फाइबर, विटामिन सी, पोटेशियम और अन्य महत्वपूर्ण विटामिन और खनिजों का एक अच्छा स्रोत है।

छत्तीसगढ़ में, कटहल का व्यापक रूप से खाना पकाने में उपयोग किया जाता है। पके फल को अक्सर मिठाई के रूप में खाया जाता है या मिठाई बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। जबकि कच्चे फल का उपयोग सब्जी बनाने में किया जाता है।

छत्तीसगढ़ के राजकीय भाषा

छत्तीसगढ़ की राजभाषा हिन्दी है। हालाँकि, राज्य में कई अन्य भाषाएँ भी बोली जाती हैं, जिनमें छत्तीसगढ़ी भी शामिल है, जो हिंदी की एक बोली है और छत्तीसगढ़ के लोगों द्वारा व्यापक रूप से बोली जाती है। राज्य में बोली जाने वाली अन्य भाषाओं में गोंडी, उड़िया और तेलुगु हैं। छत्तीसगढ़ सरकार आधिकारिक उद्देश्यों के लिए हिंदी का उपयोग करती है, और यह राज्य में शिक्षा और व्यवसाय की प्राथमिक भाषा भी है।

छत्तीसगढ़ के राजकीय गीत

छत्तीसगढ़ का राज्य गीत "अरपा पैरी के धार" है, जिसे प्रसिद्ध कवि पंडित सुंदरलाल शर्मा ने लिखा था। यह गीत अरपा नदी को श्रद्धांजलि है, जो छत्तीसगढ़ से होकर बहती है और राज्य के लोगों द्वारा इसे पवित्र माना जाता है। यह गीत छत्तीसगढ़ की प्राकृतिक सुंदरता, इसकी समृद्ध संस्कृति और परंपराओं का वर्णन करता है। राज्य की सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने और संरक्षित करने के लिए इसे छत्तीसगढ़ के राज्य गीत के रूप में अपनाया गया है।

छत्तीसगढ़ लोक नृत्य

छत्तीसगढ़ मध्य भारत का एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत वाला राज्य है। जहाँ विभिन्न प्रकार के लोक नृत्य किया जाता हैं जो स्थानीय लोगों के बीच लोकप्रिय हैं। यहाँ छत्तीसगढ़ के कुछ सबसे लोकप्रिय लोक नृत्य इस प्रकार हैं।

1. पंथी - पंथी नृत्य एक पारंपरिक लोक नृत्य है। यह मुख्य रूप से सतनामी समुदाय द्वारा किया जाता है, एक धार्मिक समूह जो 19वीं शताब्दी के संत और समाज सुधारक, गुरु घासीदास की शिक्षाओं का पालन करता है। नृत्य विभिन्न धार्मिक त्योहारों और सामाजिक अवसरों के दौरान किया जाता है, और यह सतनामी संस्कृति का एक अभिन्न अंग है।

ढोलक, मंदार और झांझ जैसे पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ पंथी नृत्य की जाती  है। नर्तक एक वृत्त बनाते हैं और विभिन्न चरणों और हाथ के इशारों का प्रदर्शन करते हुए नृत्य करते हैं। नृत्य के दौरान गाए जाने वाले गीतों के बोल आमतौर पर गुरु घासीदास पर केंद्रित होते हैं।

2. राउत नाचा - राउत नाचा एक पारंपरिक लोक नृत्य है। यह मुख्य रूप से यादव समुदाय द्वारा किया जाता है। नृत्य यादव समुदाय की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का एक अनिवार्य हिस्सा है। राउत नाचा विभिन्न त्योहारों और समारोहों के दौरान किया जाता है।

राउत नाचा पुरुषों द्वारा किया जाता है। नृत्य के साथ ढोल, झांझ और शहनाई जैसे पारंपरिक वाद्य यंत्र होते हैं। नर्तक रंगीन पारंपरिक वेशभूषा पहनते हैं और खुद को गहनों और अन्य सामानों से सजाते हैं। साथ ही अपने हाथ में एक डंडा पकडे होते हैं।

नर्तक नृत्य की भावनाओं को व्यक्त करने के लिए हाथों के विभिन्न इशारों और चेहरे के भावों का भी प्रदर्शन करते हैं। नृत्य के दौरान गाए जाने वाले गीतों के बोल आमतौर पर भगवान कृष्ण की स्तुति करते हैं।

