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ras kitne prakar ke hote hain |
रस काव्य की आत्मा कहलाता है, जिस प्रकार शरीर का महत्व आत्मा के बिना कुछ नहीं है, उसी प्रकार बिना रस के प्रयोग के कोई भी काव्य का निर्माण नहीं हो सकता है। अर्थात शब्द और अर्थ काव्य का शरीर है जिस प्रकार हमारे अंग शरीर के महत्वपूर्ण भाग हैं उसी प्रकार शब्द होते हैं।
रस किसे कहते हैं इसकी परिभाषा
रस को काव्य की आत्मा कहा जाता है इसका तात्पर्य काव्य के मूल तत्व या उसके प्राण से है, जिसके बिना अर्थात रस के बिना काव्य मात्र पद्य बनकर रह जाता है। रस किसी भी उत्तम काव्य का अनिवार्य गुण है।
रस का अर्थ - निचोड़ (सार)। काव्य में जो आनन्द आता है वह ही काव्य या कविता का रस है। काव्य में आने वाला आनन्द अर्थात् रस लौकिक या सांसारिक न होकर अलौकिक सँसार से परे होता है। रस काव्य की आत्मा है।
रस की परिभाषा क्या है
श्रव्य काव्य के पठन अथवा श्रवण एवं दृश्य काव्य के दर्शन तथा श्रवण में जो अलौकिक या संसार से परे आनन्द प्राप्त होता है, वही काव्य में रस (आनन्द) कहलाता है। रस से जिस भाव की अनुभूति (अनुभव) होती है वह रस का स्थायी (तुरन्त ना मिटने वाला )भाव होता है।
कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक आदि पढ़ने सुनने या देखने से लोगों की जो एक प्रकार से विलक्षण आनन्द की अनुभूति होती है, उसे रस कहते हैं। काव्यास्वादन के अनिर्वचनीय आनन्द को रस कहा गया है।
यहां दो शब्द प्रयोग हुए हैं, विलक्षण आनन्द और अनिर्वचनीय आनन्द इसका मतलब क्या है? विलक्षण का मतलब है जिज्ञासा उतपन्न करने वाला, अर्थात रस किसी काव्य का वह अंग है जो आपके अंदर जिज्ञासा या जानने की इक्षा को उतपन्न कर देता है।
अनिर्वचनीय का अर्थ होता है जिसको वचन या वाणी से नहीं कहा जा सकता अर्थात रस के प्रयोग के कारण इस आनन्द का अनुभव होता है जिसे अपने शब्दों में कहा नहीं जा सकता है। किसी ने कहा है -किसी काव्य के पठन, श्रवण या अभिनय दर्शन,पाठक, श्रोता, अभिनय दर्शक का जब हर लेता मन। और अलौकिक आनन्द से जब मन तन्मय हो जाता, मन का यह रूप काव्य में रस कहलाता।
रस के अंग कितने होते हैं
- विभाव
- अनुभाव
- संचारी भाव
- स्थायीभाव
1. विभाव का अर्थ क्या है - जब कोई व्यक्ति अन्य व्यक्ति के ह्रदय के भावों को जगाता हैं उन्हें विभाव कहते हैं। इनके कारण से रस प्रकट होता है यह कारण निमित्त कहलाते हैं। विशेष रूप से भावों को प्रकट करने वालों को विभाव रस कहते हैं। इन्हें कारण रूप भी कहते हैं।
2. अनुभव का शाब्दिक अर्थ है - वाणी और अंगों के अभिनय द्वारा जिनसे किसी अर्थ प्रकट होता है उन्हें अनुभाव कहते हैं। अनुभवों की कोई संख्या निश्चित नहीं होती है। जो आठ अनुभाव सरल और सात्विक के रूप में आते हैं उन्हें सात्विक भाव कहते हैं। ये अनायास सहज रूप से प्रकट होते हैं।
इनकी संख्या आठ होती है।
- स्तंभ
- स्वेद
- रोमांच
- स्वर – भंग
- कम्प
- विवर्णता
- अश्रु
- प्रलय
3. संचारी भाव की परिभाषा - जो स्थानीय भावों के साथ संचरण करते हैं वे संचारी भाव कहलाते हैं। इससे स्थिति भाव की पुष्टि (सत्यापित) होती है। एक संचारी किसी स्थायी भाव के साथ नहीं रहता है इसलिए इसे व्यभिचारी भाव भी कहते हैं।
संचारी भाव की संख्या कितनी है?
उत्तर - संचारी भाव की संख्या 33 होती
है।
4. स्थाई भाव किसे कहते हैं - किसी मनुष्य के हृदय में कोई भी भाव स्थाई रूप से निवास करती है उसे स्थाई भाव कहते है यह चाद भर के लिए न रहकर स्थाई रूप से रहता है।
रस के कितने प्रकार होते हैं
- शृंगार रस - रती
- हास्य रस - हास
- शान्त रस - निर्वेद
- करुण रस - शोक
- रौद्र रस - क्रोध
- वीर रस - उत्साह
- अद्भुत रस - आश्चर्य
- वीभत्स रस - घृणा
- भयानक रस - भय
- वात्सल्य रस - स्नेह