जल संरक्षण क्या है - जल संरक्षण तथा जीवन का सम्बन्ध अटूट है। जल का
संरक्षण जीवन का संरक्षण है। पृथ्वी पर उपलब्ध होने वाले जल की सीमा तो
निर्धारित है. परन्तु इसकी खपत की कोई सीमा नहीं है। जल एक चक्रीय संसाधन है
जिसको वैज्ञानिक ढंग से साफ कर पुनः प्रयोग में लाया जा सकता है। धरती पर जल
वर्षा तथा बर्फ के पिघलने से प्राप्त होता है यदि इसका युक्तिसंगत उपयोग किया
जाए तो उसकी कमी नहीं होगी। विश्व के कुछ भागों में जल की बहुत कमी है।
जल संरक्षण क्या है
जल संचय का सिद्धांत यह है कि वर्षा के जल को स्थानीय आवश्यकताओं और भौगोलिक
स्थितियों की आवश्यकतानुसार संचित किया जाए। इस क्रम में भू-जल का भंडार भी
भरता है। देश के लगभग प्रत्येक बड़े शहर में भूमिगत जल का स्तर लगातार कम होता
जा रहा है। इसका मुख्य कारण यह है कि किसी भी शहर में पानी की समुचित आपूर्ति
की सुविधा नहीं है। इन परिस्थितियों में जल का संरक्षण हमारा प्राथमिक उद्देश्य
बन जाता है।
जल संरक्षण के उपाय
जल संरक्षण (Water Conservation Hindi) हेतु उपाय जल संरक्षण विभिन्न प्रकार से किया जा सकता है
1. वर्षा के जल का संचय :- जल संरक्षण हेतु वर्षा के जल का यथासंभव
भण्डारण आवश्यक है। इसके लिए खेतों में मेड़े बनाई जाए। खेतों को खुला न छोड़ा
जाए। जल-चक्र नियंत्रित करने के लिए सघन वन लगाए जाएँ।
2. जल शोषण का प्रबंध - पृथ्वी के धरातल पर जल को अधिक देर रोके रखने के
उपाय किए जाने चाहिए जिससे जल भू-गर्भ में संचित हो सके। वनों की भूमि अधिक
पानी सोखती है। अतः वर्षा के जल का बहाव वनों की ओर मोड़ना लाभप्रद होता है।
3. जल का दुरुपयोग न हो- जल के महत्व एवं संरक्षण की आवश्यकता को
जन-चेतना के रूप में प्रसारित किया जाना चाहिए जिससे वे जल का दुरूपयोग न करें।
4. खेतों में पानी का दुरुपयोग रोकना - किस भूमि में एवं किस फसल को
कितने पानी की आवश्यकता है, इसकी जानकारी कृषक को होनी चाहिए जिससे पानी का
दुरूपयोग न हो।
5. भू-गर्भ जल का सीमित उपयोग -ट्यूबवेलों की संख्या नियंत्रित होनी
चाहिए क्योंकि भू-गर्भ में जल की मात्रा सीमित होती है।
6. खेतों की नालियों में सुधार :- खेतों की नालियों को सामूहिक सहायता
से पक्की करनी चाहिए।
7. तालाबों को पक्का बनाना :- तालाबों को गहरा कर उन्हें पक्का बनाना
चाहिए जिससे अधिक जल का संचय हो सके।
8. जल का शुद्धिकरण :- जल प्रदूषण के कारणों का निराकरण किया जाना
चाहिए। पेयजल शुद्धिकरण का विशेष प्रबंध होना चाहिए।
9. उद्योगों में पानी के उपयोग पर नियंत्रण :- उद्योगों में पानी की
अधिक माँग होती है। इसे कम करने से दो लाभ होंगें। (1) उससे उद्योग के अन्य
खण्डों की पानी की माँग को पूरा किया जा सकता है। (2) इन उद्योगों द्वारा
नदियों एवं नालों में छोडे गए दूषित जल की मात्रा कम हो जाएगी। अधिकांश
उद्योगों में जल का उपयोग शीतलन हेतु किया जाता है। इस कार्य के लिए यह
आवश्यक नहीं है कि स्वच्छ और शुद्ध जल का उपयोग किया जाए। इस कार्य के लिए
पुनर्शोधित जल का उपयोग किया जाना चाहिए।
भारत में जल संसाधन प्रबंधन
भारत में जल
संसाधन (Water Conservation) प्रबंध हेतु विभिन्न प्रयास किए गए जो
इस प्रकार हैं-
1. जल संसाधन प्रबंध एवं प्रशिक्षण परियोजना : सन् 1984 में
केन्द्रीय जल आयोग ने सिंचाई अनुसंधान एवं प्रबंध संगठन स्थापित किया। इस
परियोजना का मुख्य उद्देश्य सिंचाई प्रणालियों की कुशलता और अनुरक्षण के
लिए संस्थागत क्षमताओं को मजबूत बनाना था। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए
सिंचाई प्रणालियों, के सभी चरणों में व्यावसायिक दक्षता को उन्नत बनाने और