3. कर्मा - कर्मा नृत्य एक पारंपरिक लोक नृत्य है। यह मुख्य रूप से राज्य के आदिवासी समुदायों द्वारा किया जाता है, जिसमें गोंड, बैगा और उरांव शामिल हैं। नृत्य समुदाय की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का एक अनिवार्य हिस्सा है और कर्मा त्यौहार के दौरान किया जाता है, जो अगस्त या सितंबर के महीने में पड़ता है।

कर्मा नृत्य पुरुषों और महिलाओं दोनों द्वारा किया जाता है। नृत्य पारंपरिक वाद्य यंत्रों जैसे मंदार, ढोल और मंजीरा के साथ होता है। नर्तक रंगीन पारंपरिक वेशभूषा पहनते हैं साथ ही गहने भी पहनते हैं।

नृत्य करने वाले गीत भी गाते हैं जो कर्म उत्सव की कहानियों का वर्णन करते हैं और आशीर्वाद के लिए प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करते हैं। ऐसा माना जाता है कि यह नृत्य समुदाय में समृद्धि और खुशी लाता है और यह उनकी सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान का एक अभिन्न अंग है।

4. सुआ नृत्य - सुआ दीपावली के त्योहार के दौरान छत्तीसगढ़ राज्य में महिलाओं द्वारा किया जाने वाला एक नृत्य है। सुआ का अर्थ तोता होता है, एक पक्षी जो शब्दों को दोहराने के लिए जाना जाता है। सुआ में नृत्य एक साथ-साथ गीत गयी जाती हैं। जिसमे महिलएं अपने दिल की बात को इस प्रकार व्यक्त करती हैं कि तोता उनके दिल की पीड़ा को उनके प्रेमी तक पहुंचा देगी। इसे वियोग का गीत भी कहा जाता है। यह लोकगीत आमतौर पर धान की फसल के दौरान गाया जाता है।

सुना नृत्य में मिट्टी का सूआ बनाकर उसके चारो ओर गीत गाकर नृत्य किया जाता हैं। यह दिवाली से कुछ दिन पहले शुरू होता है और दिवाली पर शिव-पार्वती (गौरा-गौरी) के विवाह के साथ समाप्त होता है। महिलाएं रंगीन साड़ी पहनते हैं। यह नृत्य ढोलक, मंजीरा और हारमोनियम जैसे पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुन पर प्रस्तुति किया जाता हैं।

5. गेड़ी नृत्य - छत्तीसगढ़ के सभी लोक नृत्यों में गेंडी नृत्य को सबसे मजेदार और रोमांचक माना जाता है। इस नृत्य रूप में, नर्तकियों का एक समूह, ज्यादातर युवा लड़के और लड़कियां, एक घेरा बनाते हैं और लयबद्ध तरीके से घूमते हैं। बांस के खंभे पर संतुलन बनाते हुए विभिन्न मूवमेंट करते हैं। गेड़ी लगभग 8-10 फुट लंबा होता है।

गेड़ी नृत्य आमतौर हरेली त्यौहार के समय किया जाने वाला नृत्य हैं। इस नृत्य में अधिक कौशल, शक्ति और समन्वय की आवश्यकता होती है। नृत्य पारंपरिक वाद्य यंत्रों जैसे ढोल, मंदार और झांझ के साथ होता है। गेड़ी नृत्य न केवल मनोरंजन का साधन है बल्कि छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करता है।

इस पोस्ट में छत्तीसगढ़ की लोक नृत्यों में से कुछ नृत्य के बारे में बताया गया हैं। प्रत्येक नृत्य की अपनी अनूठी शैली और महत्व है और यह राज्य की सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

छत्तीसगढ़ की संस्कृति

छत्तीसगढ़ एक समृद्ध और विविध सांस्कृतिक विरासत वाला राज्य है। इस राज्य में आदिवासी और गैर-आदिवासी संस्कृतियों का एक अनूठा मिश्रण है, जो इसकी कला, संगीत, नृत्य, त्योहारों और रीति-रिवाजों में दिखाई देता है।

1. लोक नृत्य - छत्तीसगढ़ अपने जीवंत लोक नृत्यों जैसे राउत नाच, पंथी, कर्मा और सुवा नृत्य के लिए जाना जाता है। पंथी छत्तीसगढ़ का एक लोकप्रिय लोक नृत्य है जो सतनामी समुदाय द्वारा किया जाता है। राउत नाचा छत्तीसगढ़ में यादव समुदाय द्वारा किया जाने वाला एक लोकप्रिय लोक नृत्य है। सुआ महिलाओ द्वारा दिवाली के समय किया जाने वाला लोक नृत्य है।

