मागधी मगध के आसपास प्रचलित एक भाषा थी। मगध अर्थात दक्षिण बिहार के अंतर्गत का क्षेत्र । मागधी प्राकृत भाषा का उल्लेख भगवान बुद्ध के संदर्भ में लिखे गए ग्रंथों में भी मिलता है जैस त्रिपिटक में।
इसी मागधी प्राकृत भाषा का रूपांतर अर्ध मागधी है जिसमें भी जैन आगमो के अनुसार जो महावीर स्वामी है उनके उपदेश मागधी प्राकृत में देखने को मिलता है। अर्धमागधी भाषा से ही अनेक बोलियों का विकास हुआ जिसमें से छत्तीसढ़ी बोली भी एक है। अर्थात छत्तीसगढ़ी साहित्य का इतिहास और विकास इससे जुड़ा हुआ है।
मागधी प्राकृत भाषा पूर्वी दिशा में और शौरसेनी प्राकृत के शिलालेख उत्तर-पश्चिम दिशा में मिलते हैं। इन भाषाओं के मिलने से एक और मगधी भाषा का जन्म हुआ जिसे अर्धमागधी भाषा कहा जाता है और अर्धमागधी भाषा से ही वर्तमान छत्तीसगढ़ी भाषा का विकास हुआ है।
मागधी प्राकृत मध्य भारतीय आर्य भाषा काल (500 ई. पू. से 1000 ई. तक) के
अंतर्गत दूसरी विकसित भाषा प्राकृत के अंतर्गत आता है। यह प्राकृत भाषा (1 ई.
से 500 ई. तक) के प्रमुख पांच भेद में से पांचवां है। जिसे मागधी प्राकृत के
नाम से जानते है।
मागधी प्राकृत भाषा की विशेषताएं
इसकी प्रमुख तीन विशेषताएं हैं जो की इस प्रकार है -
- मागधी प्राकृत में र के स्थान पर ल वर्ण का उच्चारण किया जाता था जैसे की रामु के जगह पर लामु मतलब तोतलाने जैसे।
- इस मागधी प्राकृत की दूसरी विशेषता यह है की इसमें अभी हमारे हिंदी भाषा में जो तीन शब्द हैं उनमें स, ष, और श में से सिर्फ एक श का प्रयोग किया जाता था। हानुष का हानुश, जासूस का जासूश,
- अकारान्त कर्ता कारक के एक वचन की विभक्ति में ए के मात्रा का प्रयोग। जैसे बरे का बले