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भूकंप किसे कहते हैं - भूकंप की उत्त्पत्ति

अनुक्रमांक
भूकंप किसे कहते हैं
भूकंप की उत्पत्ति
गैसों की क्रियाशीलता
ज्वालामुखी क्रिया
सम्पीडन की क्रिया
भू-सन्तुलन की अव्यवस्था
प्रत्यास्थ पुनर्बलन सिद्धांत

भूकंप किसे कहते हैं

पृथ्वी पर अचानक आने वाला हलचल है। को ही भूकंप कहा जाता है। इसके प्रभाव से पृथ्वी का क्षेत्र हिलने लगता है। भूकंप का पता उसके कम्पन और चारो ओर फैली तरंगो से चलता है। परिभाषित - प्राकृतिक कारणों से जब पृथ्वी की सतह कांपने लगती है तो उसे भूकंप कहते हैं।

जिस प्रकार पानी में पत्थर फेंकने से वहाँ से चारों दिशाओं में लहरें फैलने लगती हैं। उसी प्रकार चट्टानों में भी भूकंप के प्रभाव से लहरें चारों दिशाओं में फैलती जाती हैं। इन लहरों या तंरगों की सघनता के अनुसार ही भूकंप की शक्ति का पता चल जाता है।

आर. एस. पवार के अनुसार  "भूकंप पृथ्वी के आन्तरिक भाग से सम्बन्धित वे धरातलीय कम्पन हैं। जो प्रकृति द्वारा उत्पन्न होते हैं।"

इस प्रकार जब भी प्राकृतिक कारणों से धरती के नीचे की चट्टानों में किसी न किसी प्रकार की विसंगति। पैदा होने लगती है तो धरती पर भूकंप आने लगता है।

भूकंप की उत्पत्ति

प्राचीन विचारधारा - प्राचीन मान्यता के अनुसार इसे देवीय शक्ति माना जाता था। बहुत पहले ये धारणा बनी कि जब पृथ्वी पर पाप अधिक होने लगते हैं। तो उनके भार से पृथ्वी हिलने लगती है। बाद में लोगों ने माना कि पृथ्वी नाग सर्प के फन के ऊपर है। जब नाग सर्प हिलता है तो पृथ्वी में भी कम्पन होने लगता है। टर्की में पृथ्वी को भैंसे के सींग पर टिकी मानी गई है। उत्तरी अमेरिका में इसे कछुए पर रखा माना जाता था। 

आधुनिक विचारधारा - आधुनिक समय में प्राचीन विचारधारा को असत्य साबित किया गया है क्योंकि ये सभी बातें विज्ञान से बहुत दूर है। इसमें रखी गई बातों को मानना सम्भव नहीं है। भूकंप की उत्पत्ति के निम्न कारण होते हैं। 

भू-गर्भ में ऊँचे तापमान पर जल-वाष्प एवं गैसों की क्रियाशीलता 

पृथ्वी की गहराइयो में दरारों या अन्य कारणों से पानी काफी नीचे पहंचने लगता है। तो वह पानी तेजी से गर्म होकर वाष्प में बदलता जाता है। पहले से स्थित ज्वालामुखी के द्वारा पानी नीचे प्रवेश करता है तो वह तेजी से और बहुत ऊचे दबाव में बदलने लगता है।

साथ-साथ अनेको प्रकार की गैसें भी वाष्प के साथ मिल जाती है। ऐसी गैस मिश्रित उच्च दबाव वाली वाष्प गतिशील होती है। यही वाष्प और गैस पृथ्वी की सतह की ओर आने का मार्ग ढूँढ़ता है। 

ऐसा करते समय वह भू-तल की ओर दबाव डालकर एवं भू-तल का का रास्ता खोजकर तेजी से गतिशील होने लगती है। कभी-कभी ये गैसें कमजोर पृथ्वी की पपड़ी से मार्ग ढूंढकर पृथ्वी की सतह से तेजी से बाहर आने लगती हैं। इन सारी क्रियाओं से पृथ्वी में कम्पन होने लगती है और धरती पर भूकंप आता है।

ज्वालामुखी क्रिया

पृथ्वी के असन्तुलित भागों में जहाँ निकटवर्ती गहरे सागरों की तली में सीमा की परत सतह के काफी निकट आ गई है वहाँ स्पष्टतः असन्तुलन को स्थिति में पाई जाती है। इसी कारण ऐसे क्षेत्रों में ज्वालामुखी क्रिया के साथ अथवा बिना ज्वालामुखी फटे ही भूकंप आते रहते हैं।

सम्पीडन की क्रिया 

पृथ्वी की सतह पर अनेक कारणों से भ्रंश एवं सम्पीडन की क्रियाएं होती रहती है। ऐसी क्रियाओं के प्रभाव से पृथ्वी की चट्टानें भ्रंस के प्रभाव से टूटती है। अथवा पृथ्वी की सतह पर दरार घाटी ब्लाक पर्वत विकसित होते रहते हैं। 

इनके प्रभाव से चट्टानों के खिसकाव से भूकंप आते हैं। जब ऐसी क्रियाएँ पृथ्वी की गहराई में होती हैं तो अधिक विस्तृत क्षेत्र में भूकंप आते हैं।

भू-सन्तुलन की अव्यवस्था 

पृथ्वी के अधिकांश भागों में भू सन्तुलन सम्बन्धी थोड़ी बहुत अव्यवस्था पाई जाती है। किन्तु कुछ भाग ऐसे भी हैं जहाँ कि ऊंचे ऊचे पर्वत एवं गहरे सागर पास पास में स्थित है। ऐसे भागों में सन्तुलन की अव्यवस्था सबसे अधिक पाई जाती है। इसी कारण वहाँ संतुलन की स्थिति स्थापित करने के लिए प्राकृतिक शक्तियां निरन्तर प्रभावी रहती हैं। 

इसके कारण कई बार भूकंप आते है। जापान में आने वाले विनाशकारी भूकंप इसी प्रकार की होती हैं। फिलीपीन्स एवं अफगानिस्तान में 4 मार्च1949 में आया भूकंप ऐसी सन्तुलन की अव्यवस्था वाली थी। 

प्रत्यास्थ पुनर्बलन सिद्धांत

यह सिद्धान्त डॉ. रीड का है। इसके अनुसार, प्रत्येक चट्टान में थोड़ी मात्रा में धीमी गति से होने वाली खिंचाव अथवा दबाव को सहन करने की क्षमता होती है। इसी आधार पर डॉ. रीड ने अपना सिद्धान्त चट्टानों में प्रत्यास्थ पुनश्चलन सिद्धान्त प्रस्तुत किया। जब चट्टानों पर क्षमता से अधिक दबाव की स्थिति आ जाती है। या जब तेजी से ऐसा दबाव बढ़ने लगता है। तो ऐसी स्थिति में चट्टानें सहन नहीं कर पाती तथा टूट जाती हैं। 

टूटी हुई चट्टानें पुनः खिंचकर अपनी पुरानी स्थिति में भी आने लगती हैं क्योंकि चट्टानों के लचीलेपन के प्रभाव से ही धीमी गति के दबाव को चट्टान सहन करके दबती रही हैं। पर्वतों में परिवलन एवं प्रीवा खण्डों में होने वाला चट्टानों का चलन इसी का उदाहरण है। चट्टानों के इस क्रिया के साथ पुनः अपनी मूल स्थिति में सिमट जाने से वहाँ कुछ स्थान खाली हो सकता है। इससे भी पृथ्वी की सतह पर कहीं-कहीं भूकंप आते हैं।

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