उद्धव ! बेगि ही ब्रज जाहु।
सुरति सँदेस सुनाय मेटो बल्लभिन को दाहु।।
काम पावक तूलमय तन बिरह-स्वास समीर।
भसम नाहिं न होन पावत लोचनन के नीर।।
अजौ लौ यहि भाँति ह्वै है कछुक सजग सरीर।
इते पर बिनु समाधाने क्यों धरैं तिय धीर।।
कहौं कहा बनाय तुमसों सखा साधु प्रबीन?
सुर सुमति बिचारिए क्यों जियै जब बिनु मीन।।
सुरति सँदेस सुनाय मेटो बल्लभिन को दाहु।।
काम पावक तूलमय तन बिरह-स्वास समीर।
भसम नाहिं न होन पावत लोचनन के नीर।।
अजौ लौ यहि भाँति ह्वै है कछुक सजग सरीर।
इते पर बिनु समाधाने क्यों धरैं तिय धीर।।
कहौं कहा बनाय तुमसों सखा साधु प्रबीन?
सुर सुमति बिचारिए क्यों जियै जब बिनु मीन।।