अपठित गद्यांश किसे कहते हैं

जो पढ़ा हुआ न हो उसे अपठित गद्यांश कहते है। पाठ्य पुस्तक के पाठ पहले से पठित होने के कारण सरल लगते हैं। इस कारण प्रायः छात्र इन अवतरणों को सरलता से हल कर लेते हैं। किन्तु अपठित गद्यांश अपेक्षाकृत कठिन लगते हैं। अतः विद्यार्थी अपठित गद्यांश को देखते ही घबड़ा जाता है। 

प्रायः देखा जाता हैं कि विद्यार्थी अपठित गद्यांश का सीधा अर्थ लिख देना अथवा उस गद्यांश में कुछ शब्दों का हेर-फेर करके ज्यों का त्यों नकल कर देना अपना कर्तव्य समझ लेता है और यह विचार कर सन्तोष कर लेता है कि कुछ तो अंक मिल ही जायेंगे।

अधिकांश परीक्षार्थी अपठित गद्यांश के प्रश्नों का सही उत्तर नहीं लिखते। पूछा जाता है सरलार्थ, तो वे लिखते हैं, व्याख्या। यदि व्याख्या पूछी जाती है तो वे करते हैं शब्दार्थ। यदि किसी प्रश्न का उत्तर पूछा जाता है तो वे पूरे गद्यांश को उतारकर रख देते हैं। यह प्रश्न न समझने की कमी और उत्तर देने की विधि से अनभिज्ञ होने के कारण होता है। अतः इस कमी को दूर करने के लिये विद्यार्थियों को सतत अभ्यास करते रहना आवश्यक है।

अपठित गद्यांश को हल करने की विधि जानने से पूर्व सरलार्थ, भावार्थ, व्याख्या, आशय या सारांश आदि का अर्थ जान लेना आवश्यक है। इनको ठीक से समझ लेने पर छात्रों को कोई कठिनाई न होंगी।

सरलार्थ - गद्यांश के प्रत्येक शब्द और प्रत्येक वाक्य को अपनी भाषा में लिख देना ही सरलार्थ है। इसमें कठिन शब्दों या वाक्यों को अपनी सरल भाषा में लिखना होता है। भावार्थ- गद्यांश में निहित लेखक के भावों या विचारों को संक्षेप में लिखना भावार्थ है। इसमें कठिन शब्दों या वाक्यों का अर्थ न लिखकर लेखक के भावों और विचारों को अपनी सरल भाषा में कम से कम शब्दों में लिखना होता है। यह आकार में पूरे गद्यांश का आधे से अधिक नहीं होना चाहिए।

व्याख्या - गद्यांश में दिये लेखक के विचारों को विस्तार के साथ स्पष्ट करना और शब्दों का समाधान प्रस्तुत करना व्याख्या कहलाता है। इसमें आवश्यक होने पर उदाहरण देना भी श्रेयस्कर है। व्याख्या में आकार की कोई निश्चित सीमा नहीं होती।

सारांश - गद्यांश में दिये लेखक के मूल भावों को अति संक्षिप्त रूप में स्पष्ट करना सारांश कहलाता है। सारांश भावार्थ की अपेक्षा संक्षिप्त होता है । यह आकार में पूरे गद्यांश का एक तिहाई से अधिक कदापि नहीं होना चाहिए। सारांश को ही आशय, तात्पर्य और अभिप्राय भी कहा जाता है।

अपठित गद्यांश किसे कहते हैं

अपठित गद्यांश हल करने हेतु आवश्यक निर्देश - अपठित गद्यांश के प्रश्नों को हल करने के लिए विद्यार्थियों को निम्नलिखित निर्देशों कोध्यान में रखना चाहिये। 

1. अपठित गद्यांश एक बार पढ़ने से समझ नहीं आता हैं। इसलिए उसे कम से कम तीन-चार बार ध्यानपूर्वक पढ़ना चाहिये और उसमें निहित लेखक के विचारों को समझने का प्रयास करना चाहिए। 

2. गद्यांश की भाषा में कठिन शब्दों के वास्तविक अर्थ के चक्कर में अधिक समय नष्ट न करके उसके भाव को समझने का प्रयास करना चाहिये।

3. सरलार्थ समझने के बाद देखना चाहिए कि परीक्षक क्या चाहता है ? तब विचारपूर्वक उसका उत्तर ढंग से लिखना चाहिये।

4. व्याख्या, सरलार्थ, भावार्थ, सारांश आदि में जो भी बात पूछी गई हों, उसी के अनुसार ऊपर बताये गये ढंग से लिखना चाहिए, ताकि ऊपर दी गयी बातों में क्रम बन जाये।

5. लिखते समय इतना ध्यान अवश्य रखा जाये कि जो भी आप लिखें, वह व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध हो और उसकी भाषा भी सरल हो।

6. यदि प्रश्न में उत्तर देने की कोई सीमा निर्धारित हो, तो उसका पूरा ध्यान रखा जाये । व्यर्थ. का विस्तार आपको अच्छे अंक नहीं दिला सकेगा।

7. रेखांकित अथवा मोटे काले छपे वाक्यों या अंशों को ध्यान से दो-तीन बार पढ़कर उनके अर्थ पर विचार करना चाहिए, तत्पश्चात् व्याख्या या अर्थ लिखना चाहिए।

8. गद्यांश से सम्बन्धित प्रश्न भी पूछे जाते हैं जिनका उत्तर उसी गद्यांश में छिपा रहता है। छात्रों को सर्वप्रथम गद्यांश का मूल भाव ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिए, तदुपरान्त प्रश्नों के उत्तर गद्यांश के आधार पर ही संक्षेप में अपनी भाषा में देने चाहिए।

9. अपठित गद्यांश से सम्बन्धित प्रश्न अति लघु उत्तरीय होते हैं । अतः इन प्रश्नों के उत्तर अधिकतम 20-25 शब्दों में ही होने चाहिए। विस्तारपूर्वक उत्तर देने की कोई आवश्यकता नहीं है। 

10. अपठित गद्यांश का शीर्षक पूछने पर पहले उसके भाव और तथ्य को भली प्रकार समझना चाहिए। फिर विचारपूर्वक शीर्षक लिखना चाहिए। शीर्षक लिखते समय निम्नलिखित बिन्दुओं का ध्यान रखा जाये -

  • शीर्षक कम से कम शब्दों का हो।
  • शीर्षक में गद्यांश का पूरा भाव निहित हो।
  • शीर्षक आकर्षक और प्रभावशाली हो।
  • शीर्षक सरल और बोधगम्य हो।
  • शीर्षक प्रायः प्रथम या अन्तिम पंक्ति में होता है।

11. अपठित गद्यांश को सम्यक रूप से हल करने के लिए छात्रों में व्यापक शब्द-भण्डार की जानकारी तथा तत्सम्बन्धी ज्ञान-वृद्धि विशेष आवश्यक है। अतः छात्रों को पाठ्य-पुस्तकों के अतिरिक्त अन्य पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं एवं समाचार-पत्रों का पूर्ण मनोयोग से अध्ययन करना चाहिए।

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