2. लोक गीत - छत्तीसगढ़ में विभिन्न प्रकार के लोक गीत हैं जो स्थानीय लोगों के बीच लोकप्रिय हैं। सोहर एक पारंपरिक लोरी है जिसे माताओं द्वारा अपने नवजात शिशुओं को गाकर सुनाया जाता है। ददरिया छत्तीसगढ़ के किसानों द्वारा बुवाई और कटाई के मौसम में गया जाने वाला गीत हैं। जबकि पंथी गीत छत्तीसगढ़ के सतनामी समुदाय द्वारा गाया जाने वाला एक लोकप्रिय लोक गीत है।

3. कला और हस्तशिल्प - छत्तीसगढ़ अपनी अनूठी हस्तशिल्प कला के लिए जाना जाता है, जिसमें ढोकरा, टेराकोटा, बांस शिल्प कला, घंटी धातु और पेंटिंग शामिल हैं। 

ढोकरा शिल्प कला धातु ढलाई का एक पारंपरिक रूप है जो छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों द्वारा किया जाता है। कोसा रेशम अपनी महीन बनावट के लिए जाना जाता है और इसका उपयोग साड़ी, शॉल और अन्य पारंपरिक परिधान बनाए जाते है। टेराकोटा छत्तीसगढ़ का एक लोकप्रिय हस्तकला है जिसका उपयोग दीयों, फूलदानों और मूर्तियों जैसी विभिन्न वस्तुओं को बनाने के लिए किया जाता है।

4. त्यौहार - राज्य में साल भर विभिन्न त्योहार मनाए जाते हैं, जैसे होली, दिवाली, दशहरा और नवरात्रि। राज्य के कुछ अनूठे त्योहारों में बस्तर दशहरा, हरेली और पोला शामिल हैं। 

बस्तर दशहरा छत्तीसगढ़ में सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है और राज्य के बस्तर जिले में मनाया जाता है। हरेली श्रावण के महीने में मनाया जाता है। यह खेती किसानी का प्रतीक है। यह त्योहार बहुत उत्साह के साथ पुरे छत्तीसगढ़ में मनाया जाता है। पोला छत्तीसगढ़ में किसानों द्वारा मनाया जाने वाला त्योहार है। त्योहार बैल की पूजा के लिए जाना जाता है यह त्यौहार पारंपरिक नृत्य के लिए भी जाना जाता है।

5. भोजन - छत्तीसगढ़ का भोजन मुख्य रूप से शाकाहारी है और इसमें चीला, पोहा, कुसली और फारा जैसे व्यंजन शामिल हैं। राज्य में जनजातीय समुदायों का भी अपना अनूठा व्यंजन है।

पोहा छत्तीसगढ़ का एक लोकप्रिय नाश्ता है। यह चपटे चावल को पानी में भिगोकर और फिर इसे प्याज, टमाटर और मसालों के साथ भून कर बनाया जाता है। चीला बेसन या पिसान से बनाया जाने वाला रोटी हैं। इसे प्याज और मसालों के घोल से बनाया जाता है। फर्रा छत्तीसगढ़ में चावल के आटे से बनाया जाता है। यह भाप में पकाकर बनाया जाने वाला लोकप्रिय नाश्ता है।

6. पहनावा - साड़ी छत्तीसगढ़ की एक लोकप्रिय पारंपरिक पोशाक है। छत्तीसगढ़ में महिलाओं द्वारा पहनी जाने वाली साड़ियाँ आमतौर पर सूती या रेशम से बनी होती हैं। साड़ी को लपेटने की शैली एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भिन्न होती है। धोती कुर्ता छत्तीसगढ़ में पुरुषों द्वारा पहना जाने वाला पारंपरिक पहनावा है। इसमें एक लंबी शर्ट (कुर्ता) और पैरों (धोती) के चारों ओर लपेटा हुआ कपड़ा होता है। धोती के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला कपड़ा आमतौर पर कपास से बना होता है।

7. साहित्य - छत्तीसगढ़ में लोक साहित्य का लंबा इतिहास रहा है। रामायण और महाभारत छत्तीसगढ़ की साहित्यिक परंपरा का एक अनिवार्य हिस्सा हैं। छत्तीसगढ़ में एक समृद्ध साहित्यिक परंपरा है। जिसे पड़वानी कहा जाता हैं इसमें महाभारत का पूर्ण उल्लेख किया जाता हैं। आधुनिक साहित्यकार पंडित सुंदरलाल शर्मा, हरिराम मेहता और शिवराम शर्मा हैं। राज्य कई साहित्यिक उत्सवों का मेजबानी करता है जिसमे रायपुर साहित्य महोत्सव उल्लेखनीय हैं।

