लाइफ
एस्केरिस लुम्ब्रिकोइड्स, एक राउंडवॉर्म, मनुष्यों को फेकल-मौखिक मार्ग के माध्यम से संक्रमित करता है। वयस्क मादा द्वारा जारी अंडे मल में बहाए जाते हैं। असुरक्षित अंडे अक्सर fecal नमूनों में देखे जाते हैं लेकिन कभी भी संक्रमित नहीं होते हैं। निषेचित अंडे भ्रूण और पर्यावरण की स्थिति के आधार पर मिट्टी में 18 दिनों से लेकर कई हफ्तों तक संक्रामक हो जाते हैं।
जब एक भ्रूण के अंडे को निगला जाता है, तो एक रबाडिटिफॉर्म लार्वा हैच गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट की दीवार में प्रवेश करता है और रक्त प्रवाह में प्रवेश करता है। वहां से, यह यकृत और हृदय तक ले जाया जाता है, और एल्वियोली में मुक्त तोड़ने के लिए फुफ्फुसीय परिसंचरण में प्रवेश करता है, जहां यह बढ़ता है और पिघला देता है।
तीन हफ्तों में, लार्वा श्वसन प्रणाली से गुजरता है, जिसे निगल लिया जाता है, निगल लिया जाता है, और इस तरह छोटी आंत तक पहुंच जाता है, जहां यह एक वयस्क पुरुष या महिला कीड़ा को परिपक्व करता है। निषेचन अब हो सकता है और मादा 1218 महीनों तक प्रति दिन 200,000 अंडे देती है। ये निषेचित अंडे मिट्टी में दो सप्ताह के बाद संक्रामक हो जाते हैं; वे 10 साल या उससे अधिक समय तक मिट्टी में बने रह सकते हैं।
अंडों में एक लिपिड परत होती है जो उन्हें एसिड और क्षार के प्रभाव के साथ-साथ अन्य रसायनों के लिए प्रतिरोधी बनाती है। यह लचीलापन यह समझाने में मदद करता है कि यह निमेटोड एक सर्वव्यापी परजीवी क्यों है।
Asceris lumbricydes के बारे में जानकारी
प्रकृति एवं वास ऐस्कैरिस लंब्रीकॉइडीज मनुष्य की आंत का अंतः परजीवी है।
Distribution
यह संसार के सभी क्षेत्रों में मिलने वाला निमेटोड है। विशेषतया यह भारत , चीन, फिलीपीन्स, कोरिया और पैसीफिक आइलैण्ड में मिलता है।
Character
1. यह प्रचलित भाषा में राउंड वर्म कहलाता है।
2. इसका शरीर लम्बा, बेलनाकार तथा तर्कुआकार होता है।
3. मादा सदैव नर से बड़ी होती है।
4. नर का पश्च सिरा सदैव मुड़ा हुआ होता है।
5. इसके शरीर की सतह पर धारियां दिखाई देती हैं जो की मोटी तथा लचीली उपचर्म की अनुप्रस्थ स्ट्रियेशन्स के कारण होती है।
6. इसके शरीर पर चार अनुदैधर्य वर्ण रेखाएं या स्ट्रीक्स या लकीरें होती हैं, जो कि पूर्ण लम्बाई में फैली रहती हैं।
7. इनको पृष्ठीय,अधर तथा पाशर्व स्ट्रीक्स कहते हैं।
8. इनके अग्र भाग में मुख स्थित होता है,जो तीन होंठों से घिरा रहता है।
9. शरीर के पश्च सिरे से लगभग 2 मि.मी. ऊपर एक चक्राकार छिद्र स्थित होता है,जिसे गुदा कहते हैं।
10. नर में क्लोयका से दो पतले पीनियल सीटी निकले रहते हैं।
11. मादा की अधर सतह पर अग्र सिरे से लगभग एक तिहाई दूरी पर छिद्र स्थित होता है, जिसे मादा छिद्र कहते हैं।
टीनिया सोलियम
ये एक कृमि के समान जीव है जिसका निम्न प्रकार से वर्णन किया गया है।
( i ) टीनिया सोलियम एक बहुत ही प्रचलित टेप वर्म है,जो कि सुअर का मांस खाने वाले प्रदेशों में पाया जाता है।
( ii ) इसका प्रौढ़ कृमि मनुष्य की आंतों की भित्ति में एक सिर से चिपका हुआ पाया जाता है तथा बाँकी शरीर स्वतन्त्रतापूर्वक आंतों की गुहा में लटका रहता है।
वितरण यह भारत, चीन, चेकोस्लोवाकिया और जर्मनी में पाया जाता है। लक्षण टीनिया सोलियम फिते के समान होता है। जिसके अग्र सिरे पर एक गांठ सी पायी जाती है, जिसे सिर या स्कोलैक्स कहते हैं।
( ii ) स्कोलैक्स नाशपाती के आकार का होता है जिसका अग्र सिरा एक प्रवर्ध के रूप में बाहर निकला रहता है, जिसे रॉस्टेलम कहते हैं। इसके आधार के चारों तरफ दो पंक्तियों में लगभग 28 मुड़े हुए नुकीले हुक्स पाये जाते हैं।
( iii ) रॉस्टेलम आगे की ओर निकला हुआ तथा आकुंचनशील होता है। ये चिपकने का एक अंग होता है।
( iv ) चार प्यालेनुमा चिपकाने वाले अंग स्कोलेक्स के चारों तरफ पाये जाते हैं जिन्हें चुषक कहते हैं।
( v ) सिर के पीछे एक छोटी तथा संकरी गर्दन होती है। बाँकी का शरीर स्ट्रोबिला कहलाता है। सट्रोबिला बहुत से देहखण्डों का होता है। इनका जीवन चक्र जटिल होता है। इसका माध्यमिक पोषक सुअर होता है।