किसानों की आवश्यकताएं पूरी करने तथा अंततः खेती की पैदावार बढ़ाने की
दृष्टि से बेहतर प्रबंध के लिए संगठनात्मक और पद्धतिमूलक परिवर्तन सुझाने
का सहारा लिया गया।
2. राष्ट्रीय जल प्रबंध परियोजना :- सन् 1986 में विश्व बैंक की
सहायता से राष्ट्रीय जल प्रबंध परियोजना प्रारंभ की गई। इस परियोजना का
मुख्य उद्देश्य खेती की पैदावर और खेती से होने वाली आय में वृद्धि करना
है।
3. प्रौद्योगिकी हस्तांतरण :- केन्द्रीय जल आयोग ने विभिन्न राज्यों से भाग
लेने आए व्यक्तियों को प्रौद्योगिकी के प्रभावशाली रूप से हस्तांतरण के लिए
कई कार्यशालाएँ, सेमीनार, श्रम इंजीनियर आदान-प्रदान कार्यक्रम, सलाहकारों
और जल एवं भूमि प्रबंध संसाधनों के माध्यम से आयोजित करवाए हैं। जल
अनुसंधान प्रबंध एवं प्रशिक्षण परियोजना के अंतर्गत सलाहकारों और केन्द्रीय
जल आयोग के मध्य परस्पर विचार विनियम के माध्यम से सिंचाई प्रबंध से
सम्बन्धित प्रकाशन, मार्गदर्शी सिद्धांत, नियमावलियों, पुस्तिकाएँ प्रकाशित
की गई है।
4.भू-जल संसाधनों के लिए योजना :- जल संसाधन मंत्रालय के केन्द्रीय भू-जल
बोर्ड ने देश के पूर्वी राज्यों में, जहाँ भू-जल संसाधनों का अधिक विकास
नहीं हो पाया है, नलकूपों के निर्माण और उन्हें क्रियाशील बनाने के लिए
केन्द्रीय योजना तैयार की है। इस योजना के अन्तर्गत हल्की एवं मध्यम क्षमता
वाले नलकूपों का निर्माण कर उन्हें छोटे एवं सीमांत कृषकों के लाभ के लिए
पंचायतों या सहकारी संस्थाओं को सौंपा जाएगा।
5. नवीन जल नीति :- नवीन जल नीति 31 मार्च 2002 से लागू हो चुकी है। जल
संरक्षण के मुख्य विषय को अगली पंचवर्षीय योजना में सम्मिलित किया गया है।
जल संरक्षण प्रणाली
जल संरक्षण की कुछ प्रणालियों निम्न है-
1. जिन क्षेत्रों में बाल अधिक नहीं होती वहाँ मॉन्टुअर बंद (पुश्ते) लगाए
जा सकते है। यह प्रणाली गाँव स्तर पर अनिवार्य होता है। यह कृषकों के आपसी
सहयोग पर निर्भर करती है। वर्षा का जो पानी 'ए' के खेत पर पड़ता है वह 'बी'
के खेत के लिए उपयोगी हो सकता है, क्योंकि 'बी' का खेत 'ए' की तुलना में
निचले स्तर पर होता है।
2 भूमिगत बांधों का निर्माण जिनमें गैर मानसून महिनों में भूमिगत जल को नदी
चैनलों में जाने से रोका जा सके।
3. छोटे और बड़े पोखरों या तालाबों का निर्माण जो 8 से 10 मीटर तक गहरे जो।
काम वर्षा वाले क्षेत्रों में आधा हेक्टेयर क्षेत्रफल वाले तालाब
का जलग्रहण क्षेत्र लगभग 50 हेक्टेयर होना चाहिए।
4. विस्तृत क्षेत्रों में सतही परिस्त्रवण (रिसने वाले) तालाबों का निर्माण।
5. नदियों के पानी को पम्प करके किनारे से. दूर गहरे कुओं में डाल जिया जाये।
6. जहाँ बड़ी नदी प्रणालियाँ तथा उनसे बाढ़ की आशका र नदी के दोनों ओर बने
अनेक तालाबों और कओं में डाला जा सकता है।
7. किसानों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए कि वे वर्षा के जल
को खेतों से बाहर जाने से रोकने के उपाय निजी तौर पर करें।
विश्व भूगोल
- अटाकामा मरुस्थल
- अमेज़न जंगल की जानकारी
- अरब सागर कहा है
- भूगोल की परिभाषा
- मरुस्थल क्या है
- झील कितने प्रकार के होते हैं
- प्रायद्वीप किसे कहते हैं
- वायुमंडल का अर्थ
- दिन और रात क्यों होता है
- जल का पारिस्थितिकी तंत्र
- जैव भू रासायनिक चक्र
- जैव विविधता क्या है
- जल संरक्षण क्या है
- सौरमंडल क्या है
- ज्वालामुखी किसे कहते हैं
- पृथ्वी का इतिहास
- पर्यावरण की परिभाषा एवं महत्व
- अंतरिक्ष का अर्थ
- आकाशगंगा किसे कहते हैं
- भूकंप क्या है कैसे आता है
- भूकंप के प्रभाव क्या है
- भूकंप के कारण