9. खेल - छत्तीसगढ़ में एक जीवंत खेल संस्कृति है, जहां राज्य भर में कई पारंपरिक और आधुनिक खेल खेले जाते हैं। कबड्डी छत्तीसगढ़ का एक लोकप्रिय पारंपरिक खेल है। छत्तीसगढ़ में क्रिकेट एक लोकप्रिय आधुनिक खेल है, राज्य की अपनी क्रिकेट टीम है और विभिन्न घरेलू टूर्नामेंटों की मेजबानी करता है। पारंपरिक खेलो में गिल्ली डंडा, अटकन-बटकन, फुगड़ी, लंगड़ी, अंधियारी-अंजोरी, बाँटी और भौंरा शामिल हैं।

छत्तीसगढ़ की संस्कृति पारंपरिक और आधुनिक तत्वों का एक विविध और जीवंत मिश्रण है, जो राज्य के समृद्ध इतिहास और विरासत को दर्शाता है। कुल मिलाकर, छत्तीसगढ़ की संस्कृति विभिन्न कला रूपों, रीति-रिवाजों, परंपराओं और मान्यताओं का एक समृद्ध मिश्रण है।

छत्तीसगढ़ के प्रमुख त्यौहार

छत्तीसगढ़ मध्य भारत में स्थित एक राज्य है। जिसकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है। इस राज्य में ऐसे कई त्यौहार जो केवल छत्तीसगढ़ में मनाया जाता हैं, छत्तीसगढ़ के कुछ प्रमुख त्यौहार इस प्रकार हैं।

1. बस्तर का दशहरा - यह छत्तीसगढ़ के सबसे प्रसिद्ध त्योहारों में से एक है। जो बस्तर जिले में मनाया जाता है। यह त्योहार सितंबर-अक्टूबर के महीने में 10 दिनों तक चलता है और विजयादशमी के दिन समाप्त होता है। यह त्योहार अपने अनोखे अनुष्ठानों और रीति-रिवाजों के लिए जाना जाता है। हलाकि यह आम दशहरा की तरह होता हैं।

त्योहार के दौरान, देवताओं की मूर्तियों को रथों पर जुलूस में निकाला जाता है, जिन्हें खूबसूरती से सजाया जाता है। भक्त देवताओं को फूल, नारियल और अन्य प्रसाद चढ़ाते हैं। त्योहार पारंपरिक नृत्य और संगीत प्रदर्शन के लिए भी जाना जाता है, जो उत्सव का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

2. राजिम कुंभ मेला - यह छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में स्थित राजिम शहर में मनाया जाने वाला एक हिंदू त्योहार है। त्योहार हर साल फरवरी या मार्च के महीने में आयोजित किया जाता है। हिंदुओं के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। ऐसा माना जाता है, पवित्र महानदी नदी में डुबकी लगाने से व्यक्ति के पाप धुल जाते हैं। महानदी के बीचो बीच भगवन शिव की प्राचीन मंदिर स्थित हैं।

3. चक्रधर समरोह - यह छत्तीसगढ़ के उत्तरी भाग में रायगढ़ शहर में आयोजित एक सांस्कृतिक उत्सव है। त्योहार जनवरी के महीने में मनाया जाता है और पूरे देश से बड़ी संख्या में संगीत और नृत्य उत्साही लोगों को आकर्षित करता है।

त्योहार का नाम राजा चक्रधर सिंह के नाम पर रखा गया है, जो संगीत और नृत्य के महान संरक्षक थे। त्योहार शास्त्रीय संगीत और नृत्य के प्रदर्शन के लिए प्रसिद्ध है। जो प्राचीन चक्रधर मंदिर में आयोजित किए जाते हैं। त्योहार में एक भोजन और शिल्प मेला भी शामिल है, जहाँ आगंतुक स्थानीय व्यंजनों का स्वाद ले सकते हैं और हस्तशिल्प खरीद सकते हैं।

4. मड़ई महोत्सव - यह छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में मनाया जाने वाला एक आदिवासी त्योहार है। त्योहार दिसंबर या जनवरी के महीने में मनाया जाता है। इस त्यौहार में आदिवासी देवताओं की पूजा, पारंपरिक नृत्य और संगीत प्रदर्शन और उपहारों का आदान-प्रदान किया जाता है।

