छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश के दक्षिण पूर्वी भाग में स्थित है छत्तीसगढ़ राज्य का गठन 1 नवंबर सन 2000 को हुआ। अभी छत्तीसगढ़ में 28 जिले हैं। इस राज्य का कुल क्षेत्रफल 135198 वर्ग किलोमीटर है ये राज्य पहले दक्षिण कौसल के नाम से जाना जाता था। जिसकी राजधानी श्रीपुर हुआ करती थी। जो अब सिरपुर के नाम से जाना जाता है।यहाँ महासमुंद जिले के अंतर्गत आता है सिरपुर में कई महत्वपूर्ण मंदिर है। श्रावण के महीने में शिव भक्त महानदी के किनारे स्थित गंधेश्वर मदिर में बड़ी संख्या में जल चढ़ाने जाते है।
छत्तीसगढ़ के सिहावा पर्वत से महानदी निकलती है जो मध्य भाग में उपजाऊ भूमि और फसल के लिए जल प्रदान करती है, जिसके कारण यहाँ धान की फसल अधिक होता है। इसलिए छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा भी कहा जाता है।छत्तीसगढ़ भारत का एक राज्य है।
- राजधानी - नया रायपुर (अटल नगर)
- सबसे बड़ा शहर - रायपुर।
- जनसँख्या - 25545198 2011 के अनुसार।
- क्षेत्रफ़ल - 1,35,194 किलोमीटर²
- जिला - 28
- मुख्यमंत्री - भूपेश बघेल।
- राजकीय पशु - वन भैसा।
- राजकीय पक्षी - पहाड़ी मैना।
- छत्तीसगढ़ देश का धान का कटोरा है।
- महानदी छत्तीसगढ़ की जीवन रेखा के नाम से जानी जाती है।
- छत्तीसगढ़ उष्णकटिबंधीय जलवायु वाला प्रदेश है।
छत्तीसगढ़ राज्य का गठन
छत्तीसगढ़ पहले मध्य प्रदेश का हिस्सा था 1 नवम्बर सन 2000 को छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ। आजादी के पहले से छत्तीसगढ़ को अलग राज्य बनाने की मांग उठती रही है। आजादी के बाद से इसमें और जोर दिया गया तब जाके सं 2000 को छत्तीसगढ़ का निर्माण हुआ।
छत्तीसगढ़ का इतिहास
छत्तीसगढ़ प्राचीन काल के दक्षिण कौसल का हिस्सा था। पौराणिक काल कौसल राज्य उत्तर कौसल और दक्षिण कौसल नामक दो भागो में बांटा था। दक्षिण कौसल अभी का छत्तीसगढ़ कहलाता है। महानदी का उल्लेख महाभारत और ब्रम्हपुराण में मिलता है। प्राचीन काल में छत्तीसगढ़ में कई ऋषि मुनि निवास करते थे। सिहावा पर्वत में निवास करने वाले श्रृंगी ऋषि में अयोध्या के राजा दशरथ के यहाँ यज्ञ करवाया था। जिसके यज्ञ से भगवान राम और उसके भाईयो का जन्म हुआ था।
प्राचीन भारत में 639 ई. में दक्षिण कौसल की राजधानी सिरपुर था जो अभी महासमुंद जिले के अंतर्गत आता है। उस समय बौद्ध धर्म का विकास हो रहा था आज भी सिरपुर में बुद्ध की प्राचीन मूर्ति और मठ खुदाई में प्राप्त हुआ है।
छत्तीसगढ़ का भूगोल
छत्तीसगढ़ भारत के मध्य में स्थित है इसके 6 पडोसी राज्य है उत्तर भाग में उत्तरप्रदेश और झारखण्ड है दक्षिण में आँध्रप्रदेश और नया राज्य तेलंगाना है पूर्व की बात करे तो उड़ीसा और पश्चिम में महाराष्ट्र स्थित है। छत्तीसगढ़ का भौगोलिक आकर दरयाई घोड़े के सामान है जो समुद्र में पाया जाता है। ऊंचे निचे पर्वत और जंगल से यह राज्य घिरा हुआ है। यहाँ के जंगल में साल, सैगोन और सजा के पेड़ पाए जाते है जो निर्माण कार्य में उपयोग किये जाते है।
यहाँ के जंगल मिश्रित जगल होते है इसका मतलब यहाँ है की यहाँ के जंगल में कई
प्रकार के पेड़ पाए जाते है। छत्तीसगढ़ के बीच में महानदी और उसकी सहायक नदी उपजाऊ
मैदान का निर्माण करती है जो 322 किलोमीटर लंबा और 80 किलोमीटर चौड़ा है जो समुद्र
से 300 मिटेर की उचाई पर स्थित है। रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग के दक्षिण भाग में
महानदी और शिवनाथ नदी का दोआब स्थित है। ( दोआब किसी दो नदियों के बीच के क्षेत्र
को कहा जाता है ) इसी क्षेत्र में धान की अधिक पैदावार होती है जिसके कारण
छत्तीसगढ़ को धन का कटोरा कहा जाता है।
छत्तीसगढ़ में तीन प्रमुख प्राकृतिक
खंड है उत्तर में सतपुड़ा मध्य में महानदी का मैदान और दक्षिण में बस्तर का पठार,
छत्तीसगढ़ में ये तीन भौगोलिक वितरण है। छत्तीसगढ़ की प्रमुख नदियां - महानदी,
शिवनाथ, हसदेव, और इंद्रावती नदी है।
