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Hindi Sahitya
निरमोहिया सों प्रीति कीन्हीं काहे न दुख होय ? कपट करि-करि प्रीति कपटी लै गयो मन गोय।। काल मुख तें काढ़ि आनी बहुरि दीन्हीं ढोय। मेरे जिय की सोई जानै…
बिन गोपाल बैरनि भई कुंजै। तब ये लता लगति अति सीतल , अब भई विषम ज्वाल की पुंजै।। बृथा बहति जमुना, खग बोलत, बृथा कमल फूलैं, अलि गुंजै। पवन पानि घनसार संजीवनि दधिसुत किरन भानु भई भुंजै।। ए…
सँदेसो कैसे कै अब कहौं ? इन नैनन्ह तन को पहरो कब लौं देति रहौं ? जो कछु बिचार होय उर -अंतर रचि पचि सोचि गहौं। मुख आनत ऊधौं-तन चितवन न सो विचार, न हौं।। अब सोई सिख देहु, …
ऊधो ! क्यों राखौं ये नैन ? सुमिरि सुमिरि गुन अधिक तपत हैं सुनत तिहारो बैन।। हैं जो मन हर बदनचंद के सादर कुमुद चकोर। परम-तृषारत सजल स्यामघन के जो चातक मोर। मधुप मराल चरनपंकज के, गति-बिसाल-जल मीन। चक्…