5. तीजा महोत्सव - यह मानसून के मौसम की शुरुआत को चिह्नित करने के लिए छत्तीसगढ़ में महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला त्योहार है। त्योहार जुलाई या अगस्त के महीने में मनाया जाता है। तीजा व्रत को सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखती है। महिलाएं अन्न जल का ग्रहण नहीं करती हैं। देवी पार्वती ने भगवान शिव को प्राप्त करने लिए इस व्रत को किया था। व्रत के दौरान महिलाएं हाथों पर मेहंदी लगाती हैं।

6. पोला महोत्सव - यह छत्तीसगढ़ में किसानों द्वारा फसल के मौसम की शुरुआत को चिह्नित करने के लिए मनाया जाने वाला त्योहार है। त्योहार अगस्त या सितंबर के महीने में मनाया जाता है और बैलों और कृषि सामान की पूजा द्वारा की जाती है। जिन्हें राज्य में कृषि गतिविधियों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।

त्योहार के दौरान, बैलों को रंग-बिरंगे कपड़ों और गहनों से सजाया जाता है और जुलूस निकाला जाता है। किसान बैलों की पूजा करते हैं और अच्छी फसल के लिए उनका आशीर्वाद मांगते हैं। त्योहार को पारंपरिक नृत्यों, जैसे राउत नाचा का भी आयोजन किया जाता है।

7. हरेली महोत्सव - हरेली छत्तीसगढ़ में कृषक समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला त्योहार है। त्योहार जुलाई या अगस्त के महीने में मनाया जाता है और देवी खेरमाई की पूजा की जाती है। जो किसानों को अच्छी फसल का आशीर्वाद देती हैं। त्योहार के दौरान, किसान देवी की प्रार्थना करते हैं और पारंपरिक नृत्य और संगीत का प्रदर्शन करते हैं।

8. नवाखानी महोत्सव - नवाखानी महोत्सव छत्तीसगढ़ में उरांव जनजाति द्वारा मनाया जाने वाला एक फसल उत्सव है। त्योहार नवंबर के महीने में मनाया जाता है और देवी खेरखाई की पूजा किया जाता है। माना जाता है कि यह त्यौहार मानाने से देवी खुश होती हैं और अच्छी फसल का आशीर्वाद देती हैं। इस त्योहार में पारंपरिक नृत्य और संगीत का प्रदर्शन किया जाता हैं। 

9. कर्मा त्यौहार - करमा महोत्सव छत्तीसगढ़ में गोंड और बैगा जनजातियों द्वारा मनाया जाने वाला एक आदिवासी त्योहार है। त्योहार अगस्त या सितंबर के महीने में मनाया जाता है और भगवान कर्मा की पूजा की जाती है। जिसे समृद्धि और सौभाग्य लाने वाला माना जाता है। लोग पारंपरिक नृत्य और संगीत का प्रदर्शन करते हैं।

छत्तीसगढ़ का भूगोल

भूगोल - छत्तीसगढ़ के उत्तरी और दक्षिणी भाग पर पहाड़ स्थित है, जबकि मध्य भाग उपजाऊ मैदान सुशोभित है। राज्य के कुल भूमि का लगभग 44% हिस्सा वनो से घिरा हुआ हैं। गंगा नदी की सहायक नदी रिहंद उत्तरी भाग को उपजाऊ बनती है। छत्तीसगढ़ का नक्शा एक समुद्री घोड़े की तरह दिखाई देता है।

छत्तीसगढ़ की प्रमुख नदी - छत्तीसगढ़ के मध्य भाग को महानदी नदी और उसकी सहायक नदियाँ उपजाऊ बनाती है। इस क्षेत्र में सबसे अधिक चावल की खेती होती है। महानदी राज्य की प्रमुख नदी है। अन्य मुख्य नदियाँ हसदेव, रिहंद, इंद्रावती, जोंक, अरपा और शिवनाथ हैं।

छत्तीसगढ़ की प्रमुख फसल - धान, सोयाबीन, उड़द एवं अरहर, चना एवं तिवड़ा है। इसके अलावा गन्ना, मूंगफली भी उगाया जाता हैं। रायपुर, गरियाबंद, बलौदाबाजार, महासमुंद, धमतरी सहित मैदानी क्षेत्रों में धान-पड़त, धान, तिवड़ा, चना, गेहूं, सोयाबीन और सरसों जैसे फसलों का उत्पादन किया जाता हैं। जबकि जगदलपुर, नारायणपुर और बीजापुर सहित पठारी क्षेत्र में धान, मक्का, रामतिल, अरहर, मूंग, उड़द आदि की फसल ली जाती हैं।

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