याकी सीख सुनै ब्रज को, रे ?
जाकी रहनि कहनि अनमिल, अलि, कहत समुझि अति थोरे।।
आपुन पद-मकरंद सुधारस, हृदय रहत नित बोर।
हमसों कहत बिरस समझौ, है गगन कूप खनि खोरे।।
घान को गाँव पयार ते जानौ ज्ञान विषयरस भोरे।
सूर दो बहुत कहे न रहै रस गूलर को फल फोरे।।
याकी सीख सुनै ब्रज को, रे ?
जाकी रहनि कहनि अनमिल, अलि, कहत समुझि अति थोरे।।
आपुन पद-मकरंद सुधारस, हृदय रहत नित बोर।
हमसों कहत बिरस समझौ, है गगन कूप खनि खोरे।।
घान को गाँव पयार ते जानौ ज्ञान विषयरस भोरे।
सूर दो बहुत कहे न रहै रस गूलर को फल फोरे।।