कंप्यूटर का इतिहास
कंप्यूटर शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के Computer शब्द से हुई है, जिसका अर्थ होता है गणना करना। कम्प्यूटर का अविष्कार गणना करने के लिए ही किया गया था लेकिन आज ये बहुत विस्तृत हो गया है और इसका प्रयोग बड़े रूप में किया जाता है।
दूसरे विश्व युद्ध के बाद कम्प्यूटरों का विकास बहुत तेजी से हुआ और उनके आकार-प्रकार में भी बहुत परिवर्तन हुए। आधुनिक कम्प्यूटरों के विकास के इतिहास को तकनीकी विकास के अनुसार कई भागों में बांटा जाता है।
प्रथम पीढ़ी के कंप्यूटर
प्रथम पीढ़ी की कम्प्यूटर की बात करें तो इसको सामान्य गणना के लिए बनाया गया था जिसकी विशेषताए निम्न है-
- इस पीढ़ी के कम्प्यूटर का काल सन 1946 से 1955 तक माना जाता है।
- इस पीढ़ी में वैक्यूम ट्यूब का प्रयोग कम्प्यूटरों में किया जाता था।
- इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों का आकार इतना बड़ा होता था की इससे एक कक्ष भर जाता था।
- प्रथम पीढ़ी के कम्प्यूटर इतने गर्म होते थे की इन्हें ठंढे करने के लिए एयर कंडिसनर की आवश्यकता होती थी।
- इन कम्प्यूटरों की गति इतनी अधिक नहीं होती थी जितने की आज कल के कंप्यूटरों की है जिसके कारण ये ज्यादा नही चल पाया और इसकी कीमतें भी इसके गति के हिसाब से बहुत अधिक हुआ करती थी।
प्रथम पीढ़ी के कंप्यूटर का नाम
- एनिएक
- एडसैक
- यूनीवैक-1
- यूनीवैक-2
- आईबीएम-701
दूसरी पीढ़ी के कंप्यूटर
इस पीढ़ी के कम्प्यूटर का विकास सन 1956 से 1965 तक माना जाता है। इस पीढ़ी की कम्प्यूटरों की दूसरी विशेषता ये है इन कम्प्यूटरों में अब ट्रांजिस्टरों का प्रयोग होने लगा था वैक्यूम ट्यूब के स्थान पर।
दूसरी पीढ़ी के कम्प्यूटर आकार में छोटे और गति में तेज होते थे और अधिक विश्वसनीय होते थे तथा इसकी लागत भी कम हुआ करती थीं। इस पीढ़ी के कम्प्यूटर में डाटा स्टोर करना और उसे फिर से प्राप्त करना बहुत आसान था।
इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों में IBM-1401 प्रमुख है, जो की बहुत ही लोकप्रिय था और बहुत बड़े पैमाने पर उत्पादित किया गया था।
इस पीढ़ी के कंप्यूटर
- IBM-1602
- IBM-7094
- CDS-3600
- RCA--501
तीसरी पीढ़ी के कंप्यूटर
तीसरी पीढ़ी के कम्प्यूटरों का समय 1966 से 1975 तक माना जाता है।
इनमें Chips का उपयोग किया जाता था, जो की आकार में बहुत छोटे होते थे। एक चिप पर सैकड़ों ट्रांजिस्टरों को एकीकृत किया जा सकता था।
इस पीढ़ी में बने कम्प्यूटरों का आकार बहुत छोटा हुआ करता था और विश्वसनीय भी तथा गति भी बहुत तेज हुआ करती थी।
इस पीढ़ी के कम्प्यूटर के विकास के साथ ही विभिन्न प्रकार के डाटा को संग्रहित करने वाले बाह्य उपकरणों का विकास हुआ। जैसे- डिस्क, टेप आदि का भी विकास हुआ।
कम्प्यूटर के विकास से Multi programming एवं Multiprocessing करना सम्भव हुआ। इस पीढ़ी के कम्प्यूटर आकार में छोटे होने के साथ साथ सस्ते भी हुआ करते थे।
इस पीढ़ी के मुख्य कम्प्यूटरों के नाम निम्न प्रकार से थे-- 1. IBM-360
- 2. IBM-370
- 3. ICL-1900
- 5. बरोज 5700
- 7. CDC-3000
- 9. युनिवैक 9000
चौथी पीढ़ी के कंप्यूटर
इस पीढ़ी के कम्प्यूटर का समय सन 1976 से 1990 तक माना जाता है। इनमें केवल एक सिलिकॉन चिप पर कम्प्यूटर के सभी एकीकृत परिपथों को लगाया जाता है।
