67. राग धनाश्री
कहति कहा ऊधो सों बौरी।
जाको सुनत रहे हरि के ढिग स्यामसखा यह सो री !
हमको
जोग सिखावन आयो, यह तेरे मन आवत ?
कहा कहत री ! मैं पत्यात री नहीं सुनी
कहनावत ?
करनी भली भलेई जानै, कपट कुटिल की खानि।
हरि को सखा नहीं री
माई ! यह मन निसचय जानि।।
कहाँ रास-रस कहाँ जोग-जप ? इतना अंतर भाखत।
सूर
सबै तुम कत भईं बौरी याकी पति जो राखत।।