महानदी - छत्तीसगढ़ के धमतरी जिला में स्थित सिहावा पर्वत से निकलती है और दक्षिण से उत्तर की और बढ़ने लगती है जो धीरे धीरे प्राचीन नगरी आरंग और फिर सिरपुर से होते हुए शिवरीनारायण पहुंच जाती है यहाँ पर महानदी बन जाती है और पुर दिशा की और बढ़ने लगती है। इसके बाद उड़ीसा राज्य के सम्बलपुर जिले में प्रवेश करती है। उड़ीसा राज्य में इस नदी पर हीराकुंड बांध का निर्माण किया गया है। महानदी की कुल लम्बाई 855 किलोमीटर है जो सिहावा पर्वत से लेकर बंगाल की खाड़ी तक है।
शिवनाथ नदी - महानदी की प्रमुख सहायक नदी है जो राजनादगावं के अंबागढ़ तहसील कोडगुल पहाड़ी से निकलती है और शिवरीनारायण के पास महानदी में मिल जाती है। जिसके चलते महानदी और भी अधिक चौड़ी हो जाती है। शिवनाथ नदी की प्रमुख नदियाँ लीलागर मनियारी आगर हांप खारून अरपा है इसके अलावा और भी सहायक नदियाँ है।
छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति
छत्तीसगढ़ी साहित्य - छत्तीसगढ़ी भाषा का विकास अर्धमागधी भाषा से हुआ है। छत्तीसगढ़ी साहित्य का इतिहास लगभग 1080 ई. से हुआ है। इसका इतिहास बहुत पुराना नहीं है। वैज्ञानिक इसका कारण मानते है की यहाँ प्राचीन काल में सांस्कृत भाषा का उपयोग लेखन के लिए किया जाता था इसलिए छत्तीसगढ़ी के प्राचीन प्रमाण हमें नहीं मिलते है।
मध्य काल में छत्तीसगढ़ के अनेक अंचलों में छत्तीसगढ़ी स्थानीय बोली के रूप में प्रचलित था वर्तमान में छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है। 1000 ई. से छत्तीसगढ़ी भाषा में साहित्य का विकास शुरू हुआ इन्हे तीन भागो में बाँटा गया है।
- छत्तीसगढ़ी गाथा युग - 000 से 1500 ई. तक
- छत्तीसगढ़ी भक्ति युग - 1500 से 1900 ई. तक
- छत्तीसगढ़ी आधुनिक युग - 1900 से आज तक
छत्तीसगढ़ी लोक गीत और नित्य - छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति हमेशा से संपन्न रही हैं यहां पर विभिन्न अवसरों पर कई प्रकार की उत्सव में गीत और नृत्य की परम्परा है। जो उत्सव को और खास बनाते है और हमारे संस्कृति को दर्शाते है। देखा जाये तो कला और साहित्य एक दूसरे के पूरक है। इन्ही से मानव सभ्यता का विकास हुआ है।
छत्तीसगढ़ में लोग गीत - यहाँ राज्य सांस्कृतिक रूप से काफी विकसित है लोग गीत की बात करे तो पंडवानी कर्मा ददरिया सुआ नित्य, भोजली जावरा इसके अलावा जसगीत भरथरी राउत गीत और पंथी लोकप्रिय है। कर्मा पंथी और राउत गीत को नित्य करते गया जाता है। जो एक विशेष त्यौहार पर किया जाता है।
कर्मा नित्य करने वालो की अपनी अलग वेशभूषा होती है इस नित्य को समूह में किया जाता है। इस उत्सव में ज्यादातर युवक भग लेते है और गीत गाकर नित्य किया जाट है। पंथी और राउत नाच भी इसी प्रकार का होता है।
प्रमुख कला केंद्र - छत्तीसगढ़ी कला के अनेक प्रमुख केंद्र है, जैसे रतनपुर, शिरपुर राजिम, भोरमदेव, मल्हार, बस्तर और जगदलपुर आदि।
छत्तीसगढ़ की प्रमुख व्यवसाय
छत्तीसगढ़ के लोग कृषि पर अधिक निर्भर करते है लेकिन शहरों में लोग व्यापर करते है। लेकिन अभी भी आधी से अधिक आबादी गांव में निवास करती है और पूरी तरह से कृषि पर निर्भर करती है। यह धान की पैदावार सबसे अधिक होती है। बहुत से जगहों पर सब्जी और फल का भी उत्पादन किया जा रहा है धीरे धीरे लोग फार्म का निर्माण कर रहे है और सब्जी की फसल ले रहे है क्योकि इसमें मुआफ़ भी अधिक मिलता है और फसल भी धान के मुकाबले जल्दी हो जाता है।
छत्तीसगढ़ के प्रमुख तीर्थ स्थल
सिरपुर - यह महासमुंद जिले में स्थित प्राचीन मंदिर के कारण विश्व विख्यात है यह पर लश्मण मदिर और बौद्ध विहार पर्यटन का मुख्य केंद्र है महानदी के तट पर स्थित यह नगरी प्राचीन काल से ही समृद्ध रहा है।
आरंग, दंतेवाडा, रतनपुर ,शिवरीनारायण, राजिम, खल्लारी, डोंगरगढ़ ,भोरम देव्, जतमई घटारानी, पाली कोरबा , रतनपुर, कबीरधाम, राजीवलोचन मदिर आदि स्थल है।
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