हमारे हरि हारिल की लकरी।
मन बच क्रम नंदनंदन सो उर यह दृढ़ करि पकरी।।
जागत, सोबत, सपने सौंतुख कान्ह-कान्ह जक री।
सुनतहि जोग लगत ऐसो अलि! ज्यों करूई ककरी।।
सोई व्याधि हमें लै आए देखी सुनी न करी।
यह तौ सूर तिन्हैं लै दीजै जिनके मन चकरी।।52।।
हमारे हरि हारिल की लकरी।
मन बच क्रम नंदनंदन सो उर यह दृढ़ करि पकरी।।
जागत, सोबत, सपने सौंतुख कान्ह-कान्ह जक री।
सुनतहि जोग लगत ऐसो अलि! ज्यों करूई ककरी।।
सोई व्याधि हमें लै आए देखी सुनी न करी।
यह तौ सूर तिन्हैं लै दीजै जिनके मन चकरी।।52।।