जिसे माइक्रोप्रोसेसर कहा जाता है। इस प्रकार से इन चिपों का प्रयोग करने वाले कम्प्यूटरों को माइक्रो कम्प्यूटर कहा जाता है। इस प्रकार के कम्प्यूटर की एक और विशेषता ये है की ये बिजली कम खपत करता है और यह सामान्य तापक्रम पर भी कार्य करने में सक्षम होते हैं।
कम्प्यूटर की इस पीढ़ी में पर्सनल कम्प्यूटर की श्रेणी अस्तित्व में आई, जिन्हें Pentium कहा जाता है। इस पीढ़ी के कम्प्यूटर मुख्यतः पेंटियम श्रेणी के हैं। पेंटियम-1 से लेकर पेंटियम-4 तक।
पांचवीं पीढ़ी के कंप्यूटर
सन 1990 के बाद से अब तक का समय कम्प्यूटर की पांचवी पीढ़ी का है जिसमें ऐसे कम्प्यूटरों का निर्माण का प्रयास चल रहा है।
जिनमें कम्प्यूटरों की ऊंची क्षमताओं के साथ-साथ तर्क करने , निर्णय लेने तथा सोचने की भी क्षमता हो।
इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों का मुख्य फोकस डाटा प्रोसेसिंस की बजाय नॉलेज प्रोसेसिंग पर है।
इस पांचवी पीढ़ी के कम्प्यूटरों के बारे में वैज्ञानिको का दावा है की ये कम्प्यूटर बहुत हद तक मानव मस्तिष्क के समान होंगे।
अभी तक ऐसे कम्प्यूटर बनाने में सफलता नहीं मिली है लेकिन ऐसे कंप्यूटर बना लिए गए हैं जिनमें चौथी जेनेरेशन में बने कम्प्यूटरों की तुलना में बहुत अधिक क्षमताये हैं।
इन्हें सुपर कंप्यूटर कहा जाता है जो की एक साथ सैकड़ों कम्प्यूटरों के बराबर कार्य अकेले ही कर लेते हैं।
कंप्यूटर के प्रकार
कंप्यूटर मुख्यतः तीन प्रकार के होते है -
1. एनालॉग कंप्यूटर - ये कुछ निश्चित समस्याओं में भौतिक अन्तर्सम्बन्धों के बीच गणितीय समानता का दोहन करते हैं और भौतिक समस्या के समाधान के लिए इलेक्ट्रॉनिक या हाईड्रोलिक सर्किट का प्रयोग करते हैं।
2. डिजिटल कम्प्यूटर- इस प्रकार के कम्प्यूटर गणनाओं के निष्पादन तथा अंक दर अंक प्रत्येक संख्या के आधार पर समस्याओं का समाधान करते हैं।
3. हाइब्रिड कम्प्यूटर - हाइब्रिड कम्प्यूटर उन कम्प्यूटरों को कहा जाता है , जिनमें एनालॉग तथा डिजिटल दोनों ही कम्प्यूटरों के गुण पाये जाते हैं।
इनके द्वारा भौतिक मात्राओं को अंको में परिवर्तित करके उसे डिजिटल रूप में ले जाते हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में इसका सर्वाधिक उपयोग होता है।
अब मैं आपको कम्प्यूटर के इतिहास को संक्षिप्त में प्रस्तुत करने जा रहा हूँ जो की इस प्रकार है।
16 वीं शताब्दी , अविष्कारक - ली काई चेन , आविष्कार - अबेकस , विशेषता - गणना कार्यों में सहायता के लिए।
1617, आविष्कारक - जॉन नेपियर , आविष्कार- नेपियर बोन्स, विशेषता - शीघ्रतापूर्वक गुणा करने के लिए।
1642 , आविष्कारक - ब्लेज पास्कल , आविष्कार - गणन यन्त्र , विशेषता - प्रथम गणन यन्त्र।
1671 , आविष्कारक - गोटफ्रेड वॉन लेबनीज , आविष्कार - यांत्रिक कैलकुलेटर , विशेषता - जोड़ व घटाव के साथ-साथ गुणा व भाग करना।
1823-34 , आविष्कारक - चार्ल्स बैबेज , आविष्कार - डिफरेन्स इंजन, विशेषता - बीजगणितीय फलनों के मान दशमलव के 20 स्थानों तक शुद्धतापूर्वक ज्ञात किया जा सकता था।
1880 , आविष्कारक - हर्मन होलेरिथ , आविष्कार - सेन्सस टेबुलेतर , विधुत चलित पंचकाड़ों द्वारा संचालन।
1937 - 38 , आविष्कारक - जॉनवी एटानासॉफ तथा क्लीफॉर्ड बेरी , आविष्कार - एबीसी , विषेशता - पूर्णतः इलेक्ट्रॉनिक, इसमें एक भी यांत्रिक पुर्जा नहीं था।
साथियों आज के इस पेज में बस इतना ही फिर मिलेंगे कुछ अन्य जानकारियों के साथ आपका बहुत बहुत धन्यवाद